शीतकाल के लिये बंद हुए बदरीनाथ मंदिर के कपाट

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उत्तराखंड के चमोली गढ़वाल में स्थित श्री बदरीनाथ धाम के कपाट विधि-विधान पूर्वक शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। मान्यता के अनुसार अब शीतकाल में देवताओं के प्रतिनिधि देवऋषि नारद भगवान बदरी नारायण सहित मां लक्ष्मी की पूजा करेंगे, जबकि, भगवान की नर पूजा पांडुकेश्वर में होगी। कपाट बंदी के मौके पर मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत पांच हजार से अधिक यात्रियों ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए।

ब्रह्म मुहूर्त में महाभिषेक पूजा के साथ भगवान नारायण का फूलों से भव्य शृंगार हुआ। कपाट बंदी के दिन भगवान का आभूषणों के बजाए फूलों से शृंगार होता है। इसलिए इस दिन को फूल शृंगार के रूप में जाना जाता है।  दिनभर पूजाओं के बाद दोपहर दो बजे मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी स्त्री वेश धारण कर मां लक्ष्मी को गर्भगृह में लाने के लिए लक्ष्मी मंदिर गए। मां लक्ष्मी की पूजा कर उन्होंने गर्भगृह में भगवान नारायण के बगल में मां लक्ष्मी को विराजमान किया। इसके उपरांत आरंभ हुईं सायंकालीन पूजाएं। इस वर्ष की अंतिम पूजा आरती दोपहर बाद तीन बजे शुरू हुई और फिर गर्भगृह में विराजे उद्धव जी व कुबेर जी को बाहर लाया गया। इसके साथ ही भगवान का फूलों का शृंगार उतारकर माणा गांव की कुंवारी कन्याओं की बनाई ऊन की चोली पर घी का लेपन कर इसे भगवान बदरी विशाल व मां लक्ष्मी को ओढ़ाया गया। इसी के साथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।

कपाट बंदी के बाद उद्धव जी की डोली रावल निवास व कुबेर जी की डोली बामणी गांव के नंदा मंदिर में रात्रि विश्राम के लिए ले जाई गई। इस मौके पर मुख्यमंत्री हरीश रावत, कृषि मंत्री राजेंद्र भंडारी, विधायक ललित फस्र्वाण व विक्रम नेगी, श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समित के अध्यक्ष गणेश गोदियाल, सीईओ बीडी सिंह आदि उपस्थित रहे। विदित हो कि इस वर्ष छह लाख 24 हजार 725 श्रद्धालुओं ने भगवान बदरी विशाल के दर्शन किए।