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फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड की दो डाक्यूमेंट्री को मिला राष्ट्रीय पुरस्कार

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नेशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल में उत्तराखंड की दो डाक्यूमेंट्री फिल्मों को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। निवास ओली की फिल्म ‘शनौला: वाटर टेंपल आफ हिमालयाज’ को स्वतंत्र फिल्म मेकर की श्रेणी में कांस्य पदक हासिल हुआ। इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने जल संरक्षण की पारम्परिक तकनीकी के माडल के रूप में नौले को प्रदर्शित किया है। इसके अलावा मनीष ओली की फिल्म ‘कम होती दूरियां’ को बेस्ट आन स्पाट फिल्म के रूप में चुना गया। इस श्रेणी में फेस्टिवल के दौरान साइंस इन डेली लाइफ विषय दिया गया था, जिस पर मोबाइल से पांच मिनट की फिल्म बनानी थी।
मनीष ने यातायात के साधनों पर फिल्म बनाई। नेशनल साइंस फिल्म फेस्टिवल में स्वतंत्र फिल्म मेकर के अलावा स्कूल व कालेज के छात्र-छात्राओं के लिए अलग से एक श्रेणी बनाई गई है। स्कूल या कालेज के छात्र-छात्राएं विज्ञान के विषयों पर आधारित फिल्में बनाकर भेज सकते हैं। उत्तराखंड की झोली में दो अवार्ड आने के बाद अन्य युवा भी इससे प्रेरित होंगे और प्रदेश में विज्ञान फिल्मों को एक नया आयाम मिल सकेगा।

तो आ गया ”लोसर” यानि तिब्बती समुदाय का नया साल

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जिस तरह से भारतीय तिब्बती प्रवासी दुनिया भर में फैल रहे हैं,उसी तरह “लोसर” यानि तिब्बती नया साल दुनिया भर में एक अंर्तराष्ट्रीय त्यौहार बन चुका है। इस साल यह 27 फरवरी को मनाया जा रहा है। लोसर एक तिब्बतन शब्द है जिसका मतलब है नये साल की शुरुआत। “लओ” का मतलब साल और “सर” का मतलब नया। अगर हम इतिहास के पन्नें पलटें और इसके बारे में बात करें तो प्री-बुधिस्ट समय में तिब्बती बोन धर्म को मानते थे तब हर साल सर्दियों के समय में एक धार्मिक समारोह का आयोजन किया जाता था, जिसमें लोग धूप का प्रयोग करके स्थानीय आत्माओं, देवताओं और संरक्षकों को नए साल में लाने के लिए मनाते थे। आज ज्यादा कुछ नहीं बदला है, न्यू यार्क, यूएसए में रहने वाले स्वांग ल्हाट्सो और उनके तीन लोगों के परिवार के लिए लोसर आज भी वही महत्व रखता है जो तब था जब वह स्कूल में मसूरी में थी।उनके लिए घर का बदल जाना तब खलता है जब वह अपने समुदाय के लोगों के साथ अपने घर नए साल का जश्न नहीं मना पाती।

टेनली और उनका परिवार अब टोरोंटो में रहते हैं।कनाडा में मनाया जाने वाला लोसर एक ऐसा त्यौहार है जिसकी वजह से दूर दूर बसे तिब्बती समुदाय के लोग एक साथ आते है, क्योंकि वह सब एक साथ तिब्बती गुरु दलाई लामा के भाषण को सुनते हैं और आने वाले साल में उनके कही हुई बातों को अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं। लोसर वैसे पूरे चांद के समय पहले महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस दिन एक अलग तरह की पूजा अर्चना करने के बाद नए साल के उत्सव की तैयारी शुरु कर दी जाती है। लोसर के दिन की गई सजावट को बहुत ही बारीकियों और खूबसूरती से किया जाता है जिसे लामा लोसर कहते है।उसके बाद लोगों का मनोरंजन करने के लिए नृत्य प्रस्तुत किया जाता है जो आने वाले साल के लिए सभी को शुभकामनाएं देता है। इस दिन अलग अलग तरह की लाइटों से घरों को सजाया जाता है जिससे बुरी आत्माओं को घर से दूर किया जा सके। बलि चढ़ाने के लिए आटें से बनें जानवरों और दुष्ट आत्माओं का प्रयोग किया जाता है जिसको टोरमा कहते हैं।

