नैनीताल जिले के रामनगर स्थित स्टार प्लाईवुड फैक्ट्री में लगी भीषण आग । तेज आग को देखते हुए दमकल विभाग की गाड़ियां आग बुझाने के लिए बुला ली गई हैं । आग से लाखों का नुक्सान होने की सम्भावना है । गनीमत ये है की इस हादसे में किसी की जान नहीं गई ।
रामनगर के ग्राम तेलीपुरा स्थित स्टार प्लाईवुड में अचानक आग लगने से फैक्ट्री में काम कर रहे कर्मचारियों में भगदड़ मच गई । फैक्ट्री के प्रबंधन ने आग लगने की सूचना फायर स्टेशन को दी । सूचना के बाद दो दमकल वाहन मौके पर पहुचे । दमकल कर्मियों ने मौके पर पहुँचकर कड़ी मशक्कत के बाद जल्द ही आग पर काबू पा लिया गया । फ़िलहाल टीम आग से हुए कुल नुक्सान के आंकलन में जुट गई है । आग से किसी प्रकार की भी जनहानी नहीं हुई है ।
रामनगर प्लाईवुड फैक्ट्री में भीषण आग
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चलती कार में लगी आग,चालक ने कूद मारकर बचाई जान
उत्तराखण्ड के सितारगंज में एक नई गाडी में चलते हुए आग लगने से चालक ने कूद मारकर अपनी जान बचाई।मामले के अनुसार सितारगंज निवासी अमरीक सिंह अपनी नई गाड़ी महिंद्रा क़े.यू.वी.100 संख्या UKO6 AK 4579 से नानकमत्ता की तरफ को जा रहे थे जब उनकी कर के इंजन से धुआं आने लगा और देखते ही देखते उसमें आग लग गई ।
इससे कुछ समय पहले ही चालक अपने परिवार को सितारगंज छोड़कर वापस घर की तरफ लौट रहा था । जैसे ही कार बिज़टी स्थित पुल के समीप पहुंची अचानक उसमें शॉर्ट सर्केट हो गया जिससे कार में आग लग गयी । चालाक ने गाडी से निकलते धुएं और आग की लपटों को देखा तो उसने होश उड़ गए और उसने अपनी जान बचने के लिए गाडी से छलांग लगाकर अपनी जान बचाई । गाड़ी को सुविधाजनक बनाने की होड़ में अब ये गाड़ियां ज्यादा इलेक्ट्रिकल होती जा रही हैं जिससे छोटी सी कमी या चूक इसमें ऐसी ही खतरनाक हादसों को दावत दे रही है ।हालाँकि इस हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ लेकिन गाडी जलकर खाक हो गयी।
लिपिस्टिक को लेकर सेंसर फिर आया निशाने पर
प्रकाश झा के प्रोडक्शन में डायरेक्टर अलंकृिता श्रीवास्तव की फिल्म लिप्सिटक अंडर माई बुरका को लेकर सेंसर बोर्ड फिर से निशाने पर आ गया है। सेंसर बोर्ड ने इस फिल्म को पास करने से मना कर दिया है। रिवाइजल कमेटी में भी ये फैसला बना रहा। अब मामला एपीलेट ट्रिब्यूनल में तय होगा, जिसके लिए फिल्म की टीम ने अप्रोच किया है। प्रकाश झा इसे सेंसर की तानाशाही बताते हैं और कहते हैं कि जरुरत पड़ी, तो वे कोर्ट तक जाएंगे। उधर, सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पहलाज निहलानी का कहना है कि सेंसर बोर्ड अपनी गाइड लाइंस के मुताबिक, काम रहा है। उन्होंने फिल्म को पास न किए जाने के फैसले की पैरवी करते हुए कहा कि ये फैसला दिशा-निर्देशों के मुताबिक हुआ है।
उधर, बालीवुड से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह इस फैसले के लिए सेंसर बोर्ड को आड़े हाथों लिया गया है। बालीवुड में राकेश ओमप्रकाश मेहरा से फरहान अख्तर, कबीर खान, मधुर भंडारकर, महेश भट्ट, विशाल भारद्वाज, सुजाय घोष जैसे फिल्मकारों ने इस फैसले को बेहूदा बताते हुए कहा है कि फिल्म के संघर्ष में वे एकजुट हैं। फरहान अख्तर का मानना है कि सेंसर बोर्ड के फैसले फिल्मकारों का मनोबल तोड़ रहे हैं। राकेश मेहरा ने कहा कि वे हैरान हैं कि कैसे एक फिल्म के साथ ऐसा किया जा सकता है। महेश भट्ट ने कहा कि ये फैसले बताते हैं कि हमारा सेंसर बोर्ड किस सदी में जी रहा है। कबीर खान ने कहा कि ऐसे सेंसर बोर्ड की कोई जरुरत नहीं है।
