ब्राह्मण –राजपूत के बाद अब मुस्लिम –एससी बने उत्तराखंड के एक्स फैक्टर
चुनाव आयोग ने जैसे ही चुनावो की घोषणा की उत्तराखंड में राजनैतिक पार्टियां अपना अंकगणित ठीक करने में लग गई हैं। कांग्रेस ने अपना गणित प्रशांत किशोर के हवाले कर दिया है , तो वही बीजेपी ने भी एक भारी भरकम वॉर रूम तैयार कर लिया हैं ।दरअसल दोनों पार्टियों के लिए उत्तराखंड का गणित अब कुछ अलग करवट लेता दिख रहा हैं । पहले लड़ाई अगर कुमाऊं बनाम गढ़वाल, राजपूत बनाम ब्राह्मण थी , जो अब बदलकर मुस्लिम –एससी के बीच फंस कर रह गई हैं। जिस पार्टी को इन दोनों का समर्थन मिलेगा राज्य की सरकार लगभग यही से बनना तय हैं क्योंकि ये जिले ही लगभग उत्तराखंड को आधी सीटें देते हैं।
एक अनुमान के मुताबित उत्तराखंड के ७० सीट में से लगभग २० से २२ सीटें ऐशी हैं जिनमे मुस्लिम मतदातों की संख्या १५ % से ५०% के बीच हैं . इनमें हरिद्धार, देहरादून, नैनीताल , उधमसिंह नगर, व एक सीट पौड़ी गढ़वाल की कोटद्वार भी हैं जिसमें मुस्लिमो की खासी तादाद हैं . इसके अलावा उपरोक्त जिल्लो में अनुसूचित जाति की जनसँख्या भी अच्छी खासी हैं , उत्तराखंड में इनकी संख्या लगभग १७–१८% फीसदी हैं जो अब तक बसपा का वोटर रहा हैं।
इसके अलावा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की सीटो पर भी बीजेपी –कांग्रेस और बीएसपी की नजर रहेगी। बसपा को इन वोटो का शायद इस बार सीधा फ़ायदा ना भी मिले फिर भी वह इस वोट बैंक की दौड़ मैं सबसे आगे दिखती हैं , बीजेपी ने इस बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में युवा अजय टमटा को शामिल करके पिछड़ी जातियों में यह सन्देश दिया हैं की बीजेपी उनके साथ हैं। यह तरकीब कहा तक काम आएगी यह तो चुनाव रिजल्ट ही तय करेंगे।
इस बार का चुनाव इस लिए भी अहम् हैं कि पिछले १६ सालो का अनुभव जनता को मिल चुका हैं , २०१७ का चुनाव बीजेपी व कांग्रेस के लिए शायद अंतिम चुनाव होगा जो यह तय करेगा देश की इन बड़ी पार्टियों ने उत्तराखंड को राज्य बनने के बाद किस प्रकार से ठगा , और यही सोच शायद राज्य में बिखरी क्षेत्रीय पार्टियों को एक करने में सफल हो। क्योंकि राष्ट्रीय पार्टियों की सोच राष्ट्रीय ही होती हैं। वे क्षेत्रीय मुद्दों को या तो समझना ही नहीं चाहती हैं या जानबूझ कर जनता को अपने बडे नेताओं के झांसे में फसाकर वोट बटोरना चाहते हैं। दोने पार्टियों में दागी –बागी भी सरदर्द बने हुए हैं , ऐसे में प्रत्याशियों का चुनाव भी बहुत महत्वपूर्ण होने जा रहा हैं ।
उत्तराखंड में इस बार में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है। कांग्रेस जहां सीएम हरीश रावत पर दाव लगा रहीं हैं वहीं बीजेपी मुख्यमंत्री के रूप में किसी कॊ भी पेश नहीं करना चाहती। बड़ी पार्टी हैं सामूहिक नेतृत्व की बात की जा रहीं हैं , पार्टी मोदी की नाम पर वोट मांगेगी। दरअसल बीजेपी को चार चार पूर्व मुख्यमंत्रियों से जूझना पड रहा हैं। किसी एक पर दाव लगाने का मतलब विद्रोह। लिहाजा बीजेपी अपने चुनावी कैंपेन में हरीश रावत के खिलाफ मोदी सरकार द्धारा उत्तराखंड को दिए गए तोहफों को भुनाने की कोशिश कर रहीं हैं जिसमें 12,000 करोड़ रुपये ऑल वेदर रोड और 17,000 करोड़ रुपये ऋषिकेश –कर्णप्रयाग रेलवे के लिए दिए गए हैं ।
ठगी तो जाएगी जनता, जिसके लिए दोनों पार्टियों का विज़न अभी भी साफ़ नहीं हैं। जल जंगल जवानी , पर्यावरण, पानी,से कब मुक्ति मिलेगी ये कोई पार्टी नहीं जानती , और न ही इनके पास पिछले सोलह सालों मैं इससे जूझने की कोई तस्वीर दीखी।