मसूरी और देहरादून के लगभग सभी तिब्बती समुदाय के लोग,जवान से बुजुर्ग इस दिन अपनी पारंपरिक पोशाक में तैयार होकर एक दूसरे से मिलते और बधाईं देते हैं। बच्चे और औरते अपनी रंग बिरंगी पोशको में घरों से बाहर निकलकर उत्सव मनाते और एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं।

“जहां भी घर जैसा माहौल,शांति और समृद्धि हो,बस वही जगह है जहां वो अपना घर पा लेते है, मैं जहां भी जाता हूं मुझे मेरा तिब्बत मिल जाता है।” दलाई लामा के यह शब्द हर तिब्बत समुदाय के लिए सच है और हर कोई इनको मानता है। लगभग पूरा तिब्बती समुदाय चाहें जहां भी हो घर में या घर से दूर जब नया साल मनाता है तो ऐसा लगता है मानों उन्होंने अपने घर से दूर एक नया घर बसा लिया हो।

मशरुम गर्ल दिव्या रावत को मिलेगा नारी शक्ति पुरस्कार

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‘’झुक सकता है आसमां भी,अगर तबियत से पत्थर उछाले कोई’’

यह पंक्तियां देहरादून “मशरुम गर्ल” के नाम से मशहूर दिव्या रावत पर बिल्कुल सटीक बैठती है।दिव्या को आने वाले 8 मार्च यानि महिला दिवस पर भारत सरकार द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा। दिव्या रावत उत्तराखंड की सभी लड़कियों के लिए मिसाल बनकर सामने आई हैं। दिव्या उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के चमोली जिले के कोटकंडारा गांव की रहने वाली हैं।दिव्या ने एमिटी यूनिर्वसिटी से बैचलर इन सोशल वर्क की डिग्री ली,उसके बाद इग्नू से मार्स्टस इन सोशल वर्क के बाद लगभग दो साल शक्ति वाहिनी एनजीओ में  ह्यूमन राइट और ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर काम किया है।

मशरुम बाकी सब्जियों के मुकाबले स्वास्थ्यवर्धक,स्वादिष्ट और मंहगा है।मशरुम की मंहगाई और डिमांड को देखते हुए दिव्या ने मशरुम को चुना।अपने पहले मशरुम प्लांट की शुरुआत दिव्या ने मोथरावाला देहरादून से की।इसके बाद दिव्या के इस मिशन में लोग इनसे जुड़ते गए और पहले प्लांट से शुरू कर अब तक इन्होंने उत्तराखंड में लगभग 53 सेंटर शुरु कर दिए हैं।यह बात सुनने में तो आसान लगती है लेकिन इसके लिए दिव्या ने दिन रात एक की है और आज दिव्या के साथ 2000 से ज्यादा लोग अपनी इच्छा से जुड़े हुए हैं।दिव्या की सोच सिर्फ इतनी थी कि पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोका जा सके। आज जितने भी लोग दिव्या के साथ काम कर रहे वह आत्मनिर्भर और अपनों के साथ हैं। जहां तक सड़कें नहीं पहुंची,लेकिन जहां इंटरनेट की पहुंच है वहां से भी लोग वाट्सएप और इंटरनेट के माध्यम से दिव्या से जुड़े हैं और काम कर रहे हैं।गढ़वाल के ऊंचाई वाले गांव, जौनसार और दूर दराज़ के गांवों में लोग दिव्या से जुड़कर काम कर रहे हैं। दिव्या यह मानती हैं कि अभी उन्होंने केवल 2 प्रतिशत काम किया है,बाकी 98 प्रतिशत काम करना अभी बाकी है। दिव्या कहती है कि “मैं मशरुम की खेती को पूरे देश में फैलाना चाहती हूं, 2017 के आखिरी तक कम से कम 500 सेंटर का टारगेट लेकर चल रहीं हूं और मुझे पूरा विश्वास हैं कि लोगों का साथ और मेरी मेहनत रंग लाएगी।”