ये फिल्म समाज के अलग अलग चार वर्ग की महिलाओं की कहानी है, जो अपनी अपनी जिंदगी से ढर्रे से परेशान हैं और चेंज चाहती हैं। इन महिलाओं में दो मुस्लिम और दो हिंदू परिवारों से हैं। माना जा रहा है कि फिल्म के टाइटल में बुरका शब्द को लेकर भी सेंसर बोर्ड सहज नहीं था। फिल्म की प्रमुख भूमिकाओं में कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक शाह, पल्बिता बोरथकर और आहना कुमारा हैं। फिल्म इन चारों महिलाओं के जिंदगी के सफर की कहानी है। सेंसर बोर्ड ने फिल्म के कुछ सीन और संवादों पर आपत्ति जताई और फिल्म को सार्टिफिकेट देने से मना कर दिया। प्रकाश झा की इससे पहले बनी फिल्म जय गंगाजल में भी सेंसर ने आपत्ति की थी और फिल्म को एपीलेट ट्रिब्यूनल से क्लीयर कराना पड़ा था।
इससे पहले सेंसर बोर्ड पर हाल ही में उस वक्त भी सवाल उठे थे, जब रामगोपाल वर्मा की आने वाली फिल्म सरकार 3 को लेकर भी इसके ट्रेलर पर डिसक्लेमर लगाने को कहा था। ये अपनी तरह का पहला मामला था, जब फिल्म के ट्रेलर पर भी फिल्म के फिक्शन होने का डिसक्लेमर लगाने को कहा गया।
देखने से पहले पढ़े फिल्म रंगून का रिव्यू
विशाल भारद्वाज हिंदी फिल्मों के उन फिल्मकारों में से हैं, जो सीधी बात कहने के लिए भी टेढ़ा रास्ता चुनने को फिल्मकारी मानते हैं और अपनी ही फिल्मों का सत्यानाश करके खुश हो जाते हैं। रंगून में भी विशाल भारद्वाज ने यही किया।
दूसरे विश्व युद्ध के बैकड्रॉप पर एक पीरियड फिल्म बनाना आसान नहीं था। इसके लिए बड़े बजट की जरूरत थी। विशाल को निर्माता साजिद नडियाडवाला ने सब कुछ मुहैया कराया। समय, पैसा और कलाकारों को लेकर कोई समस्या नहीं थी, न ही समस्या कहानी को लेकर थी। समस्या खुद विशाल थे, जिनकी समझदारी फिल्म पर एक बार फिर बुरी तरह से हावी हो गई और फिल्म का पंचर हो गया।
कहानी ब्रिटिश राज की भारतीय सेना से शुरू होती है, जो दूसरे विश्वयुद्ध में हिस्सा ले रही थी। जमादार नवाब (शाहिद कपूर) उन लड़ाकों में था। कहानी का दूसरा छोर एक अभिनेत्री जूलिया (कंगना) का था, जो फिल्मों में अपनी स्टंटबाजी और डांस के लिए मशहूर रही। फिल्म कंपनी के प्रोड्यूसर मालिक बिलिमोरिया (सैफ अली खान) से उनका अफेयर था, जो पहले से शादीशुदा था। बर्मा में लड़ रहे सैनिकों के मनोरंजन के लिए जूलिया को भेजा गया, तो उसकी हिफाजत की जिम्मेदारी जमादार नवाब को दी गई और बीच रास्ते में दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया। यहां से मामला लव ट्रायंगल का बन गया, जिसमें जूलिया दो प्यार करने वालों के पाट में फंस गई और साथ ही एक शाही तलवार के साथ इस फिल्म को देशभक्ति के जज्बे से भी जोड़ दिया गया। क्लाइमैक्स का जिक्र करना ठीक नहीं होगा।
ये फिल्म विशाल भारद्वाज की नाकामयाबी का एक दस्तावेज है। उनके पास एक बेहतरीन फिल्म बनाने का मौका था, लेकिन ये मौका उन्होंने अपनी सोच के चलते गंवा दिया और अपने साथ कलाकारों की मेहनत भी ले डूबे। किसी भी फिल्म की कामयाबी का आधार ये होता है कि किरदारों के साथ फिल्म देखने वाला दर्शक कैसे जुड़ पाता है। इस फिल्म में ऐसा नहीं हो पाता। लंबे-लंबे बोरिंग सीन फिल्म को पका डालते हैं और दर्शकों को बोरियत में बांध देते हैं। कहानी ढीली और जब कहानी कहने वाला महाढीला हो, तो फिल्म का कचूमर बनना तय हो जाता है। जहां तक कलाकारों की परफॉरमेंस की बात है, तो जब किरदारों का आधार ही कमजोर हो, तो परफॉरमेंस पर भी असर होता है। फिर भी अपने-अपने किरदारों में कंगना, सैफ और शाहिद ने कोई कसर नहीं