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देहरादून: भारतीय सैन्य अकादमी से सेना को मिले 409 जाबांज़ अधिकारी

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भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) से शनिवार 409 कैडेट्स पास आउट हो अधिकारी बन गये। देहरादून स्थित आईएमए परिसर में हुई भव्य परेड में 78 विदेशी कैडेट भी पास आउट होकर अपने अपने देश की सेनाओं में अधिकारी बने।

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इस पासिंग आउट परेड की सलामी बांग्लादेशी सेना के प्रमुख जनरल अबू बिलाल मोहमम्द ने ली। परंपरा के अनुसार ऐतिहासिक चेटवुड हाॅल के प्रांगण में हुई पासिंग आउट परेड में 409 भारतीय कैडेटों के साथ साथ 8 मित्र देशों से आये 78 कैडेटस कोर्स पूरा कर के अधिकारी बन गये।

 

 

उत्तराखंड ने सेना से अपना पुराना और पारंपरिक रिश्ता बरकरार रखते हुए सेना को 38 अधिकारी दिये। देश के अन्य राज्यों की बात करें तो:

  • यूपी के 76
  • हरियाणा के 58
  • बिहार 25
  • महाराष्ट्र 24
  • पंजाब 24
  • राजस्थान 23
  • दिल्ली 22
  • मध्यप्रदेश 19
  • हिमाचल 18
  • कर्नाटक 15
  • जम्मू कश्मीर 9
  • आंध्र प्रदेश 6
  • मणिपुर, प बंगाल, केरल के 6-6
  • असम, तेलंगाना, झारखंड के 5-5
  • छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के 4-4
  • चंडीगढ़,गुजरात और तमिलनाडु के 2-2
  • मिज़ोरम और नागा लेंड का 1-1 कैडेट पास आउट हो रहे हैं।

आपको बता दें कि इस बार कुल 78 विदेशी केडेट पास आउट हुए हैं और इसमें सबसे ज्यादा 42 विदेशी केडेट अफगानिस्तान के हैं। 3 नेपाल के केडेट भी पास आउट हुए। आईएमए से अब तक कुल 60347 सैन्य अधिकारी पास आउट होकर देश को मिल चुके हैं। वहीं अब तक कुल 2106 विदेशी कैडेट भी पास आउट हो चुके हैं।

परेड की एकाग्रता और तालमेल देखते ही बन रही थी। इस परफेक्ट परेड ने इसकी तैयारी और कोर्स के दौरान कैडेटस के द्वारा की गई मेहनत और फौज के अनुशासित ज़िदगी को साफ दर्शाया।

जैसे ही कैडेट्स ने परेड पूरी कर “अंतिम पग” को पार किया वो कैडेटस से अधिकारी बन गये और ये सचमुच हर कैडेट के लिये यादगार लम्हा रहा। इस पल को कैमरों और अपनी यादों में कैद करने के लिये मीडिया और कैडेटस के परिवार के लोग मौजूद रहे।

तीन घंटे चली इस परेड के मुख्य आकर्षण रहा परेड निरीक्षण, स्वाॅर्ड आॅफ हाॅनर, पाईपिंग और ओथ टेकिंग सेरेमनी जो कि चेटवुड हाॅल के लाॅन मे हुई। इसके बाद सभी नये अधिकारियों के कदमों की ताल और साथ में  “कदम कदम बढ़ाये जा” के संगीत से सारा आसमान खिल उठा और इसके साथ ही सेना को जिस जोश और जज़्बे के लिए जाना जाता है उसकी मिसाल पेश की। एक बार फिर भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून ने भारतीय सेना को वीरों से वीर अधिकारी देने के अपने चलन को बरकरार रखा और ये साबित कर दिया कि आईएमए आज भी दुनिया के बेहतरीन सैनिक ट्रेनिंग इंस्टिट्यूटों मे से एक है।

मसूरी बना नए जोड़ों का पसंदीदा ”हनीमून डेस्टिनेशन”