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काम के दौरान  बेरोजगारी और थोड़े से पैसों की वजह से बहुत से लोगों को घर से दूर रहकर काम करते देख दिव्या ने मन में ठान ली की वह कुछ ऐसा करेंगी जिससे लोगों को अपने घर से दूर नहीं जाना पड़ेगा। इस सोच के साथ दिव्या ने अपनी जिंदगी की नई पारी मशरुम की खेती से शुरु की। दिव्या का मानना है कि वो कुछ हटकर नहीं कर रहीं, उन्होंने लोगों की सेवा और सहायता करने के लिए ही सोशल वर्क डिर्पाटमेंट में पढ़ाई की थी और इसी इंटलेक्चुअल फिल्ड में ही वह काम भी कर रहीं हैं। दिव्या आज “मशरुम गर्ल” के नाम से मशहूर हैं लेकिन इस काम की शुरुआत में उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह इस काम के जरिए लोगों में पहचानी जायेंगी। दिव्या कहती हैं कि “जब मैनें इस काम के बारे में सोचा था तब मुझे सिर्फ यह पता था कि मैं काम करुंगी चाहें मुझे सफलता मिलें या नहीं।” दिव्या कहती हैं कि “यह नेम,फेम जो भी है इसके बारे में मैंने सोचा नहीं बस यही था कि अपने काम पर फोकस करुंगी और और किसी भी कीमत पर अपने पैर वापस नहीं खीचूंगी।”

दिव्या के निरंतर प्रयास और उनकी मेहनत की वजह से हजारों लोगो को रोजगार मिला और सरकार की तरफ से उनके इस प्रयास की सराहना भी की गई है।

 

खाई में गिरी बोलेरो, आठ की मौत

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देहरादून से पौड़ी आ रही एक अनियंत्रित बोलेरो की गहरी खाई में गिरने से आठ लोगों की मौत हो गई। वाहन में कुल 14 लोग सवार थे।
देहरादून से पौड़ी जनपद के पाबौ की ओर आ रही एक बोलेरो (यूके 07 टीए 7571) सबधार खाल के कुंडाधार में नियंत्रण खो बैठी और गहरी खाई में जा गिरी। हादसे की सूचना मिलते ही नजदीकी पुलिस स्टेशन और राहत बचाव दल ने मौके पर पहुंचकर रेस्क्यू चलाया।
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने बताया की सभी घायलों को श्रीनगर अस्पताल में उपचार के लिए भर्ती कराया गया है, जिनकी हालत गंभीर बताई जा रही है। हादसे में छह लोगों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था। जबकि दो अन्य ने अस्पताल में आखिरी सांस ली।
मृतक में सुमन सिंह (11 वर्ष) पुत्री पदम सिंह ग्राम मल्ली पौड़ी, हिमा सिंह (30 वर्ष )पत्नी पदम सिंह ग्राम मल्ली पौड़ी, श्रीमती सीमा (28 वर्ष) पत्नी रमेश जुनौली रूद्रप्रयाग, दलवीर सिंह (55 वर्ष) पुत्र छोटा जिला पौड़ी, सरदार सिंह (40 वर्ष) पुत्र खेत सिंह पौड़ी, प्रताप सिंह (62 वर्ष) पुत्र अकालू पौड़ी, नागेश ज्योति (25 वर्ष) पुत्र अशोक कुमार चन्द्रावनी पटेलनगर देहरादून, शामिल हैं, जबकि एक शिनाख्त नहीं हो सकी है।
वहीं घायलों में, पदम सिंह 32 वर्ष, सुजल सिंह 8 वर्ष, संजना 3 वर्ष, चांदनी 5 वर्ष, सलोनी 8, अनूप 34 वर्ष का इलाज चल रहा है।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में पिथौरागढ़ ने सबको पछाड़ा