रखी। परदे पर उनकी मेहनत भी झलकती है। कंगना ने एक बार फिर फिल्म को अपने में समाहित कर लिया। इस ट्रायंगल में किरदार और परफॉरमेंस में सैफ थोड़ा पीछे रह गए। इमोशनल सीनों में शाहिद फबते हैं, तो डांस और एक्शन के अलावा भावुकता में कंगना लाजवाब रही हैं। एक और जो किरदार याद रह जाता है, वो ब्रिटिश आर्मी का अफसर, जो हिंदी शायरी से मनोरंजन के पल जुटाता है। निर्देशक के तौर पर विशाल पूरी तरह से फेल साबित हुए हैं। फिल्म का गीत-संगीत भी बहुत अच्छा नहीं रहा। कैमरावर्क, सेट और एक्शन सीन फिल्म के अच्छे पक्ष हैं। क्लाइमैक्स बेहूदा है।
फिल्म का बजट बड़ा है। प्रमोशन भी बड़े स्तर पर हुआ। बड़े सितारों के चलते उम्मीदें भी सातवें आसमान पर हैं, लेकिन फिल्म देखकर मायूसी के अलावा कुछ नहीं रहता। फिल्म का नाम रंगून है, लेकिन ये बेरंगी फिल्म है, जिसमें मनोजंरन के नाम पर जो कुछ भी है, वो कोफ्त, झुंझलाहट और मायूसी के अलावा कुछ नहीं रहने देता। ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर झटका साबित होगी।
ट्रैफिक नियम तोड़ने पर पर्ची नहीं चलान का एस एम एस मिलेगा
दून ट्रैफिक पुलिस को मिलेंगे नये साजो सामान
आने वाले दिनों में देहरादून पुलिस आपको नये रंग रूप में नज़र आयेगी। ज़िले की ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिये अधिकारियों ने ड्यूटी पर तैनात पुलिस क्रमियों के लिये नये साजो सामान का इंतजाम करने का फैसला किया है।
इसके लिये यातायात ड्यूटी में तैनात किए गए पुलिसकर्मियों को और आधुनिक बनाने के लिये नये उकरण लिये जा रहे हैं। जिनमें
- 200 ग्लब्स,
- 200 बैटन लाइट,
- 200 फ्लोरोसेंट जैकेट,
- 197 रेनकोट,
- 200 मास्क तथा
- 100 सीटियां शामिल हैं।
यातायात व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिये अन्य उपकरण भी लिये जा रहे हैं और मौजूदा सामानों को अपग्रेड किया जा रहा है। इसमे
- बड़ी रिकवरी वैन पर लिफ्टर लगाया जाना
- छोटी 207 वाहन पर हाईड्रोलिक क्रेन में परिवर्तित करना शामिल है।
बहरहाल दिनों दिन बद से बदत्तर होती जा रही देहरादून की ट्रैफिक व्यवस्था के लिये ये प्रयोग कितना कारगर साबित होगा ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा लेकिन इस कदम से घंटों शोर और प्रदूषण के बीच ड्यूटी करने वाले पुलिस कर्मियों को कुछ मदद तो ज़रूर मिलेगी।
दुकान पर पेड़ गिरने से हादसा टला
नैनीताल में आज उस समय एक बड़ा हादसा टल गया जब भरी दोपहर में एक भारी भरकम पेड़ टूटकर दुकान के ऊपर जा गिरा। टूटे पेड़ के कारण बिजली के तार उसकी चपेट में आ गये। दमकल विभाग ने मुस्तैदी से काम करते हुए ट्रांसफार्मर में लगी आग को बुझाया। मामला मल्लीताल क्षेत्र का है जहाँ मस्जिद तिराहे के समीप एक पेड़ दोहपर के समय दुकान में जा गिरा । यक ठीक नीचे जल संस्थान की पेयजल लाईन का कार्य चल रहा था और पेड़ का आधा हिस्सा रोड के ऊपर आ गया । जिससे उस रास्ते से गुजर रहे लोगों में अफरा तफरी मच गई । पेड़ गिरने से हालाँकि जान माल का नुकसान तो नहीं हुआ । नायब तहसीलदार प्रियंका रानी ने बताया कि उन्होंने बिजली कटवा दी है और रास्ते को दोबारा खोलने की तैयारी चल रही है । मौके पर पहुँचे जिला प्रशासन और पुलिसकर्मियों ने लाइन में बिजली कटवाकर बमुश्किल पेड़ को हटाया। पेड़ गिरने के कुछ देर के लिए यातायात भी प्रभावित हो गया । दमकल विभाग ने वुड कटर मशीन से तुरंत पेड़ के छोटे छोटे टुकड़े करके पुलिस ने कुछ ही देर बाद यातायात को सुचारु कर दिया दिया। बताया जा रहा है की पेड़ गिरने से सड़क पर गिरी बिजली की तारो में 15 मिनट तक करंट दौड़ता रहा जिससे बड़ा हादसा हो सकता था ।