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अब जब शादियों का सीज़न जोरों पर है, शादी के बाद नए जोड़े मैदानी क्षेत्रों से हनीमून मनाने पहाडों की रानी मसूरी आ रहे हैं।मैदानी क्षेत्रों की भागदौड़ और व्यस्त जिंदगी से दूर लोग पहाड़ों की तरफ अपना रुख कर रहे हैं, मसूरी का मॉल रोड नए जोड़ों के खिलखिलाते चेहरों और धूप की किरणों से भरा हुआ हैं। नए जोड़ों का हाथ में हाथ डाल कर चलना ऐसा प्रतीत होता है मानों उनके साथ ‘जस्ट मैरेड’ का लोगो भी साथ चला रहा हो। इतना ही नहीं मैदानी क्षेत्रों से आए लोग मॉल रोड का रिक्शा राईड और मसूरी से दूर-दराज के पहाड़ों को निहारते नजर आ जाते है।

बहुत से नए शादीशुदा जोड़ों की तरह अमृतसर के एक जोड़े ने भी मसूरी को अपना हनीमून डेस्टिनेशन चुना, अमृतसर के जेपी सिंह और उनकी पत्नी सुमीत से टीम न्यूजपोस्ट की बातचीत में बताया कि, “मसूरी बहुत ही सुंदर जगह है और अमृतसर से बहुत से लोग यहां अपना हनीमून मनाने आते है, हालांकि मैं यहां अपने परिवार के साथ एक बार पहले भी आ चुकी हूं इसलिए मैनें शादी के बाद भी यहां आने का फैसला किया।”

मसूरी के लिए ऑफ सीजन होने के बाद यहां के होटल व्यवसायिओं के चेहरे पर मुस्कान है जिसका कारण है नए जोड़ों का मसूरी को हनीमून डेस्टिनेशन चुनना। होटलों में नए जोड़ों के लिए स्पेशल पैकेज रखे गए हैं, मसूरी के होटल नंद रेजीडेंसी के प्रतीक कर्णवाल ने टीम न्यूजपोस्ट को बताया कि, “शादियों का सीजन आ चुका है और लोगों में हनीमून का क्रेज बढ़ रहा है,आजकल 70 प्रतिशत इन्कव्यरि हनीमूनर से आती है, इसलिए हमने पैकेज बनाए है जैसे कि दो रात से लेकर चार रात तक जिसमें हम बेड टी, ब्रेकफास्ट, साइट-सिंग के अलावा सब-कुछ इन्क्लुड करते हैं।”

होटल के स्पेशल पैकेज के साथ-साथ मसूरी का खुशमिजाज़ मौसम भी नव-विवाहित जोड़ों के लिए भी एक बोनस है, और अगर आपने अपना हनीमून डेस्टिनेशन बुक नहीं किया तो मसूरी आपके इंतजार में हैं।

दून में 24 हजार अवैध निर्माण भी चिह्नित

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देहरादून, राजधानी देहरादून की अधिकांश भूमि की ऊपरी परत जलोड़ी मिट्टी की बनी है, जो भूकंप के समय आसानी से बिखर सकती है। बावजूद इसके राजधानी और आसपास के इलाके में धड़ाधड़ बहुमंजिला इमारतें खड़ी की जा रही हैं और सुनियोजित विकास के प्रति जवाबदेह मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) की भूमिका भूकंपरोधी तकनीक को लेकर सिर्फ नक्शे तक सीमित है। नक्शे के एक कॉलम में भूकंपरोधी तकनीक दर्ज कराकर ही मान लिया जाता है कि निर्माण नियमानुसार हो जाएगा।

