प्रशांत किशोर ने दिया “रावत संग दावत” का फार्मूला
चुनाव प्रचार पर मौसम की मार
उधम सिंह नगर में पकड़ा गया चुनाव में सप्लाई होने वाला अवैध चरस
सहसपुर से आर्येंद्र रोकेंगे किशोर उपाध्याय को, भरा निर्दलीय नामांकन
शुक्रवार को कांग्रेस के बागी और प्रदेश कांग्रेस के पूर्व महसचिव आर्येंद्र शर्मा ने सहसपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन भरा।
गौरतलब है कि आर्येंद्र शर्मा ने 2012 में भी कांग्रेस के टिकट पर सहसपुर से पहली बार चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा था। उस समय भी मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी माने जाने वाले गुलज़ार ने वहां से निर्दलीय खड़ा हो कर शर्मा का खेल बिगाड़ा था। पिछले पांच सालों से शर्मा इस सीट पर सक्रीय हैं और लोगों के बीच जा कर काम कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें यहां से अपना टिकट पक्का लग रहा था। लेकिन राजनीति अनिश्चताओं का खेल है और ऐसा ही कुछ आर्येंद्र के साथ भी हुआ। न सिर्फ पार्टी ने उनका टिकट काटा बल्कि प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय को सहसपुर से उम्मीदवार बना दिया। किसोर खुद ही पहले चुनाव न लड़ने की बात कह चुके हैं साथ साथ उनका कहना था कि सहसपुर सीट उनकी पहली पसंद नही थी लेकिन पार्टी के आदेश पर उन्होने तैयारी की है। अब देखना दिलचस्प होगा कि सहसपुर के लोग यहां से सिटिंग विधायक, बागी उम्मीदवार या सीट पर न लड़ने के इच्छुक नेता में से किस को चुनते हैं।
आर्येंद्र के निर्दलीय चुनाव लड़ने पर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आर पी रतूड़ी ने कहा कि “आर्येन्द्र शर्मा ने 2012 मे ही देहरादून में कदम रखा था,इससे पहले वे ऍन डी तिवारी के विशेष कार्ये अधिकारी थे तिवारी तमिल नाडू के राज्यपाल थे और जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे। आर पी रतूड़ी ने साफ़ तौर पर यही जाहिर किया है कि आर्येन्द्र शर्मा का सिर्फ 5 साल से काम करने में जीत हासिल नहीं हो सकती और 5 साल की राजनीति से आर्येंद्र की उम्मीदें ज्यादा है।” एक तरफ पार्टी जहां आर्येंद्र को खतरा नहीं मान रही है वहीं खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत और पार्टी अध्यक्ष किशोर उपाध्याय आर्येंद्र को सहसपुर टिकट पर समझाने के लिए उन्हें मनाने गए थे।लेकिन आज पार्टी के तेवर बदले हुए से हैं शायद गुलजार के समर्थन ने कांग्रेस को सहसपुर से जीत की उम्मीद दिला दी है।
किशोर उपाध्याय के समर्थन में आये गुलज़ार, सहसपुर में जीत का यकीन
शुक्रवार को किशोर उपाध्याय ने प्रेस कांफ्रेस में एक बात साफ कर दी है कि वह इस विधानसभा चुनाव में वो ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा देंगे।किशोर उपाध्याय की प्रेस वार्ता में सहसपुर के निर्दलीय प्रत्याशी गुलज़ार अहमद भी मौजूद थे।किशोर ने कांफ्रेस में डंके की चोट पर एक घोषण कर दी है कि सहसपुर से उन्हें गुलजार अहमद का समर्थन मिलेगा।
ज्ञात हो कि गुलज़ार अहमद के समर्थकों ने टिकट घोषणा के समय कांग्रेस पार्टी से गुलजार को सहसपुर से टिकट देने की मांग कि थी लेकिन हाईकमान ने किशोर उपाध्याय को सहसपुर से टिकट दिया।गुलजार ने 2012 में सहसपुर से निर्दलीय पार्टी से चुनाव लड़ा और उन्हें 10,000 से ज्यादा वोट भी मिले, इतना ही नही माना यह जाता हे कि गुलजार की वजह से कांग्रेस प्रत्याशी आर्येंद्र शर्मा को अपनी सीट से हाथ धोना पड़ा था।