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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में पिथौरागढ़ जिले के किसानों ने नया रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। मैदानी क्षेत्रों को मात देते हुए जिले में सर्वाधिक 20 प्रतिशत किसानों ने इस योजना के तहत अपनी फसल का बीमा करवाया है। राज्य में सर्वाधिक उत्पादन करने वाले हरिद्वार और उधमसिंह नगर जैसे बड़े जिले भी इस मामले में पिथौरागढ़ से पीछे है।
बताते चलें कि मौसम की मार से किसानों को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है। इस योजना से कवर रहने वाले किसानों को सूखा, अतिवृष्टि या आपदा जैसी स्थिति में फसल को हुए नुकसान की भरपाई बीमा कंपनी द्वारा की जाती है। सरकार अधिक से अधिक किसानों को इस योजना में शामिल करने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। इसके बावजूद किसानों ने इस योजना में खास रुचि नहीं दिखाई है। प्रदेश में 7.51 प्रतिशत किसानों ने ही रबी की फसल के लिए योजना में दिलचस्पी दिखाई।
प्रदेश के बड़े जिले इस मामले में काफी पीछे हैं। इन जिलों में पांच से दस प्रतिशत किसानों ने ही अपनी फसलों का बीमा करवाया है। पहाड़ी जिलों में स्थिति संतोषजनक है। प्रदेश के सबसे सीमांत जिले पिथौरागढ़ के किसानों ने इस योजना में खासी दिलचस्पी दिखाई है। जिले के बीस प्रतिशत किसान इस योजना से जुड़े हैं।
मुख्य कृषि अधिकारी अभय सक्सेना ने इसे बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि विभाग ने इस सफलता के लिए व्यापक अभियान चलाकर किसानों को जागरूक किया था। जिसका नतीजा सामने है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष शीतकालीन वर्षा की कमी से फसलों के प्रभावित होने पर किसानों को योजना का लाभ मिलेगा। उन्होंने बताया कि पिथौरागढ़ जिले में कुल 79846 किसान है जिसमें से 16394 किसानों ने अपनी फसल का बीमा उक्त योजना के तहत कराया है।
अभय सक्सेना ने बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को आपदा की स्थिति में हुए नुकसान की भरपाई के लिए शुरू की गई है। योजना में किसानों को अपनी फसल की कीमत का मात्र सवा प्रतिशत प्रीमियम जमा करना होता है। शेष धनराशि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है। नुकसान होने पर किसान को बीमित राशि का भुगतान किया जाता है।

हल्द्वानी के फौजी परिवार में हुए दोहरे हत्याकाण्ड का खुलासा

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उत्तराखण्ड में नैनीताल जिले की हल्द्वानी पुलिस ने डहरिया सत्यलोक कॉलोनी में रिटायरर्ड कर्नल डी.के.साह की पत्नी और मॉ की लूट के बाद हत्याकाण्ड का खुलासा कर दिया है । वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जन्मेजय खण्डूरी ने बहुउददेशीय भवन में प्रेस वार्ता कर इस दोहरे हत्याकाणड का खुलासा किया । पुलिस के अनुसार बीते मंगलवार 21 फरवरी की रात को रिटायर्ड कर्नल डी.के.साह के घर में कर्नल के बटमेंन महेन्द्र गोश्वामी, कारपेन्टर अख्तर अली और इनके साथ मल्लू नमक व्यक्ति ने लूट के बाद कर्नल की पत्नी प्रेरणा और मॉ शान्ति की चाकुओ से गर्दन  काटकर और चेहरे पर वार कर हत्या कर दी थी । एस.एस.पी.ने खुलासा करते हुए बताया कि हत्या का मकसद लूट था लेकिन जैसे ही कर्नल का बटमेंन महेन्द्र,अख्तर व मल्लू मिलकर घर की अलमारी खोल रहे थे तो कर्नल की पत्नी उठ गयी और उन्होने बटमेंन महेन्द्र और अख्तर को पहचान लिया । इस लिये प्रेरणा की हत्या कर दी और जब ऊपर दूसरे माले में तीनो आरोपी लॉकर खोल रहे थे तो वहां कर्नल की मॉ के उठकर लाईट जलाने पर तीनो ने मिलकर कर्नल की मॉ शान्ति देवी को भी मौत के घाट उतार दिया ।  21 फरवरी की रात साढे बारह बजे से सुबह चार बजे तक घर से 15 तोला सोना और 25 हजार नगदी लूटकर फरार हो गए ।

पुलिस के अनुसार चॉदी की कटोरी कैश और कर्नल के ए.टी.एम.कार्ड आर्मी कार्ड सहित अन्य कार्ड हत्यारोपी बटमेन महेन्द्र व अख्तर से बरामद कर लिये गये है । पुलिस ने बताया की अभी तीसरा आरोपी मल्लू फरार है । पुलिस के अनुसार सोने के आभूषण दोनो ने मल्लू को बेचने के लिये दिये थे । मल्लू तभी से फरार है और पुलिस की दो टीमें मल्लू की तलाश कर रही है । वही मामले के खुलासे को लेकर डी.आई.जी. ने पॉच हजार और एस.एस.पी. ने ढाई हजार का इनाम पुलिस टीम को दिया है ।

