बच्चों को बेहतर पाठक बनाने के लिए चम्पावत में एक अनूठी पहल

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बच्चों को बेहतर पाठक बनाने के लिए चम्पावत में एक अनूठी पहल शुरु की गई है। जनपद में इस कार्यक्रम को एसईआरआई (Scaling up Early Reading Intervention) के नाम से जाना जाता है। साल 2016 में इस कार्यक्रम को 504 स्कूलों में शुरू किया गया था। इसका मकसद बच्चों को स्वतंत्र पाठक बनाना है। कार्यक्रम के तहत बच्चों में पढ़ने की आदत व बुनियादी पाठन सिखाया जा रहा है। जनपद के हर स्कूल में टीचर एक शिक्षण पद्धति के अनुसार कक्षा 1 और 2 के बच्चों के साथ हिंदी भाषा के सेशन लेते है। बच्चे इस सेशन में संस्था द्वारा दी गयी रोचक और आनंददायक किताबों को स्कूल में तो पढ़ते ही हैं साथ साथ घर ले जाकर वे अपने घरवालों के साथ भी इन किताबों की कहानियों को सांझा करतें हैं।

“सरकार के साथ गहन साझेदारी में बड़े पैमाने पर काम करने का जो मॉडल SERI कार्यक्रम के द्वारा चम्पावत में क्रियान्वित किया गया उसके परिणाम आशानुरूप बेहतर हैं! हमारा प्रयास होगा कि अब इस मॉडल को अन्य जिलों एवं अन्य राज्यों में दोहराया जाये,” यह कहना है सौरब बैनरजीनिदेशक का।

जनपद चम्पावत में इस कार्यक्रम से जुड़े लोगों का मानना है कि जनपद में प्राथमिक शिक्षा को लेकर इस समय खास ध्यान देने की ज़ररूत है। अगर आप प्राथमिक विद्यालयों में जाते हैं तो आपको बच्चे आसानी से किताबों के साथ दिख जाएँगे लेकिन शायद ही कोई बच्चा क्लास 1 औऱ 2 का होगा जो आसानी से किताब को पढ़ते हुए मिल जाये। लेकिन अब ये सब बदल रहा है।इस कार्यक्रम के पीछे USAID (United States Agency for International Development), सर्व शिक्षा अभियान, जिला प्रशासन और रूम टू रीड द्वारा किये गये प्रयास हैं जिसके माध्यम से बच्चों में पढ़ने की आदत का विकास हुआ है।

DM Addressing audience on SERI Luanch Event (2)

आज तक इस कार्यक्रम से लगभग 15,000 बच्चे लाभांवित हुए हैं और लगभग 815 टीचरों को भी ट्रेनिंग दी गई है।इस  साल केवल तीन महीने (अगस्त, सितम्बर व अक्टूबर) में ही बच्चों ने 1,56,997 बार पुस्तकालयों की किताबों का लेन-देन किया है।

इस पूरे कार्यक्रम को जिलाधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक) व जिला शिक्षा एवों प्रशिक्षण संस्थान की निगरानी औऱ देखरेख में चलाया जा रहा है। जिला स्तर पर SERI की सफलता का एक प्रमुख कारण अहमद इकबाल, जिलाधिकारी चम्पावत है।अहमद बताते हैं कि “रूम टू रीड की सफलता देखकर इस मॉडल को अन्य जिलों और राज्यों में भी लागू किया जा सकता है। मुझे ये देखकर काफी खुशी होती है कि इस पहल से बच्चों में पढ़ने की क्षमता इतनी तेजी से विकसित होती है।”