राज्य बनने से अब तक एमडीडीए ने 33 हजार से अधिक भवनों के नक्शे पास किए हैं। जबकि इस दौरान करीब 24 हजार अवैध निर्माण भी चिह्नित किए गए। जाहिर है इनमें भूकंपरोधी तकनीक की औपचारिकता भी पूरी नहीं हुई होगी। यही नहीं वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, नगर निगम व आसपास के क्षेत्र में 20886 ऐसे निर्माण भी खड़े हुए, जिनका रिकॉर्ड तक नहीं है। यानी कुल मिलाकर 43 हजार से अधिक निर्माण में तो नक्शों में भी यह खानापूर्ति नहीं की गई। फिर भी अधिकारी चाहते तो लोगों को रेट्रोफिटिंग तकनीक के माध्यम से पुराने भवनों को भूकंपरोधी बनाने के प्रति जागरूक करने व निर्माण से पहली संबधित भूमि की क्षमता के अध्ययन के लिए प्रोरित कर सकते थे। यह दोनों तकनीक राजधानी के वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान व रुड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) के पास है। वहीं संवेदनशील 38 शहरों की सूची जारी की थी। इसमें देश देश के सर्वाधिक संवेदनशील शहरों की सूची में दून का नाम भी शामिल है।

कौन देगा इन सवालों के जवाब? 
-भूकंप के अति संवेदनशील जोन-4 में बसे दून में शहरी विकास के लिए किए गए सिस्मिक माइक्रोजोनेशन के सुझावों का अनुपालन भवनों की ऊंचाई बढ़ाते समय क्यों नहीं किया गया।
-नेपाल में तबाही लाने वाले इंटर लैंड एक्टिव फॉल्ट जैसे 29 भूकंपीय फॉल्ट दून में हैं, सरकार भवनों की ऊंचाई बढ़ाने की हड़बड़ी में पहले इन खतरों से निपटने की तैयारी क्यों नहीं कर रही।
-सरकार दून के उन इलाकों को चिह्नित क्यों नहीं कर रही, जिन्हें सिस्मिक माइक्रोजोनेशन में सबसे अधिक संवेदनशील बताया गया है। ताकि वहां निर्माण की अनुमति उसी हिसाब से दी जा सके।
-भवनों की ऊंचाई बढ़ाने की जल्दी से पहले एमडीडीए के माध्यम से यह तस्दीक क्यों नहीं कराई जा रही कि अब तक खड़े किए गए बहुमंजिला भवनों में सुरक्षा के किन मानकों को ताक पर रखा गया है।

इन नियमों की अनदेखी 
समरूपता: भवन के विभिन्न खंडों को दोनों अक्षों पर समरूप रखना जरूरी
निरंतरता: वर्गाकार या आयताकार भवनों को भूकंप से अपेक्षाकृत कम नुकसान पहुंचता है। भवन के खंड की लंबाई उसकी चौड़ाई से तीन गुना से अधिक न बढ़ाएं।
अलग-अलग खंडों में बने भवन: भवन के बड़ा होने की स्थिति में उसे अलग-अलग खंडों में विभाजित किया जाना आवश्यक है, ताकि हर खंड में समरूपता व निरंतरता के नियमों का पालन कराया जा सके।
सादगी: भवन के मुख्य भाग से बाहर निकले भाग भूकंपीय लिहाज से असुरक्षित माने जाते हैं। लिहाजा डिजाइन से अधिक सुरक्षा पर ध्यान दिया जाए।
भवन की नींव: सुनिश्चित करें कि भवन निर्माण के लिए चयनित भूमि एक ही प्रकार की भूमि हो।

दून में भूकंप को लेकर खास एहतियात की जरूरत

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देहरादून, भूकंप के संवेदनशील जोन-चार में आने वाले दून में खास एहतियात की जरूरत है। वर्ष 2015 के अप्रैल माह में नेपाल में आए 7.8 मैग्नीट्यूड के विशाल भूकंप से दून की जमीन भी थर्राई थी। जो सरकार के लिए एक चेतावनी थी। इसलिए हमे भवन निर्माण में खास ध्यान रखना होगा।

