देहरादून। शिशु गृह में बच्चों के साथ अमानवीय घटना होना नया नहीं है, इससे पहले भी नारी निकेतन व बालिका गृह में कई घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन विभाग का प्रयास इन घटनाओं पर अंकुश लगाने और दोषियों को सजा दिलाने के बजाए ऐसे मामले दबाने पर ज्यादा रहा। इस मामले में भी विभागीय अधिकारियों ने गुपचुप तरीके से दोषी कर्मचारियों को इधर-उधर कर दिया। यदि जुलाई में तत्कालीन अपर सचिव निरीक्षण के दौरान खामियां मिलने पर जांच न करते तो दो बच्चों की मौत, एक का अपाहिज होना और इन स्थलों पर हो रही मानव तस्करी जैसी घटनाओं पर शाायद ही लगाम लगती और न ही इनके दोषियों को सजा मिलती।
पहला मामला नवंबर 2015 में नारी निकेतन में संवासिनी के साथ दुष्कर्म और गर्भपात कराने की घटना है। इस प्रकरण का पता चलने के बावजूद जिला प्रोबेशन विभाग से लेकर तमाम अधिकारियों ने मामले को छिपाया और संवासिनी का गुपचुप तरीके से गर्भपात कराकर मामला रफादफा करने का प्रयास किया। शिकायत पर जब मामला सामने आया तो हकीकत का पता चला। साथ ही राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष प्रभावती गौड़ ने वर्ष 2015 में ही नारी निकेतन का निरीक्षण कर शासन को भेजी अपनी रिपोर्ट में मानव तस्करी होने का दावा किया था।
लेकिन तब विभाग ने इसे नकार दिया। अब बालिका निकेतन में संदिग्ध नजर आ रही दीपा व करन की भूमिका को अपर सचिव की रिपोर्ट ने मानव तस्करी से जोड़ा है। यानी ये खेल आज नहीं बल्कि 2015 से भी पुराना है। इसके बाद आती है शिशु निकेतन में लावारिस बच्चों की सेहत के प्रति जिम्मेदारी का। दो साल के भीतर दो बच्चों की मौत व एक के अपाहिज होने से तो पूरी सरकारी व्यवस्था को आईना दिखा दिया। इस मामले को भी निपटाने के लिए विभाग ने कर्मचारियों का ट्रांसफर कर पर्दा डाल दिया था, लेकिन अपर सचिव ने अपनी जांच में इस सच को बेपर्दा कर दिया।