गौरक्षा के दौर मे मसूरी में बनी पहली गौशाला

0
2812

पहाड़ों की रानी मसूरी के कुछ युवाओं ने एक अनूठी पहल की हैं जिसमें उन्होंने क्षेत्रीय मसूरी म्यूनिसिपल बोर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है। जी हां पहाड़ के तीन युवा अमित गर्ग,निखिल अग्रवाल और वैभव तयाल जो लैंडोर मसूरी के रहने वाले हैं उन्होंने महसूस किया कि शहर में कोई भी पब्लिक गौशाला नहीं है और अगर है भी तो उनके पास जिन्होंने अपनी गायें पाल रखी हैं।

निखिल बताते हैं, ‘गाय की सेवा के लिए कुछ नहीं था, इसलिए हमें लगा कि गौशाला शुरु होनी चाहिए।’ वैभव तयाल ने बताया, ‘इस विषय मॆ श्री सनातन धर्म सभा के महामंत्री राकेश अग्रवाल जी से चर्चा की गई तो उन्होने आगे बढ़ते हुए तुरंत गौशाला के लिये सभा की जगह उपलब्ध कराई।’ निखिल अग्रवाल बताते हैं, ‘गौशाला के निर्माण में श्री सनातन धर्म कीर्तन मंडल का सहयोग प्राप्त हुआ जिन्होंने संस्कृत महाविधालय में गौशाला खोलने के लिए ज़मीन दी।’

IMG_4534

गौशाला खालेने के एक महीने बाद अमित, निखिल और वैभव एक गाय और उसके बछड़े को लेकर आए और उसके बाद शीट, लकड़ी और सभा के सीनियर सदस्यों के थोड़े बहुत आर्थिक मदद से एक अस्थायी गौशाला तैयार किया गया। गौशाला शुरु होने के लगभग एक महीने बाद गौशाला में लगभग 3 गायें और 2 बछड़े आए जिसको सोसाईटी के लोगों ने दिया वो भी इन तीनों युवाओं की डेडिकेशन देखकर।

मसूरी निवासी प्रोफेसर गणेश सैली बताते हैं कि “अगर हम पहले की बात करें तो लगभग सन् 1960 और 62 में कैंटोनमेंट ब्रिटिश इंडिया के समय में कौनजी हाउस का होना जरुरी था, जिसमें सड़क पर घूमने वाले जानवरों को रखा जाता था और उन लोगों से पैनाल्टी ली जाती थी जो अपने पालतू जानवरों के लिए केयरलेस हुआ करते थे, लेकिन अंग्रेजों के साथ यह नियम भी देश से गायब सा हो गया पर उस समय भी यह गौशाला नहीं होती थी।”

अभी के लिए इन तीनों युवाओं का पहला मुद्दा है कि बरसात आने से पहले इस गौशाला की बाउंड्री वाल और छत को बनवा दिया जाए और इन्हें उम्मीद हैं कि इस काम में उनका सहयोग म्यूनिसिपल बोर्ड और क्षेत्रीय विधायक जरुर करेंगें जिससे इस गौशाला में रहने वाली गायें सुरक्षित रह सकें। इन दिनों जहां देशभर मं गौरक्षा एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है और इसके नाम पर इन दिनों हिंसक घटनाऐं रोज़ सामने आ रही हैं वहीं इन युवाओं की गायों के संरक्षण के लिये ये पहल सच में काबिले तारीफ है।