सरकार ने दून में भवनों की अधिकतम ऊंचाई का मानक 21 से बढ़ाकर 30 मीटर कर दिया। जबकि वर्ष 2007 में 15 से बढ़ाकर 21 मीटर पहले ही किया जा चुका था। लेकिन अब सरकार प्रदेश के हर जिले में जिला स्तरीय प्राधिकरण बनाने का निर्णय ले चुकी है और तैयारी है कि बिल्डिंग बायलॉज भी पूरे प्रदेश में एक ही रहे, तो इस नई कवायद में भी भवनों की ऊंचाई नियंत्रित करने को लेकर कोई प्रयास नहीं किए जा रहे। जबकि इसी साल फरवरी में रुद्रप्रयाग में 5.8 रिक्टर स्केल का भूकंप आने के बाद इस दिसम्बर की छह तारीख को 5.5 रिक्टर स्केल का भूकंप दोबारा आ चुका है। ऐसे भी नहीं है कि दून में भूकंप के असर को लेकर कोई वैज्ञानिक अध्ययन सरकार के पास नहीं है। वर्ष 2002-03 व 2004-05 भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग ‘सिस्मिक माइक्रोजोनेशन ऑफ देहरादून अर्बन कॉम्पलेक्स’ नाम से रिपोर्ट तैयार कर चुका था। जिसमें स्पष्ट किया गया था कि दून की धरती की मजबूती किस स्थान पर कैसी है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने विभिन्न स्थानों पर जमीन में 30 मीटर की गहराई में ड्रिल भी किए।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दून ऐतिहासिक भूकंपीय फॉल्ट लाइन मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी) और मेन फ्रंटल थ्रस्ट (एमएफटी) की सीधी जद में है। ताजा अध्ययन से अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि दोनों ही ऐतिहासिक फॉल्ट सक्रिय स्थिति में हैं। यानी ये कभी भी बेहद शक्तिशाली भूकंप का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा, वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की सिस्मिक माइक्रोजोनेशन की रिपोर्ट में शहर को 50 जोन में बांटकर बताया गया था कि दून के किन इलाकों की ऊपरी सतह कमजोर है, जो बड़े भूकंप के समय बिखर सकती है। वाडिया के ही एक अन्य अध्ययन में दून में अन्य फॉल्ट लाइनें भी पता चली हैं। गंभीर बात यह कि हमारे अधिकारियों ने कभी इन रिपोर्ट पर गौर करने की जहमत ही नहीं उठाई और बिल्डर लॉबी को फायदा पहुंचाने के लिए उनकी अट्टालिकाओं की राह प्रशस्त करने को आंख मूंदकर भवनों की ऊंचाई के मानक बढ़ाते रहे। घंटाघर के आसपास का बाजार, राजपुर का व्यावसायिक क्षेत्र, हाथीबड़कला, जाखन, राजपुर, करनपुर, राजपुर रोड की ऑफिसर कॉलोनी, खुड़बुड़ा मोहल्ला आदि। अध्ययन में राजधानी के दक्षिण व दक्षिण पश्चिम भाग की जमीन की ऊपरी सतह काफी कठोर पाई पाई। इस दिशा में क्लेमेनटाउन, मोरोवाला, आइएसबीटी, वसंत विहार, पित्थुवाला, शिमला बाईपास, जीएमएस रोड आदि क्षेत्र आते हैं। 

विधानसभा का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित

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गैरसैंण। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने शुक्रवार कोे गैरसैंण में आयोजित शीतकालीन सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। सत्र की शुरुआत गुरुवार (सात दिसम्बर) को हुई थी। इस दौरान कुल 12 विधेयक पास हुए और एक सदन पटल पर रखा गया। अग्रवाल ने सत्र की समाप्ति पर जनप्रतिनिधियों, सचिवालय व विधानसभा सचिवालय के कर्मचारी और मीडियाकर्मियों के प्रति आभार जताया।