नैनीताल घूमकर लौट रही कार हादसे में युवक की मौत

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नैनीताल से 13 किलोमीटर दूर बेलुवाख़ान के पास देररात इनोवा कार संख्या यू.के.06 वाई 5556 के खाई में गिरने से एक की मौत और दो घायल । लगभग 12:30 रात ज्यूलिकोट में बेलुवाखान के सनराइज़ होटल के समीप हुई इस घटना में युवक नैनीताल से रुद्रपुर की तरफ जा रहे थे जब कार अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई और उसमें सवार 22 वर्षीय वीरपाल ग्रोवर पुत्र राजेन्द्र सिंह ग्रोवर की मौके पर ही मौत हो गई। दोनों घायलों कशिश खेरा पुत्र राम किशन खेरा और वैभव ग्रोवर को उपचार के लिए हल्द्वानी के अस्पताल भेज दिया गया । पुलिस ने बताया की उन्हें सूचना मिलने के बाद तल्लीताल और ज्यूलिकोट पुलिस मौके पर पहुंची और देर रात सभी लोगों को रेस्क्यू कर लिया गया था । बताया की गाड़ी में सवार सभी युवक रुद्रपुर के थे जिनके परिजनों को इसकी सूचना दी गई और सभी मौके पर पहुँच गए थे । सभी युवक नैनीताल घूमकर इंनोवा कार से वापस लौट रहे थे जब ये हादसा हो गया ।

पुलिस की रेस्क्यू टीम में थानाध्यक्ष तल्लीताल प्रमोद पाठक, ज्यूलिकोट चौकी इंचार्ज मनवर सिंह, राजेन्द्र सिंह समेत एस.डी.आर.एफ.की टीम राहत कार्य में जुटी थी

ग्लोबल वार्मिंग के चलते जल्द खिल उठे बुरांस के फूल

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भारत की 6 ऋतुओं में से एक वसंत ऋतु है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार फरवरी, मार्च और अप्रैल माह में वसंत ऋतु रहती है। वसंत कोऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है।  इस समय पंच-तत्त्व यानी जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहकरूप दिखाते हैं।ऐसे में  आकाश भी स्वच्छ रहता है, वायु सुहावनी लगती है, अग्नि यानी सूर्य रुचिकर हो जाता है तो जल पीयूष के समानसुख दाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। पुरे राज्य में वसंत ऋतु कामहोत्सव शुरू हो जाता है। उसी तरह उत्तराखंड की राजधानी राज भवन में वसंत ऋतु महोत्सव की तैयारिया भी जोरो शोरो पर हैं।

देवभूमि से ठंडक ने अब हौले-हौले विदाई की ओर कदम बढ़ा दिए हैं और इसी के साथ बिखरने लगी है वासंती छटा। खेतों में लहलहातीसरसों की फसल खिल उठे है वहीं पहाड़ में खेतों की मुंडेर और चट्टानों पर खिले फूल वसंत का स्वागत करते नजर आ रहे हैं।

मौसम भी इसमें सुर से सुर मिला रहा है। शायद तभी तीन दिन से डेरा डाले ये बादल भी शांत हैं। उधर, मौसम विभाग की मानें तो मौसमका यह रंग बरकरार रहेगा। मौसम से अब ठिठुरन करीब-करीब गायब हो चला है। वातावरण में दिन में हल्की गर्मी महसूस होने लगी है,जबकि सुबह-शाम व रात में हल्की ठंडक हैं।यानी बेहद खुशनुमा मौसम। और इसी के साथ बिखर रही है वासंती छटा। पेड़-पौधों पर नईकली फूटने लग गई हैं तो खेतों में लहलहाते सरसों के फूल आकर्षित कर रहे हैं। पहाड़ी इलाकों को ही लें तो खेत-खलिहानों की मुंडेर औरचट्टानों पर खिले फ्योंली के पीले फूल उसके सौंदर्य में चार -चांद लगा रहे हैं। पहाड़ो में बुरांस के सुर्ख फूल गजब की लालिमा बिखेर रहे हैं।

