देहरादून में उतरी भिखारियों की नई खेप

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    उत्तराखंड में भिखारियों को भीख देना प्रतिबंधित है। भीख लेने वाला और देने वाला दोनों इस अधिनियम के तहत दोषी हैं लेकिन अभी तक यह व्यवस्था जस की तस चल रही है। भिखारी शासन के आदेशों के बावजूद लगातार शासना के आदेशों को ठेंगा दिखा रहे हैं।

    उत्तराखंड की राजधानी इस अपवाद से वंचित नहीं है। अभी हाल ही की बात है कि प्रिंस चौक पर जैसे ही लाल बत्ती पर रुका सात से आठ अपंग भिखारियों ने मेरी कार को घेर लिया और शीशे खटका भीख मांगने लगे। मेरे साथ-साथ अन्य कारों के भी शीशे खटकाए जा रहे थे। सिग्नल हरा हुआ और मैं बढ़ गया लेकिन यहीं से एक प्रश्न उठा कि ये नए भिखारी कहां से आ गए और प्रिंस चौक के पुराने भिखारी कहां गए। अधिकांश लोग इस लोग इस भिखारी दस्ते को आम भिखारी समझने की भूल करते हैं लेकिन यह भिखारियों का विशेष दस्त है। वह यह है कि सभी भिखारियों का कोई ना कोई अंग कटा हुआ था। सबसे बड़ी बात ये भिखारियों का नया दस्ता था। आपबीती की यह जानकारी एडवोकेट अमित तोमर ने दी।
    देहरादून के लगभग सभी भिखारियों को पहचानना आसान है। इन भिखारियों को गौर से देखा जाए तो इनके कटे हुए अंग इस बात की गवाही देते हैं कि ये अंग व्यावसायिकता हेतु काटे गए हैं। सभी भिखारियों के कटे अंगों को मानो एक ही सिलाई मशीन ने सिला है। यह सभी भिखारी लगभग 35-45 वर्ष के बीच के हैं। इस संदर्भ में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं समाजसेवी अमित तोमर बताते हैं कि उन्होंने प्रलोभन देकर इन सबके साथ बैठ चाय पी। सभी भिखारी असम,बंगाल,ओडिसा के है जो अभी 10 दिन पूर्व ठेकेदार द्वारा यहां लाए गए यानि देहरादून के पुराने भिखारियों का तबादला कर दिया गया और उनकी जगह नहीं खेप उतार दी गई।
    वहीं, एडवोकेट अमित तोमर बताते हैं कि मुझे इनकी बातों पर विश्वास नही हुआ तो शाम मद्रासी बस्ती पहुंच गया। शराब के नशे में धुत 30-35 अपंग भिखारी सडक़ किनारे लड़ रहे थे। उनके बीच पैसे के बंटवारे को लेकर विवाद था। वे बताते हैं कि उन्होंने यह अनुमान लगा लिया कि ठेकेदार ने केवल शराब दी थी और दिहाड़ी का पैसा नही बांटा था, जिसके कारण इनके बीच आपसी विवाद चल रहा था। यह स्थिति उसी तरह है कि जैसे एक व्यवसाय से जुड़े लोग सामूहिक रूप से एक कारोबार में जुटे हुए हैं। इन भिखारियों के बीच कोई महिला या बच्चें नहीं है। सभी भिखारी अपंग और व्यवसायिक हैं। उनका कहना है कि इस गिरोह को देखकर सीधा लगता है कि उन्हें संदेह है कहीं फिर दून से बच्चे चोरी ना होने लगे। उन्होंने इस मामले में पुलिस से भी कार्रवाई करने की मांग की है।

    इस संदर्भ में थाना कोतवाली से जानकारी मांगी गई तो उनका कहना था कि इस महीने में अब तक 21 भिखारी पकड़े गए हैं,जिन पर उचित कार्रवाई की गई है, जबकि डालनवाला थाना, रायपुर थाना,राजपुर और पटेल नगर थानों में चर्चा की गई, उन्हें कोई भिखारी नहीं मिला। जबकि हर चौराहे पर व्यवसायिक रूप से खुलेआम भीख मांगते दिखाई देते हैं। एडवोकेट अमित तोमर बताते हैं कि भिक्षावृत्ति अधिनियम लागू होने के बाद भिखारियों पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है।