पुरानी गलती दोबारा ना दोहराते हुए सहसपुर क्षेत्र के प्रत्याशी किशोर ने पहले ही गुलजार अहमद से बातचीत करके कांफ्रेंस में इस बात की घोषणा कर दी कि इस चुनाव में गुलजार कांग्रेस का समर्थन करेंगें।गुलजार ने कहा कि मैं हमेशा से किशोर के साथ हूं और यह तीन चार दिन का समय मुझे अपने समर्थकों को समझाने में लगा,उन्होंने कहा कि हम 8 क्षेत्रीय दावेदारों ने किशोर उपाध्याय को समर्थन देने का फैसला लिया है और मैं उम्मीद करता हूं कि सहसपुर की जनता भी किशोर उपाध्याय का समर्थन करेगी।गुलजार ने कहा कि चुनाव हमेशा ही मुश्किल होता है लेकिन मुश्किल के बाद ही जीत मिलती है और मैं आशा करता हूं कि किशोर उपाध्याय भी भारी मतों से विजयी होंगें।
राजनितिक दावं पेंच में उलझी कांग्रेस ने निर्दलीय पार्टी उम्मीदवार गुलजार को तो अपने साथ मिला लिया लेकिन सहसपुर में शुरु से उलझा आर्येंद्र का पेंच कांग्रेस कैसे सुलझाएगी यह देखना ज्यादा दिलचस्प होगा।
प्रदेश कांग्रेस आॅफिस पर फिर लगे कांग्रेस सोनिया और राहुल के पोस्टर
गणतंत्र दिवस के मौके पर एक बार फिर उत्तराखंड के प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर कांग्रेस पार्टी का कब्ज़ा हो गया। राहुल और सोनिया गांधी का पोस्टर और बैनर फिर से पार्टी कार्यालयकी दीवारों पर लगा दिये गये। गौरतलब है कि बीते रविवार को टिकट घोषणा के बाद से ही पार्टी में बगावत के सुर ने अपना हल्ला बोल कर दिया था।कभी सहसपुर तो कभी टिहरी इन दोनों सीटों पर उम्मीदवार घोषणा के बाद मानो संकट के काले बादल आ गए थे। सहसपुर की सीट पर आर्येंद्र शर्मा के समर्थकों ने लगभग कांग्रेस भवन पर अपना कब्जा ही कर लिया था। पहले हंगामा,फिर तोड़फोड़ और फिर अंत में आर्येंद्र के समर्थकों ने आॅफिस के बैनर भी बदल दिए। कांग्रेस अध्यक्ष की जगह आर्येंद्र के बैनर टांग दिए जिसपर मोटे अक्षरों में लिखा था सोनिया राहुल बात सुनो जो सही है उसे चुनो।
इतने हो हंगामों के बाद भी पार्टी हाईकमान ने अपना फैसला नहीं बदला और सहसपुर से किशोर उपाध्याय ने शक्ति प्रदर्शन के साथ अपना नामांकन बुधवार को कर दिया। इधर उपाध्याय ने अपना नामांकन भरा उधर आर्येंद्र ने अपना इस्तीफा पत्र भेजा।इस इस्तीफा पत्र में आर्येंद्र ने खुद को कांग्रेस की सभी सेवाओं से मुक्त करने की एलान कर दिया।आर्येंद्र शर्मा अब सहसपुर क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ेंगें जिसका नामांकन वह शुक्रवार को करेंगें।
इस चुनावी उठापटक से यह बात तो साफ हो गई है कि समर्थक चाहें जो कर लें होता वहीं है जो पार्टी हाईकमान चाहती है।पिछले दिनों माहौल यह था कि कयास लगाए जा रहे थे कि हाईकमान सहसपुर को लेकर अपना फैसला बदल लेगी लेकिन किशोर उपाध्याय के नामांकन ने सभी किंतु परंतु पर विराम लगा दिया है।खैर चुनावी नतीजा जो हो लेकिन बागियें के कब्ज़े से कांग्रेस आॅफिस को छुड़ा कर खुद पार्टी के नेता भी चैन की सांस ले रहै हैं। गुरुवार को पार्टी कार्यालय पर झंडा भी फहराया गया।
उत्तराखंड की बसंती देवी बिष्ट को मिला पदमश्री अवार्ड
उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक गायिका बसंती बिष्ट को इस साल का पद्मश्री पुरस्कार मिलेगा। बुधवार को हुए पद्म पुरस्कारों की घोषणा में इसका ऐलान किया गया।63 साल की बसंती बिष्ट पिछले कई साल पद्म पुरस्कारों के लिये शॉर्ट लिस्ट की गई लेकिन उन्हें येदियुरप्पा पुरस्कार आख़िरकार इस साल मिला।
बसंती देवी बिष्ट को अपनी भावपूर्ण जागर के लिए न केवल उत्तराखंड में बल्कि विदेशों में भी बहुत पुरस्कार मिले है। जागर शैली का गायन देवी देवताओं को जगाने के लिये पारंपरिक तौर पर पुरुषों द्वारा गाया जाता रहा है। बसंती पहली और अकेली ऐसी महिला है जिन्होंने इस प्रथा को दरकिनार कर जागर सीखा और सालों से इस प्राचीन जागर के माध्यम से लोगों को जागृत करती रही हैं। इस कला को इन्होंने अपनी मां से सीखा। चमोली ज़िले केंद्र लुआनी गाँव में जन्मी बसंती ने बचपन से अपनी माँ को घर में जागर गाते सुना था। लेकिन घर ग्रहस्ती के चलते बसंती का जागर गायिका के रूप में करियर उनके 50 के हो जाने के बाद शुरू हो सका। शादी करके चंडीगढ़ जाने के बाद बसंती ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा चंडीगढ़ के प्राचीन कला केंद्र से ली। और वापस देहरादून आने के बाद बसंती ने अपने करियर की शुरुआत की। बसंती का कहना है कि देवभूमि के सांस्कृतिक जादू ने हमेशा उन्हे प्रेरित किया है।
बसंती देवी बिष्ट ने आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर भी अपनी प्रस्तुतियां दी है।इनकी भावपूर्ण आवाज श्रोताओं को भावविभोर कर देती हैं और श्रोता के मन में इनको सुनने की इच्छा बार बार होती है। उत्तराखंड के पारंपरिक परिधान में सजी बसंती जब स्टेज पर आती हैं तो उनके गाने के साथ साथ उतनी ही तादाद में लोग उनकी तस्वीरें भी खींचते हैं।
बसंती उत्तराखंड से पद्म पुरस्कार पाने वाली 36वीं व्यक्ति होंगी। निश्चित तौर पर बसंती ने जागर जैसी लोक कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान दिलाई है और अब पद्दम पुरस्कार के साथ उन्होने राज्य का भी नाम रौशन किया है।
भाजपा में शामिल हुए और कांग्रेसी
भाजपाई खेमें से विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कीर्ति सिंह नेगी,भागीरथी नदी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष ( राज्य मंत्री स्तर)और विवेकानंद खण्डूरी, पूर्व उपाध्यक्ष उद्योग परिषद्(राज्य मंत्री स्तर) व् फ़िरोज़ अख्तर प्रदेश सचिव कांग्रेस ने गुरुवार को बीजेपी की सदयस्ता ग्रहण की।
कीर्ति सिंह नेगी 25 साल र्निविरोध ब्लॉक प्रमुख रहे हैं, इनके आने से पार्टी को टिहरी जनपद की सीटों पर फायदा मिल सकता है। हरीश रावत और कीर्ति सिंह नेगी ने एक साथ राजनिति में कदम रखा था और ब्लॉक प्रमुख भी बने थे। नेगी ने कहा कि उनका बीजेपी में आने का मकसद कांग्रेस का भ्रष्ट शासन था जिससे वह तंग आ चुके थे।
विजय बहुगुणा ने नेगी का भाजपा में स्वागत करते हुए कहा कि नेगी राजनिती के रीढ़ के हड्डी है और जब पहले कांग्रेस सरकार बनी थी तब उसमें नेगी का अहम योगदान था।इसके अलावा कांग्रेस के 25 कार्यकर्ता ने गंगोत्री के प्रत्याशी गोपाल रावत पूर्व विधायक के साथ बीजेपी में शामिल हुए हैं।
पिछले कुछ दिनों में कांग्रेस के कई पुराने नेता बीजेपी में शामिल हुए हैं। इनमें ज्यादा संख्या हरिद्वार और आसपास की विधानसभा सीटों के नेताओं की है। ऐर इन नेताओँ को बीजेपी में लाने में विजय बहुगुणा की अहम भूमिका रही है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में विजय बहुगुणा हरीश रावत को चुनावी रण में मात देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं।
