16 घंटे के ऑपरेशन ने बचाई कैंसर पीड़ित रोगी की टांग

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देहरादून। चिकित्सक विशेषज्ञों की एक टीम ने 16 घंटे की हाई-प्रेसीजन मैराथॉन सर्जरी के जरिए 17 साल के मरीज की टांग को बचा लिया। पत्रकारों को जानकारी देते हुए डॉ. विपिन बर्थवाल ने बताया कि कैंसर की जंग जीत चुके इस मरीज को एम्प्यूटेशन यानि टांग काटने की सलाह दी गई थी। जटिल शल्यक्रिया को अंजाम देने वाले अस्पताल षज्ञों में शामिल थे डॉ. विपिन बर्थवाल व डॉ विवेक वर्मा, डॉ. महेश सुल्तानिया, डॉ. विमल पंडिता तथा मैक्स सुपर अस्पताल की टीम ने इस रोगी को टांग दान दी। 2015 में इस मरीज मनीष पडियार की दाहिनी टांग में ऑस्टियोसार्कोमा यानि हड्डी कैंसर का निदान किया गया। निदान के बाद मुम्बई के एक अस्पताल में उनकी शल्यक्रिया कर ट्यूमर निकाल दिया गया और प्रत्यारोपण यानि इम्प्लान्ट डाला गया। 2015 के बाद डॉ.. विमल पंडिता के मार्गदर्शन में मेडिकल ओंकोलोजी टीम ने उन्हें कीमोथैरेपी दी। जुलाई 2016 में मनीष के साथ एक दुर्घटना घटी, जिसके चलते उनकी उसी टांग में संक्रमण हो गया, जिसके बाद संक्रमित इम्प्लान्ट हटा कर रॉड डाल दी गई। लेकिन संक्रमण इतना गंभीर था कि उनकी टांग में घाव हो गया, जिसमें मवाद पड़ गई। कई अस्पतालों में राय लेने के बाद उन्हें एम्प्यूटेशन यानि टांग काटने की सलाह दी गई। दु:खी और परेशान परिवार एक बार फिर से डॉ. विमल पंडिता के पास पहुंचा। डॉ. पंडिता ने मनीष का मामला मैक्स इण्डिया फाउन्डेशन के समक्ष प्रस्तुत किया। मनीष के कैंसर के इतिहास का विश्लेषण करने के बाद मैक्स इण्डिया फा उन्डेशन मदद के लिए तैयार हो गया।
मैक्स अस्पताल देहरादून के विशेषज्ञों डॉ. विवेक वर्मा, डॉ. विपिन बर्थवाल, डॉ. महेश सुल्तानिया और डॉ.विमल पंडिता ने मामले का गहराई से अध्ययन किया, आपस में विचार-विमर्श किया। व्यापक विश्लेषण के बाद फैसला लिया गया कि टांग को बचाते हुए भी उनका इलाज किया जा सकता है। दो चरणों में सर्जरी का फैसला लिया गया। पहले चरण में डॉ. विवेक वर्मा ने संक्रमित इम्प्लान्ट, खराब हड्डी और अस्वस्थ उतकों को निकाला ताकि संक्रमण को नियन्त्रित किया जा सके। इसके बाद मरीज की टांग में पेशी और त्वचा कवर के बिना 20 सेंटीमीटर का दोष रह गया। पहले कई बार शल्यक्रियाएं होने के कारण मरीज की टांग में रक्त की आपूर्ति बहुत कम थी। इसलिए, घाव भर जाने के बाद सर्जरी की दूसरी अवस्था में टांग की हड्डी को रीक्रिएट किया गया, इसके लिए फि बुला (टांग की ही एक दूसरी हड्डी), पेशियों, तंत्रिकाओं, रक्त वाहिकाओं और त्वचा कवर का इस्तेमाल किया गया। डॉ. विपिन बर्थवाल ने कहा, ”यह मनीष के लिए जीवन बदल देने वाली शल्यक्रिया है। इस तरह की मुश्किल शल्यक्रिया मानसिक तौर पर भी मरीज पर भारी पड़ती है। इसके लिए टीम में काम करना होता है और शल्यक्रिया के बाद भी मरीज की सुरक्षा का पूर ध्यान रखना होता है, जिसे हमने मैक्स अस्पताल, देहरादून में कर दिखाया है।
डॉ. संदीप सिंह तंवर, वाईस प्रेजीडेन्ट-ऑपरेशन्स ने कहा, ‘जटिल लिम्ब सेविंग सर्जरी अब नियमित रूप से मैक्स सुपर स्पेशलटी अस्पताल, देहरादून में की जा रही है। हम मरीजों की सामर्थ्य को भी ध्यान में रखते हुए उन्हें इलाज मुहैया कराते हैं। हम पूरी कोशिश करते हैं कि मरीज के अंगों को बचाते हुए कैंसर को नष्ट किया जा सके। हम अपनी विश्वस्तरीय बुनियादी सुविधाओं के साथ उत्तराखण्ड एवं आस-पास के क्षेत्रों के लोगों को जटिल एवं सुरक्षित सर्जरी की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।