सीएम ने ट्वीटर के ज़रिये पलायन कर चुके लोगों से कि गुज़ारिश

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पलायन पर काबू पाने के लिये त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अक बार फिर सोशल मीडिया का सहारा लिया है। इस बार रावत ने अपने ट्वीटर के ज़रिये उन लोगों से जुड़ने की कोशिश की जो अपने गांवों को छोड़कर अौर शहरों में रहने लगे हैं। उन्होंने अपील की है “जो लोग गांव छोड़ कर बाहर रह रहें हैं वह अपनी स्वेच्छा से गांव में रह रहे लोगों को उनकी बंजर जमीनों पर खेती करने की अनुमति दें”। शुक्रवार को किए गए सीएम रावत की इस ट्वीट से कई प्रतिक्रियाओं के साथ ही सकारात्मक जवाब मिले। मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को ट्वीट किया था कि “सभी गांवों में भूमि के साथ सभी गैर-निवासी उत्तराखंडियों को आगे आना चाहिए, अपने गांवों तक जाना चाहिए, और गांव में पीछे छूट गए लोगों से बात करने के बाद उन्हें अपनी खाली खेतों में खेती शुरू करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”

मुख्यमंत्री के ट्वीट पर कई तरह की प्रतिक्रियाऐं आई। कुछ यूजर्स ने कहा कि “कृषि पर जोर देने से ना तो चीजें बदली जाएंगी ना ही पलायन को रोका जाएगा, बल्कि राज्य सरकार को उन वास्तविक मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, जिन्होंने लोगों को गांव छोड़ने के लिए मजबूर किया है जैसे कि चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शिक्षा के अवसर और रोजगार के अवसरों की कमी।”

वहीं एक माइक्रो ब्लॉगिंग साइट के हैंडल से लिखा गया ने कि, “सर, उत्तराखंड गांवों से केवल खेती/खेती के माध्यम से पलायन रोकना मुश्किल है। यह आवश्यक है कि स्कूल और दैनिक सुविधाएं गांवों तक पहुंचें।”

इस विषय पर उनके एक ट्वीट में मुख्यमंत्री ने कृषि को “एक ऐसा विषय बताया जो हमेशा उनके दिल के करीब रहा है।” सीएम ने लिखा है कि, “यह मेरा विश्वास है कि उत्तराखंड पहाड़ी खेती में क्रांति का नेतृत्व करने के लिए विशिष्ट है।हर उत्तराखंडी को अपनी स्वेच्छा से इस क्रांति का हिस्सा बनने के लिए सबसे मेरी अपील है।”

वहीं सीएम कि इस ट्वीट का जवाब देेते , एक हैंडल ने लिखा, “महोदय, बाद में हम इस क्रांति की शुरुआत करने के बारे में बोलेंगे, रोजगार के अवसर बनाने के बारे में पहले बात करें और तभी चीजें बेहतरी के लिए बदल सकती हैं।”

हालांकि, रावत ने अपने ट्वीट्स का सिलसिला जारी रखते हुए कहा कि पौड़ी गढ़वाल के जैरिखाल ब्लॉक में पीड़ा गांव का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि,”प्रवासियों के जाने के बाद उन्होंने अपनी जमीन को छोड़ दिया और गांववालों को उस जमीन पर खेती करने की अनुमति दी। आज इस गांव ने अरोमेटिक पौधों ने एक क्लस्टर विकसित करने में मदद की, आज पीड़ा के छोड़े हुए खेत सुगंधित पौधों की सुगंध से भरे हुए हैं।”

उन्होंने कहा कि “यदि यह अपील हमारे लोगों को गढ़वाल और कुमाऊं के कई अन्य गांवों में पीड़ा गांव जैसा करने के लिए प्रेरित करने में सक्षम हो तो मेरे उद्देश्य पूरा हो जाएगा। यह हमारे पूर्वजों के लिए हमारी सबसे अच्छी श्रद्धांजलि होगी।

गौरतलब है कि इससे पहले भी रावत सोशल मीडिया पर “सेल्फ इन माई विलेज” जैसे हैश टैग के ज़रिये पलायन रोकने की कोशिश करते रहे हैं। पलायन उत्तराखंड के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक है और इसके हल लिये हर मौजूदा संसाधन का प्रयोग किया जाना चाहिये। लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों को जोड़ने के साथ साथ ज़मीनी हकीकतों ता सामना कर उनका इलाज करना भी उतना ही ज़रूरी है।