पहाड़ों के लिये छोड़ दिया इस इंजीनियर ने विदेश की सुख सविधाओं को

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उत्तराखंड में पहाड़ों से पलायन की कहानियां अब घर घर की बात हो गई हैं। ऐसे में पलायन को मात देकर घर वापसी की कहानिया कम लेकिन जब भी सुनाी देती हैं तो अच्छा लगता है। ऐसी ही एक कहानी है “समौण” और इसके जनक दुर्गपाल और  दीप्ती चौहान की। देहरादून-मसूरी मार्ग पर ये दुकान शायद ज्यादा लोगों की निगाहें नहीं पकड़ पाती है, लेकिन ये दुकान भले ही छोटी हो पर अपने आप में उत्तराखंड की तमाम सांस्कृतिक विरासत को संजोये रखे है।

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इस दुकान के मालिक दुर्गपाल चौहान का जन्म रुद्रप्रयाग के फलासी गांव मे हुआ। उत्तराखंड के हज़रों लोगों की तरह दुर्गपाल भी कम उम्र में ही पहाड़ों को छोड़ फरीदाबाद में रहने लगे। पेशे से साॅफ्टवेयर इंजीनियर दुर्गपाल ने दो साल अमरीका और करीब आठ साल ब्रिटेन में काम किया, लेकिन इसके बाद दुर्गपाल को जन्मभूमि ने उन्हें अपनी तरफ फिर बुलाया और उन्होने इसे ही अपनी कर्मभूमि भी बना लिया। 

दुर्गपाल बताते हैं कि उनका और उनकी पत्नी दीप्ती का हमेशा से विदेश में पैसे कमा कर उत्तराखंड वापस आने और यहां के लोगों के लिये कुछ करने का मन था, इसी संकल्प का नतीजा है कि आज ये दंपति अपने परिवार के साथ-साथ समाजिक बदलाव के लिये अपनी शुरुआत ‘समौण’ को बेहतरीन तरह से चला रहे हैं।  

दुर्गपाल कहते हैं कि, “उत्तराखंड में पर्यटन और संस्कृति को राजस्थान जैसे राज्यों की तर्ज पर इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां के पर्यटन स्थल, खाना, सांस्कृतिक धरोहर सभी अनमोल है।” शुरुआती सालों में इस दंपति ने लोगों के घर घर जाकर राज्यभर की सांस्कृतिक विरासत को संजोया। अब ये मुहिम इस मुकाम तक पहुंच गयी है कि आपको देहरादून के इस मिनि-संग्राहलय में चमोली की काश्तकारी, हरसिल की राजमा, सल्ट की हल्दी और अल्मोड़ा के तांबे के बर्तन एक जगह मिल जायेंगे।

समौण ने पर्यटकों और स्थानीय़ लोगों के बीच भी अपनी खासी पहचान बना ली है। दिल्ली से आई पूजा सिन्हा बहुगुणा कहती हैं कि, “ये एक ऐसी दुकान है जहां आपको उत्तराखंड के 13 जिलों का हस्तशिल्प देखने को मिलता हैं। खास बात ये है कि यहां मौजूद छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज़ों को खासतौर पर संजोया गया है, जिसमें उत्तराखंड की झलक व स्वाद बसा है। ” 

दुर्गपाल और दीप्ती इन दिनों कारगारों और काश्तगारों के साथ काम कर रहे हैं ताकि मार्केटिंग की मदद से यह सामान ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उत्तराखंड के सामान को पहुंचाया जा सके।

‘समौण’ के प्रयासों को सराहते हुए केदारनाथ विधायक मनोज रावत कहते हैं कि, “हमारे यहां लोग कुछ हजार की नौकरी के लिये पहाड़ों को छोड़ मैदानों का रुख कर रहे हैं। एेसे में ये देखना प्रेरणा दायक है कि कैसे एक इंजीनियर अपनी नौकरी और सुविधाओं को छोड़ पहाड़ों पर वापस आ गया है। इस छोटी से कोशिश का आने वाले दिनों में बड़ा असर देखने को मिल सकता है।”