प्रदेश में मनाया गया 68वां गणतंत्र दिवस
देहरादून के परेड ग्राउंड में आज देश का 68वां गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया गया।परेड ग्राउंड में आईटीबीपी,एस.एस.बी,उत्तराखंड पुलिस और एनसीसी के जवानों ने परेड में सहभाग लिया।
उत्तराखंड के राज्यपाल के.के पाल ने ध्वजारोहण किया और परेड की सलामी ली।गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में राज्य की विविधता और संस्कृति को दर्शाने वाले रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए।
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर राज्यपाल ने कुछ विषिष्ठ कार्मिकों को दिया महामहिम श्री राज्यपाल उत्कृष्ट सेवा पदकः
पुरस्कार प्राप्त करने वाले जवानः
- उत्तम सिंह जिमिवाल,निरिक्षक ना.पु, पौड़ी गढ़वाल
- चन्द्रभान सिंह अधिकारी, निरीक्षक ना.पु,जनपद हरिद्वार
- जगदीश चन्द्र पाठक, प्रभारी पुलिस उपाधीक्षक,जनपद उधमसिंह नगर
- महेश चन्द्र चन्दोला,निरिक्षक(एम)/गोपनीय सहायक,पी.टी.सी नरेन्द्र नगर/सम्बद्ध कुमाऊं
- प्रेम सिंह मेहता,उपनिरीक्षक विशेष श्रेणी,देहरादून
- खीम सिंह राणा,प्लाटून कमांडर,विशेष श्रेणी,रुद्रपुर
उत्तराखंड को नाम मात्र ही मिलेंगे केंद्रीय बल-राधा रतूड़ी
उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव के दौरान तैनाती के लिए केंद्रीय बलों की टुकड़ियां केंद्र द्वारा महज दो ही दिनों के लिए उपलब्ध कराई जाएंगी। इसलिए उन्हें संवेदनशील इलाकों में मतदान केंद्रों पर तैनात करना भर ही हो पाएगा। केंद्रीय बलों का प्रयोग अशांति की आशंका वाले क्षेत्रों में फ्लैग मार्च आदि कराने के लिए नहीं हो पाएगा। यह कहना है पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की मुख्य चुनाव अधिकारी राधा रतूड़ी का जो पिछले दस साल से उत्तराखंड में चुनाव देख रहीं हैं।जाहिर है कि राधा रतूड़ी आजकल राज्य में मतदान और चुनाव प्रचार के सफल और शांतिपूर्ण आयोजन संबंधित जिम्मेदारियों में बेहद व्यस्त हैं। इसके बावजूद उन्होनें न्यूज पोस्ट से बात करने का समय निकाल कर राज्य में मतदान एवं चुनाव की अन्य चुनौतियों आदि के बारे में पूरी जानकारी दी। पेश है उनसे हुई बातचीत का विवरणः-
सवाल-उत्तराखंड में चुनाव प्रचार की निगरानी और मतदान व्यवस्था की क्या चुनौतियां हैं?
जवाब-उत्तराखंड में इस मौसम में चुनाव प्रचार पर निगाह रखना और मतदान का आयोजन हमेशा ही चुनौतीपूर्ण है। इस दौरान राज्य के उपरी हिस्सों में बर्फ और जबरदस्त ठंड पड़ती है, इसलिए पोलिंग पार्टी को कहीं-कहीं तो दो दिन तक बर्फ में पैदल चलकर मतदान केंद्र तक मतदान के आयोजन का सारा सामान लेकर जाना पड़ता है। यह बात अलग है कि सरकार उनके रहने-खाने और आने-जाने का पूरा इंतजाम करती है। उनके लिए बर्फ में चलने को स्नो बूट्स, खच्चर, कुली, अलाव, गर्म भोजन, स्लीपिंग बैग आदि का इंतजाम सरकार करती है ताकि वे कुछ कम परेशान हों। निकलते तो वोटर भी ठंड में ही हैं मतदान करने मगर हर दो किमी पर मतदान केंद्र होने से उन्हें ज्यादा नहीं चलना पड़ता और फिर वे अपने घर लौट ही जाते हैं।
सवाल-चुनाव व्यवस्था में लगे कर्मचारियों को दुर्गम केंद्रों पर हेलीकाॅप्टर से क्यों नहीं ले जाया जाता?
