शुक्रवार को कांग्रेस के बागी और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व महसचिव आर्येंद्र शर्मा ने सहसपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन भरा।
गौरतलब है कि आर्येंद्र शर्मा ने 2012 में भी कांग्रेस के टिकट पर सहसपुर से पहली बार चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा था। उस समय भी मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी माने जाने वाले गुलज़ार ने वहां से निर्दलीय खड़ा हो कर शर्मा का खेल बिगाड़ा था। पिछले पांच सालों से शर्मा इस सीट पर सक्रीय हैं और लोगों के बीच जा कर काम कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें यहां से अपना टिकट पक्का लग रहा था। लेकिन राजनीति अनिश्चताओं का खेल है और ऐसा ही कुछ आर्येंद्र के साथ भी हुआ। न सिर्फ पार्टी ने उनका टिकट काटा बल्कि प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को सहसपुर से उम्मीदवार बना दिया। किसोर खुद ही पहले चुनाव न लड़ने की बात कह चुके हैं साथ साथ उनका कहना था कि सहसपुर सीट उनकी पहली पसंद नही थी लेकिन पार्टी के आदेश पर उन्होने तैयारी की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि सहसपुर के लोग यहां से सिटिंग विधायक, बागी उम्मीदवार या सीट पर न लड़ने के इच्छुक नेता में से किस को चुनते हैं।
आर्येंद्र के निर्दलीय चुनाव लड़ने पर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आर पी रतूड़ी ने कहा कि “आर्येन्द्र शर्मा ने 2012 मे ही देहरादून में कदम रखा था,इससे पहले वे ऍन डी तिवारी के विशेष कार्ये अधिकारी थे तिवारी तमिल नाडू के राज्यपाल थे और जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे। आर पी रतूड़ी ने साफ़ तौर पर यही जाहिर किया है कि आर्येन्द्र शर्मा का सिर्फ 5 साल से काम करने में जीत हासिल नहीं हो सकती और 5 साल की राजनीति से आर्येंद्र की उम्मीदें ज्यादा है।” एक तरफ पार्टी जहां आर्येंद्र को खतरा नहीं मान रही है वहीं खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत और पार्टी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय आर्येंद्र को सहसपुर टिकट पर समझाने के लिए उन्हें मनाने गए थे।लेकिन आज पार्टी के तेवर बदले हुए से हैं शायद गुलजार के समर्थन ने कांग्रेस को सहसपुर से जीत की उम्मीद दिला दी है।