राज्य आंदोलनकारियों के आरक्षण पर खंडपीठ एकमत नहीं

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राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस फीसद क्षेतिज आरक्षण के मामले में नैनीताल हाई कोर्ट की खंडपीठ एकमत नहीं है। खंडपीठ की राय इस मामले में बंट गई। नतीजन एक ने आरक्षण को सही और एक ने गलत बताया।

हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस फीसद क्षेतिज आरक्षण के मामले में फैसला सुना दिया है। खंडपीठ में शामिल जस्टिस सुधांशु धुलिया ने राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार की ओर से जारी सभी शासनादेशों को संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करार दिया। साथ ही इसे निरस्त करने के आदेश दिए। 

वहीं, इस मामले में जस्टिस यूसी ध्यानी ने कहा है कि राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने के लिए जारी शासनादेशों में संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नही हुआ है। लिहाजा आरक्षण विधि सम्मत है। 

इस मामले में खंडपीठ की राय एक न होने पर विधि विशेषज्ञ बताते हैं कि फैसले में मुख्य न्यायाधीश के पास दो विकल्प हैं। पहला की वह  फैसले को किसी तीसरे जज को रेफर कर दें। ऐसे में तीसरा जज जिसके तथ्य को सही ठहराएंगे, उसे फिर फाइनल आदेश माना जाएगा। 

दूसरा विकल्प यह है कि मुख्य न्यायाधीश तीन अन्य जजों की पीठ का गठन कर मामले को रेफर कर दें। तीन जजों की पीठ जो फैसला देगी उसे माना जाएगा। यहां बता दें कि राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण का मामला इन दी मेटर ऑफ अप्वाईमेंट एक्टिविस्ट संबंधी जनहित याचिका के रूप में 2011 में कोर्ट में आया था। सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित रखा गया था, जिसे आज जारी कर दिया गया।