उत्तराखंड में पक्ष-विपक्ष की तल्खी का रंग सियासत में दिखने लगा

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प्रचण्ड बहुमत की भाजपा सरकार को कांग्रेस सियासी पटखनी देने में कोई चूक नहीं करना चाहती। भाजपा अपने सौ दिनों के कामकाज का बखान करने में जुटी है तो कांग्रेस प्रदेश सरकार के कार्यों को सिरे से खारिज कर रही है। एक-दूसरे की धुर विरोधी भाजपा और कांग्रेस उपलब्धियों व नाकामियों को गिनाने में पीछे नहीं रहना चाहती। यही कारण है कि भाजपा जहां सौ दिन की अपनी सरकार के कार्यों का बखान करने में जुटी है, तो कांग्रेस इसे असफल बताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाह रही है।


सौ दिन पर भाजपा और कांग्रेस एक दूसरे की उपलब्धियों और नाकामियों की अलग-अलग पटकथाएं तैयार कर रही है। इसके पीछे कहीं प्रचंड जीत का आत्म विश्वास है तो कहीं हार के बावजूद विजेताओं को चैन नहीं लेने देने का संकल्प।हालांकि राज्य निर्माण से लेकर अब तक प्रदेश का जिस गति से उत्थान होना चाहिए वो हो नहीं हो पाया। सियासी पार्टियों की राजनीतिक अड़ंगेबाजी से राज्य का हाल बेहाल है। अब तक राज्य में भाजपा और कांग्रेस की सरकारें बदलती रही हैं। हर बार सरकार कुछ करने के लिए एक्शन में आती है, लेकिन धरातल पर काम का असर देखने को नहीं मिलता। अगर धरातल पर काम होता तो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य उत्तराखंड से पलायन की नौबत नहीं आती।


कांग्रेस हर मुद्दों को सड़क से लेकर सदन में रखकर सरकार को आईना दिखाने का काम कर रही है, तो सत्तारूढ़ दल भाजपा सौ दिन की उपलब्धियां गिनाने के लिए रणनीति के तहत आगे बढ़ना चाह रही है। पक्ष और विपक्ष की इस रस्साकसी ने राज्य में सियासत को गर्मा दिया है।