यानी हर तरफ नजर आता है तो सिर्फ और सिर्फ वसंत की छटा। और इंद्रदेव भी इसमें कोई खलल नहीं डालना चाहते। शायद यही वजहभी है कि तीन दिन तक डेरा डाले बादल को बरसना गवारा नहीं हैं।

चमोली जिला की 40 वर्षीय श्रीमती सुनीता जो पर्यवेक्षक के तौर पर कार्यरत हैं उन्होंने बताया कि उनकी फैक्ट्री में जैम, चटनी,अचार व बुरांस का रस तैयार किया जाता है, हमेशा मार्च के महीने के समय ही बुरांस खिलता था पर इस बार पहले ही हमारे फैक्ट्री में आ गया है। ऐसे ही मसूरी वासियों ने कहा कि आमतौर पर बुरांस हमेशा मार्च के आखिरी दिनों में खिला उठा दिखता था पर इस बार फरवरी के शुरुआती दिनों में ही खिलता नजर आ रहा है।सीईडीएआर के वन विशेषज्ञ विशाल सिंह के अनुसार इन सर्दियों में फूलों का जल्दी खिलना सर्दियों में कमी आना है और गर्म मौसम का आगाज है। इस तरह अगर हमने गौर किया हो तो दिसम्बर के मौसम में गर्मी का आना अपने नियमित समय से पहले आने से बुरांस की कली खिल गयी है।

मौसम परिवर्तन एक कड़वा सच है, और बुरांस बाकी और पेड़ो की तरह अपने आप को उसके अनुरूप ढाल चूका है।

उत्तराखंड में 60 प्रतिशत कम हुई जाड़े की बारिश

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उत्तराखंड जो अपनी सर्दियों के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है पर भी वैश्विक गर्मी का भारी असर पड़ रहा है। जाड़ों में यहां हफ्ते-हफ्ते की झड़ी लगती थी,लेकिन इसे जनसंख्या घनत्व का कारण कहें या वैश्विक गर्मी का बरसात काफी कम हो गई है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्ष सर्दियों की तुलना में इस बार वर्षा लगभग 60 प्रतिशत कम रही है। जिसके कारण प्रदेश में सूखे की स्थिति आ गई है। मई में दहकने वाले जंगल अभी से जलने लगे हैं और अप्रैल के बाद खिलने वाला बुरांस अभी से खिल गया है,जो इस बात का प्रतीक है कि गर्मियों में पहाड़ भी भीषण गर्मी की चपेट में रहेंगे।

मौसम विभाग के विशेषज्ञ इसका कारण पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता में कमी आना बता रहे हैं। दूसरी ओर वैश्विक गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग )का पूरा-पूरा प्रभाव भी जाड़े की बारिश पर पड़ रहा है। जिसके कारण नमी अपेक्षाकृत कम हुई है। मौसम विभाग के आंकड़े इस बात की घोषणा करते हैं कि राज्य में इस बार शीतकाल के दौरान औसतन सामान्य से लगभग 50 प्रतिशत बारिश कम हुई है।
दिसंबर से फ रवरी तक सामान्य औसत बारिश 104 मिमी मानी जाती है,लेकिन इस वर्ष यह लगभग 60 के मिमी के आसपास पहुंची है। वैज्ञानिकों के अनुसार शीतकालीन वर्षा पश्चिमी विक्षोभ पर आधारित होती है,जो इस बार सामान्य से कम रही। ऐसा नहीं है आसमान में तो बादल आए, लेकिन जो बादल आए वह भी अधिक शक्तिशाली नही रहे जिसके कारण बारिश न के बराबर हुई है। यही कारण है कि सर्दियां भी काफी कम रही हैं। शीतकालीन वर्षा के अभी कुछ दिन हैं, लेकिन अब तक जो अनुमान लगाया जा रहा है उसके अनुसार वर्षा में काफी गिरावट है। इसका पूरा-पूरा असर इस बार की ठंड पर रहा है।
वर्षा न होने का पूरा प्रभाव जाड़े पर पड़ा है वहीं आने वाली गर्मियां पेयजल के किल्लत के नाम पर रहेंगी। इसका पूरा-पूरा दुष्प्रभाव गर्मियों में दिखाई देगा। पेयजल की किल्लत के साथ-साथ वनों की आग तापमान को और बढ़ाएगी,जिसके कारण पहाड़ों का तापमान भी आसमान छूने लगेगा। मौसम विभाग के निदेशक डा. विक्रम सिंह का कहना है कि ठंड की बारिश में जो कमी आई है, अब उसकी भरपाई मार्च-अप्रैल में होने वाली वर्षा पर टिकी हुई है। पश्चिमी विक्षोभ अन्तिम अप्र्रल तक सक्रिय रहता है। इसके बाद मई मध्य अथवा जून से प्री-मानसून शुरू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि वर्षा कम होने के कारण नमी जल्दी खत्म होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप गर्मी अभी से बढने लगी है। अन्तिम फरवरी में1 से 3 डिग्री सेल्सियस पारा ऊपर जाना शुरू हो गया है।
मौसम विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में सर्दियों में 67 प्रतिशत वर्षा कम रिकार्ड की गई है। ऊधमसिंह नगर कुमाऊं में इस मौसम में 96 प्रतिशत बारिश घटी है जिसके कारण क्षेत्र प्रभावित है,जबकि इसके चपेट में कई जिले आए हैं। शीतकालीन मौसमी वर्षा देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि उत्तराखंड में जनवरी और फरवरी में बारिश का केवल 34.6 मिलीमीटर प्राप्त किया। मौसम विभाग ने बताया कि मौसम शुष्क रहने की उम्मीद है और तापमान में वृद्धि की उम्मीद है।

