स्वाइन फ्लू का प्रकोप राज्य में बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के दावे भी लचर व्यवस्था की भेंट चढ़ रहे हैं। आलम यह है कि संदेह पर जिन मरीजों के सैंपल प्रारंभिक लक्षण के बाद जांच के लिए भेजे जा रहे हैं, उनपर भी कई दिन बाद भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही। ऐसे में तुक्के में मरीज का उपचार चल रहा है। इतना ही नहीं कई मामलों में तो मरीज के मरने के बाद स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो रही है। इस कारण मरीजों की जान पर आफत बनी हुई है।
उत्तराखंड में स्वाइन फ्लू के मामलों पर गौर करें तो अभी तक आठ लोग इस बीमारी की भेंट चढ़ चुके हैं। इसके अलावा कुल 34 लोगों में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन विभाग बीमारी को लेकर अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया है। ढुलमुल रवैये के चलते बीमारी और व्यवस्था दोनों ही मरीजों के लिए लानलेवा बनी हुई है। आलम यह है कि मरीजों के नाम पर सरकारी अस्पताल में न संसाधन हैं और न ही सुविधा। दरअसल, प्रदेश में कहीं भी स्वाइन फ्लू की जांच की व्यवस्था नहीं है। ऐसे में सैंपल जांच के लिए राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) को भेजे जाते हैं। जिनकी रिपोर्ट आने में सप्ताहभर से भी अधिक का वक्त लग रहा है। इस दौरान मरीज का इलाज संदेह के आधार पर ही होता है। इस साल और इससे पहले भी कई मामले ऐसे सामने आए हैं, जहां रिपोर्ट व्यक्ति की मृत्यु के बाद आई। यह हाल तब है जब श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में अत्याधुनिक लैब बनकर तैयार है। सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग की नजर में आम आदमी की जान की कीमत क्या है। मामले में मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. तारा चंद पंत का कहना है कि जांच के लिए नमूने दिल्ली भेजे जाते हैं। जिसकी रिपोर्ट आने में वक्त लगता है। हालांकि इस बीच मरीज का उपचार शुरू कर दिया जाता है। लेकिन, विभाग की इस सरकारी चाल से मरीजों का हाल बेहाल हो रहा है।