जवाब-मतदान कर्मचारियों को उपरी केंद्रों पर हेलीकाॅप्टर से उतारना व्यावहारिक नहीं है। हालांकि यह बात कहने-सुनने में बहुत अच्छी लगती है, मगर ऐसी जगहों पर तो हेलीपैड बनाना भी संभव नहीं है। उपर से पोलिंग पार्टी के पास सामान भी होता है। इसलिए उन्हें सामान सहित हेलीकाॅप्टर में समाना भी संभव नहीं है। इसलिए पोलिंग पार्टी को सड़क और पैदल मार्ग से ही भेजा जाता है।
सवाल-मतदान का प्रतिशत बढ़ाने और मतदाताओं को जागरूक करने के उपाय?
जवाब-मतदाताओं को जागरूक करने के लिए चुनाव आयोग का स्वीप कार्यक्रम है। इसका मतलब है सिस्टमेटिक वोटर एजूकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन यानी मतदाताओं का व्यवस्थित शिक्षण एवं निर्वाचन प्रणाली में भागीदारी। इसके तहत हरेक जिले के स्कूलों में पेटिंग, पोस्टर, रंगोली, मेहंदी प्रतियोगिता कराई जाती है। बच्चों को इनमें वोटर जागरूकता संबंधित विषय पर बेहतर काम के लिए पुरस्कार मिलते हैं। इन्हीं प्रतियोगिताओं में राज्य से दो बच्चे दिल्ली में चुनाव आयोग से पुरस्कार के लिए छांटे गए हैं। इसके अलावा गढ़वाली, कुमांउनी भाषाओं में मतदान को प्रोत्साहित करने वाले लोकगीत भी रिकार्ड किए गए हैं। दूध की थैलियों पर, रसोई गैस सिलेंडरों पर भी ऐसे नारे छापे गए हैं।
सवाल-राज्य में कुल कितने कर्मचारी मतदान प्रक्रिया में व्यस्त हैं? कुल कितने मतदान केंद्र होंगे? राज्य के सुरक्षा बलों और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच कार्य विभाजन किस आधार पर किया जाएगा?
जवाब-मतदान प्रक्रिया में राज्य भर में कुल एक लाख सरकारी कर्मचारी जुटे हुए हैं। यह लोग अन्य जिम्मेदारियों के अलावा राज्य के कुल 10,854 मतदान केंद्रों पर भी तैनात रहेंगे। केंद्रीय सुरक्षा बलों की टुकड़ियां तो उत्तर प्रदेष में 11 फरवरी को पहले चरण का मतदान पूरा होने के बाद ही यहां भेजी जाएंगी। तो वे 13 जनवरी से ही उत्तराखंड को उपलब्ध होंगी। उसके बाद मतदान के दौरान उन्हें संवेदनशील क्षेत्रों में लगा दिया जाएगा। देरी की वजह से संवेदनशील इलाकों में केंद्रीय बलों का फ्लैग मार्च आदि आयोजित नहीं किया जा सकता। इसलिए पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी मुख्यतः उत्तराखंड पुलिस और राज्य के सुरक्षा बलों के कंधों पर ही रहेगी। उत्तराखंड में भी अनेक क्षेत्र संवेदनशील हैं और यदि समय रहते केंद्रीय सुरक्षा बल राज्य को दे दिए जाते तो उनका व्यापक इस्तेमाल हो पाता। यहां 15 फरवरी को मतदान है। उससे पहले मतदाताओं को रिझाने के अवैध तरीकों को रोकने के लिए प्रदेष भर में 210 स्थिर निगरानी दल बनाए गए हैं जो नाकाबंदी करके गाड़ियों की तलाशी लेकर अवैध सामान जैसे शराब, हथियार, चुनाव सामग्री आदि जब्त कर रहे हैं। इसी तरह 210 फ्लाइंग स्क्वाड बनाए गए हैं। यह भी संदेहास्पद ठिकानों पर छापे मार कर व राह चलते गाड़ियां रोक कर अवैध शराब, बेहिसाब नकदी आदि बरामद कर रहे हैं।
सवाल-राज्य में चुनाव के दौरान शराब के अवैध लेनदेन पर शिकंजा कसने को क्या चुनाव आयोग ने सख्ती की है?
जवाब-वोटरों को रिझाने के लिए शराब के बड़े पैमाने पर प्रयोग की शिकायत चुनाव आयोग की टीम से ऐसे दलों ने की थी जिनका विधानसभा में कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है। दो बड़े दलों सहित राज्य में छह राष्ट्रीय दलों का रजिस्ट्रेशन है। इसी तथ्य के मद्देनजर चुनाव आयुक्त नसीम जैदी और उनके साथियों ने प्रशासन से शराब की अवैध आवाजाही, उत्पादन और बांटने जैसी हरकतों पर सख्ती से रोक लगाने को कहा। इस पर मुख्य सचिव ने संयुक्त कार्य दल बनाया है। उसमें आबकारी, वन विभाग और पुलिस के नुमाइंदे शामिल हैं और षराब के अवैध प्रयोग के खिलाफ छापेमारी चल रही है।
सवाल-चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के सबसे अधिक मामलों की प्रकृति क्या है?
जवाब-उत्तराखंड में चुनाव संबंधी सब काम अधिकतर शांतिपूर्वक ही निपट जाते हैं। आचार संहिता उल्लंधन के इक्का-दुक्का मामले ही नमूदार होते है। जैसे किसी ने अपने घर की दीवार किसी खास पार्टी के लिए बिना निर्वाचन प्राधिकरण की मंजूरी लिए पुतवा दी अथवा बिना इजाजत पोस्टर चिपका दिए। अमूमन यहां जनता और राजनीतिक दल चुनाव संबंधी नियमों का पालन करते ही हैं।
सवाल- राज्य में निष्पक्ष चुनाव होने का कोई चान्स या रिस्क है?जनता का नेताओं को लेकर कोई पक्षपात? जवाब-उत्तराखंड में दो प्रमुख दलों के बीच ही अमूमन सत्ता का आदान प्रदान चलता है। राज्य बनने के बाद से हर पांच साल पर जनता शासक बदलती आ रही है। इसलिए जाहिर है कि यहां चुनाव निष्पक्ष होता है। ऐसे में सरकारी मशीनरी पक्षपात कर ही नहीं सकती। जहां कोई दल लगातार बार-बार चुनाव जीतता है, वहां फिर भी ऐसा असर पड़ सकता है। इसका मुख्य कारण ये है कि राज्य की जनता बेहद जागरूक है। जनता झांसे में नहीं आती। यहां महिला मतदाता खूब बढ़ चढ़ कर वोट डालती हैं। उनके मतों का प्रतिशत अधिक होता है।
सवाल-पेडन्यूज पर अंकुश लगाने की क्या व्यवस्था है?
जवाब-पेड न्यूज तो लोकतंत्र के लिए वाकई बहुत गंभीर चुनौती है। इसपर मीडिया को खुद ही मंथन करके अनुशासन अपनाना चाहिए। क्योंकि कानून चुनाव आयोग के पास कोई ऐसा अधिकार नहीं है कि दोशी पाए जाने पर किसी को सजा दे सके। हां हम नोटिस और चेतावनी दे सकते हैं सो देते रहते हैं। इसकी पड़ताल के लिए मीडिया सर्टिफिकेशन माॅनिटरिंग कमेटी यानी मीडिया प्रमाणन निगरानी समिति बनाई गई है जो खबरों पर पैनी निगाह रखती है और प्रचार का घालमेल पकड़े जाते ही संबद्ध मीडिया हाउस को नोटिस थमा सकती है। मीडिया यदि अच्छे नेताओं को बढ़ावा देगा तो देश में स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र रहेगा।