कहां कितनी कम बारिश जाड़ों में
जिलेवार बारिश का प्रतिशत, अल्मोड़ा 81 , बागेश्वर 94, चमोली 73, चंपावत 83,देहरादून 60 , पौड़ी गढ़वाल 80, टिहरी गढ़वाल 51 , हरिद्वार 78, नैनीताल 79, पिथौरागढ़ 57, रूद्रप्रयाग 80, ऊधम सिंह नगर 96 ,उत्तरकाशी 50, कुल अनुपातिक प्रतिशत 67 है।

जिंदा महिला को मृत घोषित कर  विभाग ने पेंशन रोकी

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अब तक ऐसी कहानी  सिर्फ फिल्मो में देखी जाती थी पर यह अब सच का सामना एक महिला कर रही है। चकराता के गांव मलेथा(भेवना) निवासी विधवा फिको देवी को मृत दर्शाकर समाज कल्याण विभाग ने पेंशन बन्द कर दी है। अब वो अपने जिन्दा होने के सबूत अफसरों को दिखाकर पेंशन की गुहार लगा रही है। मृत होने का महिला को तब पता चला जब वह देहरादून पहुंचकर एडीएम प्रशासन हरवीर सिंह के कार्यलय पहुंची। वहां उनको जानकारी मिली कि किसी ने उनका मृत प्रमाण पत्र लगाया हुआ है जिसके चलते उनकी पेंशन बंद कर दी गई है। फरवरी 2011 से उनकी पेंशन बंद कर दी गई थी। तब से वह पेंशन शुरू कराने को वो अफसरों के चक्कर काट रही है, लेकिन इसे विभाग की उदासीनता ही कहेंगे कि इतना सब कुछ पता चल जाने पर भी महिला की पेंशन बहाल नहीं की गई है। उन्होंने अपना खाता संख्या से लेकर नवम्बर में बनवाया आधार कार्ड भी एडीएम को पेश किया। हांलाकि एडीएम ने महिला से लिखित में शिकायत लेकर समाज कल्याण अफसरों को तत्काल उसकी समस्या का समाधान का निवारण करने को कहा है। साथ ही ग्राम सभा के ग्राम विकास अधिकारी दिनेश उपाध्याय ने बताया कि जन्म या मृत्यु प्रमाण पत्र  ग्राम विकास अधिकारी के स्तर से ही जारी किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होने नवम्बर 2014 में चार्ज लिया था। यह मामला उनसे पूर्व का है। यदि मृत्यु का गलत प्रमाण पत्र जारी हुआ है तो उसे दुरस्त कर पीड़ित महिला को पेंशन चालू कराई जायेगी।