उत्तराखंड में सत्ता पाने के लिए अपने सिद्धांत, पहचान, इकबाल और साधन आदि सब कुछ दाव पर लगाकर भाजपा जहां 18 जनवरी तक अपनी व्यूह रचना में फंसकर कांग्रेस के शर्तिया चुनाव हारने के लिए आश्वस्त थी वहीं पार्टी अब खुद ही बागियों के गुंजल में उलझती लग रही है। दूसरी तरफ बागियों की मार से त्रस्त सत्तारूढ़ कांग्रेस की पंजा छाप उम्मीदवारों की सूची भी इसी फेर में अटकी हुई है। बागियों की पीठ पर चुनावी वैतरणी पार करने को बेताब भाजपा पर बगावत की दुतरफा मार पड़ रही है। एक तरफ कांग्रेस के बागी दलबदलुओं को कमल छाप उम्मीदवार बनाने पर सिद्धांतों से फिसलने के लिए भाजपा की जनता के बीच आलोचना हो रही है, वहीं दूसरी तरफ कमल छाप पर ताल ठोकने से महरूम अनेक भाजपा नेता अब कांग्रेस से पींग बढ़ा रहे हैं। इसीलिए हालात से चैकन्नी भाजपा ने बागियों पर डोरे डालने अथवा उनकी जन्मपत्रियां खंगाल कर उनकी कमजोर नस दबाने की मुहिम षुरू कर दी है। इषारा ऐसा भी है कि और आलोचना से बचने को भाजपा अब एनडी तिवारी के लड़ाकू पुत्र रोहित शेखर को कमल छाप उम्मीदवार बनाने से गुरेज कर सकती है। इसके बावजूद भाजपा के पूर्व विधायकों सहित आधा दर्जन से अधिक नेता पार्टी से इस्तीफा दे चुके हैं। इनके अलावा भी भाजपा के अनेक अन्य जिलों के कद्दावर नेताओं तथा पार्टी के मोर्चों ने बगावत का जो झंडा बुलंद किया है उसे काबू करना पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि नए साल के षुरू में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देहरादून के परेड मैदान में हुई जबरदस्त उत्साहित भीड़ वाली सभा के बूते शायद भाजपा को भरोसा है कि उनके करिश्मे के आगे ऐसी तमाम बगावत फीकी साबित होंगी।
भाजपा के इस आत्मविश्वास के बावजूद उत्तराखंड में 15 फरवरी को होने जा रहे विधान सभा चुनाव में इस बार बागियों का मुद्दा हावी रहने के आसार हैं। बगावत की इस चिंगारी से हालांकि पंजा छाप उम्मीदवारों की सूची थामे बैठी कांग्रेस तो पहले ही जल चुकी है। उसके दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, चार पूर्व मंत्रियों सहित एक दर्जन से ज्यादा पूर्व विधायक पंजा छाप त्याग भाजपा के कमल छाप उम्मीदवार घोशित हो चुके हैं। इसका जवाब देने की बारी अब कांग्रेस की है। भ्रश्टाचार का पर्याय जताए जा चुके कांग्रेस के मंत्रियों और नेताओं के मुकाबले भाजपा में अपना टिकट कट जाने और अब चुनाव में उन्हीं की शान में कसीदे पढ़ने की मजबूरी से बौखलाए प्रमुख कमल छाप बागियों को जाहिर है कि अब कांग्रेस दूध पिलाने के फेर में है। इसी पलटवार की उधेड़बुन में प्रदेष का सत्तारूढ़ दल नामांकन षुरू हो जाने के बावजूद बीस जनवरी को भी पंजा छाप उम्मीदवारों की सूची जारी नहीं कर पाया। सूत्र कम से कम आधा दर्जन सीटों पर भाजपा के मजबूत बागी दावेदारों के कांग्रेस से मोलतोल की भनक दे रहे हैं। उधर भाजपा भी बाकी छह सीटों पर कमल छाप उम्मीदवारों की घोषणा, कांग्रेस की सूची के इंतजार में अभी तक रोके बैठी है।
अपने बागियों को कमल छाप मिल जाने से कांग्रेस हालांकि अपने पांच साला षासनकाल पर हमले की भाजपा की धार कुंद हो जाने के प्रति तो आश्वस्त हो गई है मगर उनकी टक्कर का उम्मीदवार ढूंढने में सत्ताधारी दल के दांतों में पसीना आ रहा है। इन बागियों में चूंकि पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी और विजय बहुगुणा जैसे राज्य में व्यापक जनाधार वाले आधा दर्जन नेता षामिल हैं, इसलिए कांग्रेस को कई मोर्चों पर एकसाथ जूझना पड़ रहा है। खासकर गढ़वाल में तो भाजपा के उम्मीदवारों के सामने कांग्रेस के पास जिताउ उम्मीदवारों का जबरदस्त टोटा पड़ गया है। इसीलिए सत्ताधारी दल, भाजपा के असंतुश्टों को साथ लेकर उसे, उसी की रणनीति से चित करने पर उतारू होती दिख रही है। पंजा छाप उम्मीदवार तय करने में देरी का अन्य बड़ा कारण कांग्रेस के विजय अभियान का अब मुख्यमंत्री हरीश रावत के इर्द गिर्द सिमट जाना भी है। पिछले दस महीने में उत्तराखंड के राजनीतिक घटनाक्रम ने ऐसी करवट ली है कि कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व पूरी तरह छीज गया है। इसलिए मुमकिन है कि उम्मीदवारों को पंजा छाप सौंपने में अतिरिक्त एहतियात बरती जा रही हो। उम्मीदवारी में उन्हें तवज्जो दी जा सकती है जिन पर हरीश रावत खुद दाव लगाने को तैयार हों। क्योंकि ठंड से ठिठुर रहे राज्य के इस चौथे विधानसभा चुनाव में आखिर रायशुमारी तो हरीश रावत के नेतृत्व पर ही हो रही है।