उत्तराखंड राज्य निर्माण के 16 सालों का सफ़र पूरा हो चुका है और ये राज्य अब सतरहवे साल में प्रवेश कर रहा है ऐसे में एक बार फिर चौथी चुनी हुई सरकार के लिए नेता और राष्ट्रीय पार्टिया जनता से जनादेश मांगने उनके द्वार पहुंच रही है। इस में सवाल ये उठता है की इन 16 सालों के सफ़र में 7 मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल तीन बार जनता द्वारा चुनी सरकार का बनना और फिर भी विकास को तरसते गाँव आखिर क्यों ?आइए देखें राजधानी से मात्र 22 किमी दूर ग्राम थानों,तलाई ,सिंधवाल और 22 गाँव के हालात
गांव के गांव हो चुके खाली,न खेती,न सड़क न स्वास्थ्य,सवाल वही आखिर कैसे बचे गाँव?
उत्तराखंड का जन्म एक बड़े राज्य जनांदोलन के रूप में हुआ। यहां की आम जनता उत्तर प्रदेश में रहते हुए विकास और रोज़गार से असंतुष्ठ थी। रोज़गार और पहाड़ का विकास यहाँ की सबसे बड़ी जरुरत थी ,एक लम्बे जनसंघर्ष के बाद आखिरकार 9 नवम्बर 2000 को राज्य का निर्माण हो गया। अब तक के 16 सालों के सफ़र में राज्य में एक अंतरिम सरकार और तीन जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार बनी है अब चौथी बार राजनीतिक दल जनता से जनादेश की उम्मीद में 2017 के विधान सभा चुनाव के लिए गाँव की राह पर चल पड़े हैं।ऐसे में राज्य की ग्रामीण जनता नेताओं से जल ,जंगल और जमींन का हिसाब मांग रही है , नेताओं से पूछ रही है कब मिलेगी मूलभूत सुविधा।
राजधानी से मात्र 22 किमी दूर ग्राम तलाई और थानों में जनता ने छेत्र के विकास को मुद्दा बना लिया है अनिल कुमार बहुगुणा ,ग्राम तलाई का मानना है कि उत्तराखंड के आम आदमी भी यह मानते हैं कि आज भी पहाड़ विकास रोज़गार की बाट जोहते हुए पलायन की मार झेल रहा है. भाजपा और कांग्रेस और सभी क्षेत्रीय दल आज भी पहाड़ के पानी और पहाड़ की जवानी को नहीं रोक पाए हैं,छात्र शिक्षा के लिए पलायन कर रहे हैं,युवा रोजगार के लिए लेकिन चुनाव आते ही नेता प्रचार -प्रसार कर जनता के पास पहुंच तो रहे हैं फिर वही वादे और दावे के रूप में भरोसा जताया जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत में तस्वीर इससे जुदा है ग्रामीण क्षेत्र में वर्षों से राजनीती कर रहे नेता एक बार फिर जनता से 2017 के लिए विकास के सपने दिखा कर दूसरे दलों से अपनी कमीज सफ़ेद दिखने की कोशिश कर रहे हैं।राधे श्याम बहुगुणा ,वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ,गाम प्रधान का कहना है की उत्तराखंड के 16 सालों के सफ़र जहां मैदान विकास की नयी इबारत लिख रहे वही अनियोजित विकास और दूरदर्शिता की कमी ने उत्तराखंड के पहाड़ पर अभी तक विकास की कोई भी ठोस उम्मीद नहीं जगाई ,जनतन्त्र के इस महापर्व में एक जनता के द्वार नेताओं की दस्तक होने लगी है ऐसे में आशा करते 2017 साल पूरे होते होते तस्वीर कुछ बदलेगी,मैदानों के साथ गांव भी विकास की सीढ़ी चढ़ेंगे ।