57 वर्ष का हुआ चमोली जनपद
चुनावी चर्चा और अन्य कार्याें में लोग इतने व्यस्त रहे कि चमोली जिले के गठन का दिन भूल गये। कुछ सुधी लोगों को याद रहा। 24 फरवरी 1960 को चमोली जिले का सृजन हुआ। चमोली के साथ-साथ दो और जिले बने। पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिले का सृजन भी इसी दिन हुआ था।
भारत-चीन सीमा से लगे तीन इलाके सामरिक दृष्टि से संवेदनशील हैं। लिहाजा पौड़ी तहसील से अलग कर चमोली तहसील को चमोली जिला बनाया गया। बाद में चमोली जिले से अलग कर रूद्रप्रयाग जिला बना। देश की सरहद से लगे सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक प्रगति के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में भी प्रगति कर रहे जिले की गठन की तिथि याद ही न रहने और इस अवसर पर किसी भी आयोजन का न होना सबको हैरत में डाल गया।
एफएसआई करेगा वनाग्निी से सतर्क
जंगलों में आग की सूचनाएं अब सीधे वन रक्षकों तक पहुंचेगी। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआइ) को देश के 11 राज्यों की वन बीटों की सीमाओं की स्पष्ट जानकारी मिल चुकी है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में इन राज्यों के वन रक्षकों के मोबाइल नंबर भी लिए गए हैं। यानी अब जैसे ही आग की सूचना सैटेलाइट के माध्यम से एफएसआइ को मिलेगी, उसे तत्काल स्वचालित माध्यम से संबंधित बीट के वन रक्षक को भेज दिया जाएगा। यह जानकारी एफएसआई के डीजी डा.शैवाल दास गुप्ता ने दी है। एफएसआइ के महानिदेशक डॉ. शैवाल दासगुप्ता के मुताबिक अब तक जंगलों में आग की सूचना राज्यों के नोडल अधिकारी, मुख्य वन संरक्षक, प्रभागीय वनाधिकारी और रेंजर के माध्यम से वन रक्षक तक पहुंचती थी। इसकी वजह यह थी कि एफएसआइ के पास बीटों की सीमाओं की जानकारी नहीं थी। लिहाजा, सूचना को विभिन्न माध्यमों से सही स्थल तक पहुंचाने की मजबूरी थी। जिन राज्यों में फिलहाल बीटों की सीमाओं का डिजिटलाइजेशन नहीं हो पाया है, वहां रेंज या प्रभागीय वन प्रभाग स्तर पर सूचनाएं भेजी जा रही हैं।
इस श्रेणी में तीन राज्य शामिल हैं जबकि अन्य राज्यों में अभी जिला स्तरीय सूचना प्रणाली लागू है। महानिदेशक ने बताया कि तत्काल आग वाले क्षेत्र के स्टाफ को सूचना भेजने में मिली सफलता के चलते आग की घटनाओं पर तत्काल काबू पाना संभव हो पाएगा। इसमें उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, पंजाब, बिहार, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, त्रिपुरा, झारखंड, तमिलनाडु आदि राज्य शामिल है।
एफएसआइ ने बताया कि उसके माध्यम से अभी देशभर के 2500 वन कार्मिकों के नंबरों पर आग की सूचना के एसएमएस भेजे जा रहे हैं। हालांकि, चिंता की बात यह कि उत्तराखंड जैसे 71 फीसद वन भूभाग वाले राज्य में अभी सिर्फ 20 नंबर ही भारतीय वन सर्वेक्षण की वेबसाइट पर पंजीकृत हो पाए हैं। अब तक एफएसआइ के पास सैटेलाइट के मॉडीज कैमरे से उपलब्ध होने वाली तस्वीरों से ही आग की जानकारी मिलती थी, जबकि अब एसएनपीपी (हाइ रेज्यूलेशन कैमरा) के माध्यम से भी आग का पता चलेगा। एफएसआइ के महानिदेशक डॉ.शैवाल दासगुप्ता ने बताया कि मॉडीज करीब 1000 मीटर वन क्षेत्र में आग के चित्र लेता है, वहीं एसएनपीपी 375 मीटर क्षेत्र में भी आग का पता लगाने में सक्षम है। इससे छोटे वन भूभाग पर लगी आग की घटनाएं भी स्पष्ट रूप में पकड़ में आ पाएंगी। यानी आग के अधिक से अधिक स्पॉट का पता लगा लिया जाएगा।