भराड़ीसैण शीतकालीन सत्र सरकार का महत्वपूर्ण निर्णय: मुख्यमंत्री

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भराड़ीसैण, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भराड़ीसैण में शीतकालीन विधानसभा सत्र को सफल आयोजन बताते हुए कहा कि सरकार का जो प्रयोजन था वह सफल हुआ। उन्होंने कहा कि इस सत्र में उत्तराखंड लोक सेवकों के लिए वार्षिक स्थानांतरण विधेयक पारित होना महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसकी प्रतीक्षा लंबे समय कर रहे थे। साथ ही उन्होंने अल्मोड़ा आवासीय विवि विधेयक पारित होने को भी उपलब्धि बताया। बतादें इस सत्र में छह विधेयक अधिनियम बनें।

भराड़ीसैण विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि इस सत्र में 3015 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट पारित हुआ। जिसमें महत्वपूर्ण बिंदु स्वच्छ भारत मिशन के लिए 107 करोड़, ग्रामीण खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए 08 करोड़, प्लास्टिक इंजिनियरिंग संस्थान के लिए 09 करोड़ से ज्यादा, आशा कार्यक़त्रियों के लिए 33 करोड़, औली इंटर नेशनल स्कीइंग के लिए 12 करोड़ तथा मुजफ्फर रुड़की रेलवे लाइन के लिए 120 करोड़ की बजट पास हुआ है। उन्होंने गैरसैंण-भराड़ीसैण में हुए कैबिनेट के महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी दी, जिसमें केदारनाथ उत्थान चेरिटेबल ट्रस्ट का गठन किया गया है। चतुर्थ वित्त अयोग की संस्तुति पर ग्राम पंचायतों को को 2.5 फीसदी का अधिक अनुदान देने की बात भी कही।

सरकार की ये उपलब्धियां: 
-भराड़ीसैण में सत्र के दौरान सरकार के विकास के बिंदूओं की जानकारी भी पत्रकारों को दी।
-चारधाम आॅलवेदर परियोजना का कार्य प्रगति पर बताया गया।
-ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन व रुड़की देवबंद रेलवे लाइन के कार्य हेतु तेजी से भूमि अधिग्रहण।
-किसानों की आय दूगनी करने के उद्देश्य से किसानों को दो प्रतिशत ब्याज पर एक लाख का ऋण।
-ग्रामीण विकास एवं पलायन आयोग का गठन।
-देहरादून ऋषिपर्णा, रिसपना नदी, अल्मोड़ा की कोसी नदी का पुर्नजीवीकरण समेत अपनी उपलबिध्यों को सरकार ने गिनवाया।

स्थायी राजधानी समेत तीन सूत्रीय मांग को लेकर अनशन

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गैरसैंण,  उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी सहित मद्य निषेध विभाग की पुर्नस्थापना और रोजगार के मौलिक अधिकार की तीन सूत्रीय मांगों को लेकर चन्द्रनगर गैरसैंण में आंदोलनकारियों का अनिश्चितकालीन अनशन दूसरे दिन भी जारी रहा।

कड़ाके की ठण्ड के बावजूद अनशनकारी रामलीला मैदान में डटे हुए हैं। स्थानीय महिलाओं द्वारा अनशनकारियों को अलाव सेंकने के लिए लकड़ी और अंगीठी उपलब्ध कराई गई, जबकि स्थानीय प्रशासन ने अनशनकारियों के स्वास्थ की जांच कर इतिश्री कर ली लेकिन अभी तक शासन-प्रशासन का कोई भी अधिकारी अनशन स्थल पर नही पहुंचा, जिसके परिणामस्वरुप अनशनकारियों में भारी रोष है। अनशनकारियों ने प्रशासन और राज्य सरकार के खिलाफ रोष व्यक्त करते हुए चेताया कि यदि राज्य की सरकार गैरसैंण को शीघ्र ही स्थायी राजधानी घोषित नहीं करती और हमारी मांगे पूरी नहीं करती है, तो राज्य सरकार को उत्तराखण्ड और जनविरोधी मानते हुए 11 दिसम्बर को अनशनकारी जनता के साथ भराड़ीसैंण कूच करते हुए विधानसभा का ताला तोड़कर जनता की सरकार बनाएंगे। जिसके लिए राज्य सरकार पूर्ण रूप से जिम्मदार होगी और समस्त हानि-लाभ की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी क्योंकि राज्य स्थापना के 17 सालों बाद भी स्थायी राजधानी के नाम पर उत्तराखण्ड की जनता से छलावा किया जा रहा है।

