दीपा बनी महिलाओं के लिए मिसाल

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टूटने लगे होसला तो ये याद रखना, बिना मेहनत के तख्तोताज नहीं बनते, ढूढ लेते है अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते। जी हां ये पंक्तियां सटिक बैठती है दीपा खर्कवाल पर जिसने अधेरों में उजाले की एेसी किरण तलाशी की आज आत्मनिर्भर होने के साथ ही दूसरों के लिए मिसाल भी बन गयी है।

प्रतिकूल परिस्थितियों में महज 300/- रुपये से शुरू उनका गारमेंट्स का कारोबार आज ऊंचाइयों को छू रहा है। अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने वाली चम्पावत की दीपा आज पूरे जिले के लिए मिसाल बन चुकी हैं।

बात 1999 की है, जब एक वाकये ने दीपा की जिंदगी ही बदल डाली। तब वह महज 37 वर्ष की थीं। पति कैलाश खर्कवाल की सेहत बिगड़ने पर परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और पति की सेहत के साथ रोजगार की राह भी तलाशने लगीं। कपड़ों की सिलाई-कड़ाई में हुनरमंद दीपा को टेलीविजन के एक कार्यक्रम से रोशनी की किरण मिली।

दीपा, ‘टीवी में एक महिला तकिये के कवर बनाने और बाजार में उन्हें बेचने का काम करती थी। इस कार्यक्रम को गारमेंट्स का काम करने का विचार आया। तब दीपा के पास केवल 300/- रुपये थे। इससे एक सिलाई मशीन ली और महिलाओं के कपड़े सिलने लगी। लेकिन, मुश्किल यह थी कि इन्हें बेचा कहां जाये, उस पर घर-गृहस्थी संभालने के साथ काम को समय पर पूरा करने की चुनौती भी। पति का भरोसा, खुद की हिम्मत और ऊपर वाले की कृपा ने राह के रोड़े धीरे-धीरे दूर कर दिये।’

बताती हैं, उन्होंने चम्पावत नगरपालिका की योजना से वित्तीय मदद ली। काम बढ़ने लगा तो आत्मविश्वास भी बढ़ता चला गया और धीरे-धीरे सफलता मिलने लगी। आज खर्कवाल बुटीक क्षेत्र का एक खासा ब्रांड बन गया है। काम का विस्तार भी खूब होने लगा है। इस सोच को उन्होंने एक कमरे से शुरू किया था, आज वह आलीशान भवन तक पहुंच गई है।

वह 10-12 महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं। दीपा की इसी मेहनत और लगन को देखते हुए उद्योग विभाग ने नौ वर्ष पूर्व उन्हें सर्वश्रेष्ठ उद्यमी के पुरस्कार से भी नवाजा। आज वह समाज में आर्थिक रूप से कमजोर और अशक्त महिलाओं के लिए प्रेरणा बनी हुई हैं।

दीपा जैसे महिलाओं के लिए कहा जा सकता है कि खुदी को कर बुलंद इतना की खुद खुदा भी तुझसे आकर पुछे, बता तेरी रजा क्या है।