नहीं चलेगी निजी क्लीनिकों की मनमानी

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नैनीताल हाई कोर्ट ने प्राइवेट अस्पताल या क्लीनिक में सरकारी एजेंसियों के औचक निरीक्षण के कानूनी प्रावधानों को चुनौती देती चिकित्सकों की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट के फैसले के बाद राज्य में निजी अस्पताल तथा क्लीनिक का पंजीकरण कराना ना केवल अनिवार्य हो गया है बल्कि जिला पंजीकरण अथॉरिटी को क्लीनिक का निरीक्षण करने का कानूनी अधिकार भी मिल गया है।

विकासनगर देहरादून के चिकित्सक डॉ. यशवीर सिंह तोमर समेत 17 अन्य ने याचिका दायर कर क्लीनिकल स्टेब्लिसमेंट रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलशन अधिनियम-2010 की धारा-दो के सी, डी और ओ प्रावधान को चुनौती दी थी। इन प्रावधानों में क्लीनिकल स्टेब्लिसमेंट, इमरजेंसी मेडिकल कंडीशन, सैन्य बलों को क्लीनिकल स्टेब्लिसमेंट एक्ट से बाहर करना मुख्य था। याचिका में कहा गया था कि राज्य द्वारा बनाया गया उत्तराखंड क्लीनिकल स्टेब्लिसमेंट रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन नियम-2015 एक्ट की धाराओं के विपरीत है।

राज्य सरकार द्वारा एक्ट को प्रभावी नहीं बनाया गया है, न ही उन्हें असंवैधानिक तरीके से नियम बनाने का अधिकार है। इतना ही नहीं संविधान के अनुच्छेद-252 के तहत एक्ट बनाने के बाद विधान सभा में प्रस्ताव भी पारित नहीं किया गया। लिहाजा इस एक्ट को निरस्त किया जाए।

सरकार की ओर से अदालत को बताया गया कि एक्ट के संबंध में 28 अगस्त 2010 को महामहिम राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद 29 मार्च 2011 को विधान सभा में प्रस्ताव रखा गया, प्रस्ताव पारित होने के बाद एक्ट को एडॉप्ट किया गया।

इसकी अधिसूचना 18 अगस्त 2011 को जारी की गई और इसके बाद 2015 में नियम बनाए गए। यह पूरी तरह वैधानिक एक्ट है। इसलिए याचिका खारिज होने योग्य है। दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं की दलील सुनने के बाद न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया की एकलपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।