भानुमति का कुनबा बनी भारतीय जनता पार्टी

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उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार के वरिश्ठ मंत्री यशपाल आर्य ने पार्टी उपाध्यक्ष की ऋशिकेष में महत्वपूर्ण बैठक के मौके पर भाजपा का दामन थाम कर पार्टी को तगड़ा झटका दिया है। ऐन विधानसभा चुनाव के मौके पर राज्य में पाला बदलने वाले यशपाल आर्य राज्य कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और महत्वपूर्ण दलित नेता रहे हैं। दल बदलते ही उन्हें भाजपा ने तत्काल बाजपुर से अपना उम्मीदवार भी घोशित कर दिया। उनके और कांग्रेस के अन्य बागी विधायकों समेत भाजपा ने राज्य में कुल 64 सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम घोशित कर दिए हैं। हरिद्वार के आसपास मैदानी इलाके को छोड़ दें तो आर्य की अपील पहाड़ में बसे दलितों के बीच निर्विवाद रूप में व्यापक है। उनके साथ गए केदार सिंह को भाजपा ने यमुनोत्री से उम्मीदवार बना दिया है। राज्य में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद हुए इस दलबदल से भाजपा को लगता है कि गढ़वाल अंचल में कांग्रेस को लगभग नेस्तनाबूद करके उसे विधानसभा चुनाव के दौरान भारी बढ़त मिलना तय है।
देखना यह है कि केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की इस रणनीति से उसके काडर कितना तालमेल बैठा पाएंगे! इसकी वजह यह है कि कल तक वे जिस विजय बहुगुणा की सरकार पर केदारनाथ आपदा का पैसा डकार जाने का आरोप लगा रहे थे, उसीके लिए भाजपा के काडरों को अब जनता से वोट मांगने पड़ेंगे! उल्लेखनीय यह भी है कि बहुगुणा मंत्रिमंडल के दो अन्य मंत्रियों अमृता रावत और हरक सिंह रावत के साथ ही साथ उन्हें अब यशपाल आर्य को जिताने के लिए भी जनता का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा। आर्य उसी हरीश रावत मंत्रिमंडल में 15 जनवरी तक मंत्री रहे हैं जिसे भाजपा भ्रष्ट और मौकापरस्त कहते नहीं अघा रही थी। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री सहित चार पूर्व मंत्रियों की मौजूदगी में भाजपा उनके कार्यकाल समेत कांग्रेस शासन के खिलाफ क्या आरोप पत्र लाएगी? जाहिर है कि इस दलबदल ने कांग्रेस के अपेक्षाकृत युवा नेताओं के लिए कम से कम गढ़वाल अंचल में तो विधानसभा में पहुंचने के दरवाजे खोल दिए हैं। इससे कांग्रेस को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि एकतरफ जहां उसे अपने कार्यकाल के आधे पापों से मुक्ति मिल गयी वहीं उसके लिए नए और बेदाग उम्मीदवार जनता के सामने उतारने का रास्ता भी खुल गया।
कांग्रेस का तो जो बंटाढार होना था वो हो चुका मगर अब देखना यह है कि बागी कांग्रेसियों को पार्टी टिकट देने पर भाजपा अपने बागी नेताओं को कैसे साधेगी? राजनैतिक लिहाज से यह दलबदल भाजपा कि लिए दुधारी तलवार साबित हो सकता है। एक तो इससे कांग्रेस के पांच साल के शासन के खिलाफ भाजपा के आरोपों की धार कुंद पड़ना तय है, दूसरे उसके अपने पिछवाड़े में भी बगावत की चिंगारी सुलगने की प्रबल आशंका पैदा हो गई है। जाहिर है कि कांग्रेस को खाखला कर देने के बावजूद भाजपा को बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखने पड़ेंगे। जाहिर है कि पूर्वोत्तर राज्यों अथवा जम्मू-कष्मीर की तरह उत्तराखंड के विधायको की केंद्र में सत्तारूढ़ दल के साथ रहने की कोई मजबूरी नहीं है। उत्तराखंड की जनता पूरी तरह जागरूक और देश की मुख्यधारा में षामिल है इसलिए यहां के चुनाव नतीजे इस तमाम उठापटक के बावजूद चैंकाने वाले साबित हो सकते हैं।
भाजपा में यूं भी सतपाल महाराज से लेकर यशपाल आर्य तक कांग्रेस से जितने भी नेता शामिल हुए हैं, उनमें से किसी का भी कद मुख्यमंत्री हरीश रावत के बराबर नहीं है और उन सबके जाने से वे अब निर्विवाद नेता स्थापित हो गए हैं। दूसरी तरफ भाजपा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की तैयारी दिखा रही है। वैसे भी भाजपा में पहले से जो तीन-चार मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे उनके अलावा चार नए दावेदार कांग्रेस से भी आ गए है। इस लिहाज से देखें तो भाजपा यदि विधानसभा चुनाव में बहुमत ले भी आई तो उसके लिए अपना मुख्यमंत्री चुनना सिरदर्द बन जाएगा। यदि नतीजे त्रिषंकु विधानसभा के रहे तो भाजपा को सरकार बनाने की कोषिष में सबसे अधिक सतर्क कांग्रेस से ही रहना होगा, क्योंकि मुख्यमंत्री और मंत्री पद की चाहत में कांग्रेसियों के लिए भाजपा में किनारे बैठकर लहरें गिनने के बजाए घरवापसी जाहिर है कि बेहद आसान होगी!