उत्तराखण्ड में11 मार्च को ईवीएम (इलेक्शन वोटिंग मशीन ) चुनाव परिणाम आने के बाद चाहे जिसकी सरकार बने लेकिन नयी सरकार के लिए आर्थिक संकट एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरेगा। एक बात तो सच है कि जिस आर्थिक अराजकता का परिचय वर्तमान सरकार ने दिया है उससे नई सरकार के सामने विकास के रास्ते को छूना आसान काम नही है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में अकेले स्टाम्प और रजिस्ट्री से होने वाली कमाई में 10 प्रतिशत की कमी आयी है। इसी तरह शराब के ठेके हाइवे से हटाने के कोर्ट के आदेश के बाद अब आबकारी से होने वाली आय भी कम होगी। वैसे आबकारी को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष ने लंबे अरसे से वाद छिड़ा रहा है।
नेता प्रतिपक्ष अजय भट्ट मानते हैं कि वर्तमान मुख्यमंत्री ने कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए सरकार को करोड़ों का चूना लगाया, जबकि सत्तापक्ष इसे उपलब्धि मानता है। उनका कहना है कि उन्होंने शराब के कारोबार से अच्छी उपलब्धि हासिल की है पर यह अर्धसत्य है। लगभग 40 हजार करोड़ के कर्ज से जूझ रहे प्रदेश को नोटबंदी से बड़ा झटका लगा है। उससे पहले सरकार के उपायों ने भी प्रदेश को आर्थिक गर्त में ढकेला है।
आंकड़े बताते हैं कि अकेले स्टांप और रजिस्ट्री शुल्क से ही सरकार को इस वित्तीय वर्ष में 1200 करोड़ रुपये की आय का अनुमान था किन्तु फरवरी महीने में वह 554 करोड़ रुपये पर ही पहुंच सकी है, जबकि पिछले वित्तीय वर्ष में इस महीने 683 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित हो चुका था। पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इस बार की कमाई 10 प्रतिशत कम है। रजिस्ट्री में भारी गिरावट आने के कारण यह कमी आई है। इसके कई कारण बताए जा रहे हैं।
कांग्रेस ने सत्ता में आने के 100 दिन में बेरोजगारी भत्ता देने और नई नौकरियां खोलने का वादा किया है। इन दो पमुख घोषणाओं को कंपलीट में लगभग 200 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। पात्रों की संख्या बढ़ी तो खर्च और भी बढ़ेगा।
कांग्रेस ने अपने संकल्प पत्र में जहां कई वादे किए हैं और लोगों को सब्जबाग दिखाने का काम किया है। जिनमें महिला मंगलदलों को स्टार्टअप के तौर पर 20 हजार तथा सामूहिक खेती के लिए एक लाख तक अनुदान शामिल है। इसी प्रकार युवाओं के लिए ढाई हजार प्रति युवाओं को ढाई हजार रूपए तथा सौ दिन का रोजगार दिए जाने की बात कही है। इससे भाजपा कहीं कम नहीं है।
भाजपा ने भी मेधावी छात्र-छात्राओं के लिए नि:शुल्क लैपटॉप, स्मार्टफोन वितरित करने जैसे वादे किए हैं जो उत्तराखंड जैसे आर्थिक रूप से सम्मान राज्य के लिए बहुत उपयोगी नहीं है।
कुल मिलाकर जहां सरकार के कामों से जहां आर्थिक क्षरण हुआ है। वहीं दो-दो दलों द्वारा सक्षम अर्थ नीति का अनुपालन न करना भी अर्थ नीति के लिए अच्छा नहीं माना जाएगा, जो इस बात का संकेत है कि उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति आने वाले सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगी।