फिल्म अभिनेत्री नहीं बनना चाहती थी नंदा

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नई दिल्ली, बॉलीवुड अभिनेत्री नंदा के बारे में बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि अभिनय नहीं बल्कि सेना में भर्ती होना चाहती थी। 8 जनवरी 1939 को जन्मी नंदा के घर का महौल शुरू से फिल्मी था क्योंकि नंदा के पिता मास्टर विनायक मराठी रंगमंच के हास्य कलाकार के साथ-साथ फिल्म निर्माता भी थे। पिता नंदा को फिल्म अभिनेत्री ही बनाना चाहता थे लेकिन नंदा का मन कहीं और ही लगता था। नंदा सुभाष चन्द्र बोस के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित थीं। एक बार नंदा की मां ने उन्हें बाल कटवाने के लिए कहा क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वो उनकी फिल्म में लड़के का रोल करें। जिसको सुनकर नंदा अपनी मां पर बहुत गुस्सा हुई लेकिन मां के बहुत समझाने पर वह बाल कटवाने के लिए मान गई। हालांकि फिल्म के निर्माण के दौरान ही मास्टर विनायक का निधन हो गया।

नंदा के सिर से पिता का साया उठ गया। पिता के निधन के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर पड़ने लगी। घर की माली हालत को देखते हुए नंदा ने फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम करना शुरू कर दिया। बतौर बाल कलाकार नंदा ने वर्ष 1948 में मंदिर, वर्ष 1952 में जग्गु, वर्ष 1954 में शंकराचार्य और अंगारे जैसी फिल्मों में काम किया। वर्ष 1956 में अपने चाचा वी. शांताराम की फिल्म “तूफान और दीया” से नंदा ने बतौर अभिनेत्री अपने सिने करियर की शुरुआत की। हालांकि फिल्म की असफलता से वह कुछ खास पहचान नहीं बना पायी।

फिल्म तूफान और दीया की असफलता के बाद नंदा ने राम लक्ष्मण, लक्ष्मी, दुल्हन, जरा बचके, साक्षी गोपाल, चांद मेरे आजा, पहली रात जैसी बी और सी ग्रेड वाली फिल्मों में बतौर अभिनेत्री काम किया लेकिन इन फिल्मों से उन्हें कोई खास फायदा नहीं पहुंचा। नंदा की किस्मत का सितारा निर्माता एल.वी. प्रसाद की वर्ष 1959 में प्रदर्शित फिल्म “छोटी बहन” से चकमा। इस फिल्म में भाई-बहन के प्यार भरे अटूट रिश्ते को रूपहले परदे पर दिखाया गया था। इस फिल्म में बलराज साहनी ने बड़े भाई और नन्दा ने छोटी बहन की भूमिका निभायी थी। शैलेन्द्र का लिखा और लता मंगेशकर द्वारा गाया फिल्म का एक गीत “भइया मेरे राखी के बंधन को निभाना” बेहद लोकप्रिय हुआ था। रक्षा बंधन के गीतों में इस गीत का विशिष्ट स्थान आज भी बरकरार है। फिल्म की सफलता के बाद नंदा कुछ हद तक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गयी।

फिल्म “छोटी बहन” की सफलता के बाद नंदा को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये देवानंद की फिल्म “काला बाजार और हमदोनों” बी.आर. चोपड़ा की फिल्म “कानून” खास तौर पर उल्लेखनीय है। फिल्म काला बाजार में नंदा ने एक छोटी सी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। वही सुपरहिट फिल्म हमदोनों में उन्होंने देवानंद के साथ बतौर अभिनेत्री काम किया।

वर्ष 1965 नंदा के सिने करियर का अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी “जब जब फूल खिले” प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने न सिर्फ अभिनेता शशि कपूर और गीतकार आनंद बख्शी और संगीतकार कल्याण जी-आनंद जी को शोहरत की बुंलदियां पर पहुंचा दिया। बल्कि नंदा को भी ‘स्टार’ के रूप में स्थापित कर दिया। वर्ष 1965 में ही नंदा की एक और सुपरहिट फिल्म ‘गुमनाम’ भी प्रदर्शित हुई।

मनोज कुमार और नंदा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में रहस्य और रोमांस के ताने-बाने से बुनी, मधुर गीत-संगीत और ध्वनि के कल्पनामय इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 1969 में नंदा के सिने करियर की एक और सुपरहिट फिल्म “इत्तेफाक” प्रदर्शित हुई। दिलचस्प बात है कि राजेश खन्ना और नंदा की जोड़ी वाली सस्पेंस थ्रिलर इस फिल्म में कोई गीत नहीं था, बावजूद इस फिल्म को दर्शकों ने काफी पसंद किया और उसे सुपरहिट बना दिया।

वर्ष 1982 में नंदा ने फिल्म “आहिस्ता आहिस्ता” से बतौर चरित्र अभिनेत्री फिल्म इंडस्ट्री में एक बार फिर से वापसी की। इसके बाद उन्होंने राजकपूर की फिल्म “प्रेमरोग” और मजदूर जैसी फिल्मों में अभिनय किया। दिलचस्प बात है इन तीनों फिल्मों मे नंदा ने फिल्म अभिनेत्री पदमिनी कोल्हापुरे की मां का किरदार निभाया था।

वर्ष 1992 में नंदा ने निर्माता-निर्देशक मनमोहन देसाई के साथ परिणय सूत्र में बंध गयी लेकिन वर्ष 1994 में मनमोहन देसाई की असमय मृत्यु से नंदा को गहरा सदमा पहुंचा। अपनी दिलकश अदाओं से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाली नंदा 25 मार्च 2014 को इस दुनिया को अलविदा कह गयीं।