अनशनकारियों का कहना है कि जिस राज्य की परिकल्पना को लेकर उत्तराखण्ड के शहीदों ने अपने प्राण न्यौछावर किए वह आज भी कोसों दूर है। सुविधाओं के आभाव में गांव ख़ाली हो रहे हैं और राज्य सरकार मात्र पलायन आयोग बनाकर पलायन रोकने की बात कर रही है जो सर्वथा हास्यपूर्ण है। अनशनकारी विनोद जुगलान ने बताया कि उन्होंने अनशन पर बैठने की सूचना स्वयं जिलाधिकारी चमोली को फोन पर दी है। जबकि आन्दोलन और अनशन की लिखित सूचना शासन को पूर्व में दी गई है लेकिन अभी तक किसी भी अधिकारी ने अनशनकारियों की सुध नहीं ली।

प्रवीण सिंह का कहना है कि एक ओर स्वच्छ भारत का सपना देखा जा रहा है। दूसरी ओर अनशन स्थल के समीप शौचालय में पानी की व्यवस्था न होने के कारण दुर्गन्ध आ रही है। अनशनकारियों के लिए शौचालय की कोई व्यवस्था न होना प्रशासन की संवेदनहीनता को दर्शाता है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। आमरण अनशन में प्रवीण सिंह, राम कृष्ण तिवारी, विनोद जुगलान, महेश चन्द पाण्डेय शामिल हैं। अनशन स्थल में समर्थन देने के लिए सामाजिक आन्दोलनकारी आदेश चौधरी, अरविन्द हटवाल, सत्यपाल सिंह नेगी, देवेंद्र बिष्ट, कुलदीप नेगी, लक्ष्मण खत्री, कुंवर सिंह पंवार, वयोबृद्ध आन्दोलनकारी धूमा देवी आदि उपस्थित रहे।

डाक्टरों की कुर्सी की जंग

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स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए सरकार भले ही प्रयास कर रही हो लेकिन चिकित्सक है कि सरकार की मंशा पर जमकर पलीता लगा रहे हैं, ऊंची रसूख रखने वाले डाक्टर एक ही जगह पर सालों से काबिज है स्थानांतरण के बावजूद अपनी पहुँच का फायदा उठाकर स्थानांतरण रुकवा लेते हैं, और फिर शुरु होती है कुर्सी की जंग।
जी हां कुछ एसी ही जंग छिडी है जनपद उधमसिंहनगर के जसपुर में जहां एक चिकित्सक जमीन पर बैठ कर मरीजों को देख रहे हैं और सरकार को आईना दिखा रहे हैं।
प्रदेश में डाक्टरों के अभाव में पहले ही दम तोड रही स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के सरकार भले ही प्रयास कर रही हो, लेकिन सरकार की इस मंशा पर डाक्टर ही जमकर पलीता लगा रहे हैं, ऊंची रसूक रखने वाले डाक्टर एक ही जगह पर सालों से काबिज रहकर सरकार के आदेशों की जमकर धज्जियां उडा रहे हैं यही वजह है पहाडों पर डाक्टर नहीं जा रहे हैं।
ताजा मामला जसपुर सरकारी अस्पताल का है जहां स्थानांतरण होकर आये डाक्टर ने पदभार तो ग्रहण किया मगर जिस चिकित्सक का जसपुर अस्पताल से स्थानांतरण हुआ उन्होने अपनी पहुंच का लाभ उठाते हुए स्थानांतरण रुकवा दिया, एेसे में सरकारी अस्पताल में दो चिकित्सक एक ही पद पर कार्य कर रहे हैं जबकि स्थानांतरित होकर आये डा.शर्मा अब इसका विरोध जताते हुए जमीन पर बैठ कर ओपीडी चला रहे हैं और मरीजों का स्वास्थ्य परीक्षण कर रहे हैं, वहीं दोनों डाक्टरों की कुर्सी की जंग में मरीजों को इसका खामियांजा भुगतना पड रहा है।

