पंजा छाप सूचीः भाई-भतीजावाद से मुक्त, महिलाओं व दलबदलुओं से युक्त 

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उत्तराखंड में कांग्रेस के बहुप्रतीक्षित पंजा छाप उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही तीन बात एकदम साफ हो गईं। पहली बात यह कि नेताओं को अनुशसित कर रहा चुनाव आयोग खुद कानून व्यवस्था संभालने में नाकारा साबित हो गया वरना 63 उम्मीदवारों की सूची जारी होने पर कांग्रेस भवन में हुए बवाल से बचा जा सकता था। दूसरी बात यह उभरी कि कांग्रेस ने भाई-भतीजावाद से कसम खा कर परहेज किया, जिससे साफ है कि सत्तारूढ़ दल अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा दोनों को घेरेगा। तीसरी बात यह कि कांग्रेस ने महिलाओं को अपनी प्रतिद्वंद्वी भाजपा के मुकाबले करीब दुगुनी सीटों से पंजा छाप पर चुनाव लड़ाने का मनोबल दिखाया है। यह बात दीगर है कि पंजा छाप उम्मीदवारी बांटने में कांग्रेस आला कमान भाजपा के बागियों को गले लगाने के लोभ से नहीं बच सका। इसीलिए कांग्रेस की पहली सूची पर नजर डालते ही सुनीता बाजवा, शैलेंद्र रावत और सुरेशचंद जैन के नाम सीधे नजर में चढ़ गए।

सुनीता बाजवा पर कांग्रेस ने बाजपुर से दांव लगाया है। बाजपुर से 15 जनवरी तक कांग्रेस के दिग्गज रहे यशपाल आर्य कमल छाप पकड़े मैदान में हैं। उनको सबक सिखाने के फेर में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सुनीता के पति जगतार सिंह बाजवा द्वारा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का सिर कलम कर लेने की कसम को भी नजरअंदाज कर दिया। शैलेंद्र रावत को पंजा छाप देकर यमकेश्वर से ऋतु खंडूड़ी के सामने उतारा गया है। ऋतु दरअसल भाजपा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खंडूड़ी की बेटी हैं। शैलेंद कोटद्वार से कमल छाप उम्मीदवारी के प्रबल दावेदार थे मगर बागी कांग्रेसी पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत को जब वहां भाजपा ने मैदान में उतारा तो उनके सब्र का प्याला छलक गया। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री खंडूड़ी की उम्मीदवारी के चक्कर में शैलेंद्र का पत्ता कट गया था हालांकि तब वे कोटद्वार से ही भाजपा विधायक थे। अंततः शैलेंद्र कांग्रेस के पंजे पर और बगल की यमकेश्वर सीट पर ही सही पूरे दस साल बाद चुनाव लड़ने में कामयाब होंगे। कांग्रेस के पंजा छाप पर कोटद्वार सीट से स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी उम्मीदवार बनाए गए हैं जो अपने ही साथ मंत्री रहे मगर अब कमल छापधारी हरक सिंह रावत का सामना करेंगे।

पंजा छाप उम्मीदवारों की सूची में सरसरी नजर में भाजपा के तीसरे नामी बागी सुरेशचंद जैन पकड़ में आए है। सुरेशचंद को कांग्रेस ने रूड़की से अपने ही दलबदलू विधायक और कमल छाप उम्मीदवार प्रदीप बत्रा के सामने उम्मीदवार बनाया है। यह संयोग ही है कि साल 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने रूड़की से पंजा छाप, भाजपा के बागी को ही अता फरमाया था मगर तब उसका नाम प्रदीप बत्रा था। प्रदीप बत्रा ने पिछले साल मार्च में नौ अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस से बगावत करके आखिरकार भाजपा में घरवापसी कर ली थी। उसके बाद 16 जनवरी को भाजपा ने अपने 64 उम्मीदवारों की सूची में जब प्रदीप बत्रा को भी कमल छाप थमा दिया तो सुरेशचंद जैन ने बिना देरी किए साल 2012 का इतिहास दोहरा दिया। उन्होंने आनन फानन अपने आप को कमल छाप के अवसरवादी कीचड़ से बाहर निकाला और लपक कर पंजा थाम लिया। सुरेशचंद जैन रूड़की के बड़े मुअज्जिज नेता हैं और वोटों के साथ-साथ लक्ष्मी के मुरीद भी हैं।

कांग्रेस ने अभी सात उम्मीदवारों के नामों के पत्ते नहीं खोले हैं, शायद उनमें किसी कमल छाप बागी को पंजे रूपी तिनके का चुनावी वैतरणी पार करने को सहारा मिल जाए! बहरहाल राज्य में सत्तारूढ़ दल ने महिला उम्मीदवारों के मामले में अपनी प्रतिद्वंद्वी और कल तक बेटियों की सरपरस्ती का ढोल पीट रही भाजपा को पीछे छोड़ दिया है। कांग्रेस की तरफ से अभी कुल सात सीटों पर महिलाओं को पंजा छाप देकर मैदान में उतरा गया है, जबकि भाजपा ने महज चार महिलाओं को ही विधायी सदन में भेजने लायक समझा है। हालांकि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या, उनमें साक्षरता की दर और दुर्गम पहाड़ी परिस्थितियों में उनकी जिजीविशा के मुकाबले कुल 70 विधानसभा सीटों में से महज दस फीसद पर ही उन्हें लड़ाया जाना तो मातृशक्ति का अपमान ही है। इसके बावजूद शायद कांग्रेस ने अपनी प्रतिद्वंद्वी से करीब दुगुनी सीटों पर महिलाओं को पंजा छाप पकड़ा कर यह जताने की कोंशिश की है कि खुद महिला अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी ने पत्नी त्यागी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले तो स्त्री शक्ति का मान ही रखा है।