सर्च अभियान में लापता हेमकुंड यात्रियों का मिला सामान

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गोपेश्वर,  शुक्रवार को सर्च अभियान के दौरान मारवाड़ी से हेलंग बाईपास के समीप एक जैकेट मिला है, उसमें कुछ सामग्री मिली है, उसके अनुसार यह जैकेट हरपाल सिंह पुत्र चरण सिंह की है। हेमकुंड की यात्रा से लौटे इनोवा कार में आठ लोग सवार थे, जो टंया पुल के समीप दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। इसके लिए सर्च अभियान चलाया गया लेकिन कुछ दिनों बाद रोक दिया गया था।

बीते मई माह में जोशीमठ-गोविंदघाट हाईवे पर टंया पुल के पास इनोवा कार के दुर्घटना ग्रस्त होने से जिन आठ सिख तीर्थ यात्रियों के लापता होने की खबर ने सनसनी मची थी, उनमें दो अप्रवासीय भारतीय सिख भी थे। जब अमेरिका दूतावास से खोजबीन के लिए दबाव पड़ा तो पीएसी के गोताखोर, एसडीआरएफ व चमोली पुलिस ने सर्च अभियान फिर तेज किया।

सर्च अभियान के दौरान अलकनंदा नदी के किनारे एक जैकेट मिली। पुलिस कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस जैकेट की जेब से आधार कार्ड मिला है, जो संभवतया गुमशुदा हरपाल का है। साथ ही रूमाल, कंघा और रिस्टबैंड भी मिला। आधार कार्ड के आधार पर जानकारी परिजनों को भेजी दी गई है।

 

खनन में चल रहा रिश्वत का खेल

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हरिद्वार, हरिद्वार प्रशासन ने अवैध खनन की रोकथाम के लिए भले ही सभी अधिकारियों को कड़े निर्देश दिए हों तथा पुलिस प्रशासन द्वारा छापामार कार्रवाई भी की जा रही हो, किन्तु अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध खनन का खेल जारी है।

खनन की अनुमति मिलने के बाद आलम यह है कि हर कोई खनन के खेल में खोया हुआ है। इस खेल में अधिकारी हों या पुलिसकर्मी सभी संलिप्त हैं। अधिकारी इस कदर मस्त हैं कि खुलेआम खनन कराने के एवज में पैसे की मांग कर रहे हैं। ऐसा ही एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें वन विभाग के एक अधिकारी खनन कराने के नाम पर न केवल खनन करने वालों से पैसे ले रहे हैं। बल्कि वे इसके लिए बची हुई रकम को भी जल्द देने पर जोर डाल रहे हैं।

करीब तीन मिनट 46 सेकेंड के इस वीडियो में वन अधिकारी खनन के एवज में पैसे की मांग करते हए देखा जा सकता है। वीडियो में टेबल पर पैसे रखे हुए हैं और यह अधिकारी बाकी पैसों को जल्द देने की बात कर रहा है। यह वीडियो हरिद्वार के भोगपुर क्षेत्र का बताया जा रहा है, जिसमें जानकारी के अनुसार बीस हजार रुपये में खनन किए जाने की बात हुई। पहले दस हजार और उसके बाद बाकि के दस हजार रुपये देने की बात तय हुई।

भोगपुर में वन चौकी प्रभारी अजय कुमार ध्यानी के इस वीडियो में वे पुलिस और अन्य किसी से डर न होने की बात कर रहे हैं। वीडियो में साफ कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि उन्हें पुलिस से कोई डर नहीं है, डर है तो केवल अपने अधिकारी का। इस वीडियो के आने के बाद एक बात तो साफ हो गई है कि खनन को लेकर अधिकारियों का रवैया किस तरह का होता है। इस वीडियो में दिख रहे अधिकारी पर किसी तरह की कार्रवाई होगी इस पर भी संदेह है।