साधारण लगने वाले बालकृष्ण बने देश के आठवें अमीर

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हरिद्वार। कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो और दिल में सच्ची लगन हो तो रास्ते में कितनी भी मुश्किलें आएं फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मंजिल साफ नजर आती हैं। कुछ ऐसे ही यात्रा रही है आचार्य बालकृष्ण की। आज इस नाम को कहीं भी पहचान की जरूरत नहीं। ये उनकी लगन का ही नतीजा है कि पतंजलि को घर-घर में जगह मिली है। आज बालकृष्ण आचार्य होने के साथ-साथ देश में टॉप 10 उद्योगपतियों में शामिल हो गए हैं। योग गुरु स्वामी रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण से अब देश के बड़े उद्योगपति घबराने लगे हैं। अडानी-अंबानी हों या फिर टाटा-बिड़ला जैसे दिग्गज। जिस तेजी से बालकृष्ण देश के बड़े उद्योगपतियों में अपना नाम दर्ज करवा रहे हैं उसे देख इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि आने वाले दिनों में आचार्य बालकृष्ण देश के सबसे बड़े अमीर बिजनेसमैन बन सकते हैं।

यह हम नहीं, बल्कि हर साल उद्योगपतियों और लोगों की संपत्ति पर सर्वे करने वाली सबसे बड़ी बिजनेस पत्रिका हुरून रिच ने कहा है। आचार्य बालकृष्ण देश के टॉप 10 अमीरों में से आठवें स्थान पर पहुंच गए हैं यानी शून्य से शुरू हुआ बालकृष्ण का सफर आज देश की नामचीन हस्तियों में पहुंच गया है। नेपाल में जन्मे आचार्य बालकृष्ण बहुत सामान्य परिवार से आते हैं। पांच भाई-बहनों में से एक बालकृष्ण का परिवार आज भी सामान्य जीवन ही जी रहा है। नेपाल में पैदा हुए और गुरुकुल में अपनी शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के साथ योग और आयुर्वेद में उपलब्धि हासिल करने के बाद साल 2000 में पूरी तरह से योग गुरु स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण अस्तित्व में आए थे। 2000 के आसपास ही रामदेव ने आचार्य बालकृष्ण के साथ मिलकर पतंजलि योगपीठ और दूसरी संस्थाओं की स्थापना की थी। धीरे-धीरे ये कदम बढ़ते गए और एक पतंजलि आज भारत के साथ-साथ कई देशों में स्थापित हो चुकी है।
लगभग 15 साल पहले रामदेव ने अपने काम की शुरुआत की थी, जिसका नतीजा आज पूरे देश में नजर आ रहा है। सर्वे करने वाली मैग्जीन की मानें तो उनकी प्रॉपर्टी में 173 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है और वह बढ़कर 70,000 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गई है। आप सभी को यह जानकार हैरानी होगी कि पतंजलि का वित्त वर्ष 2017 में कुल टर्नओवर 10,561 करोड़ रुपये था। हुरुन के मुताबिक, पतंजलि के सीईओ बालकृष्ण अब देश के टॉप-10 अमीरों की लिस्ट में शामिल हो गए हैं।
सर्वे में मुकेश अंबानी पहले और दिलीप सांघवी दूसरे नंबर पर हैं। पतंजलि का मुनाफा पिछले तीन साल में रिकॉर्ड तोड़ प्रतिशत से बढ़ा है। सर्वे के मुताबिक, पतंजलि भारत का सबसे तेजी से बढ़ता एफएमसीजी ब्रांड है। फिलहाल पतंजलि का सालाना टर्न ओवर 5000 करोड़ से अधिक है और 2017 में ये दोगुना हो गया है। 2013-14 में पतंजलि का कुल मुनाफा 95.19 करोड़ था।
साल 1995 में आचार्य बालकृष्ण ने अपने गुरु शंकरदेव के आश्रम में दिव्य फार्मेसी की शुरुआत की थी। आज दिव्य फार्मेसी की सहयोगी पतंजलि दुनिया में मशहूर हो चुकी है। देश ही नहीं विदेशों में भी आज पतंजलि के प्रोडक्ट्स की भारी मांग है। आचार्य बालकृष्ण कहते हैं कि जब उन्होंने यह सफर शुरू किया था तब भी और आज जब वो इस मुकाम पर पहुंचे हैं उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। आज भी वह धोती कुर्ता ही पहनते हैं। सामान्य सा जीवन जीते हैं। पतंजलि योगपीठ में खेतों में काम करते हैं और जंगलों में घूमकर जड़ी-बूटी ढूंढ़ने का भी वह स्वयं काम करते हैं। बालकृष्ण कहते हैं कि जब वह आज लोगों के बीच गांव-गांव जाते हैं तो सभी उनसे यही सवाल करते हैं आखिरकार वो वहां क्या कर रहे हैं। उनके साथ आईआईटी-आईआईएम और दूसरे बड़े शिक्षा संस्थानों से पासआउट लोग काम करते हैं, लेकिन वह कहते हैं कि जब तक आदमी स्वयं काम नहीं करता तब तक वह सफल नहीं हो सकता इसलिए वो अपना हर काम खुद अपने हाथों से करते हैं।
बालकृष्ण का कहना है कि वह आज भी खेतों में काम करके गाय का गोबर उठाते हैं। इतना ही नहीं वह सुबह चार बजे उठते हैं जिसके बाद वह नित्य कर्म करने के बाद रात 10 बजे तक पतंजलि योगपीठ से जुड़ा काम भी करते हैं। हालांकि, वो ये कहते हैं कि लोग उनके कपड़ों को देखकर कई बार ये सोच लेते हैं कि आखिरकार धोती कुर्ता पहनने वाला इतनी ऊंचाई तक कैसे पहुंच सकता है जिस पर उनका यही कहना है कि इंसान के कपड़े नहीं बल्कि उसका दिमाग उसे आगे बढ़ाता है।
आज जब वह बड़े-बड़े सेमिनार बड़ी-बड़ी मीटिंग में जाते हैं तो तमाम बिजनेसमैन कोट पेंट टाई और सूट बूट में आते हैं लेकिन वो एकमात्र ऐसे सीईओ हैं जो धोती कुर्ता और एक झोले के साथ बड़ी से बड़ी बिजनेस मीटिंग में पहुंच जाते हैं। आचार्य बालकृष्ण कहते हैं कि वो आज भी इस दिशा में काम कर रहे हैं कि लोगों को अच्छा खाना मिले, लोग स्वस्थ रहें और देशवासियों को किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो। आज जो भी काम कर रहे हैं वो अपने लिए नहीं बल्कि देश के लिए कर रहे हैं। अगर किसी भी संस्थान ने उन्हें देश में टॉप-10 उद्योगपतियों में शामिल किया है तो वह उनका सम्मान नहीं बल्कि देशवासियों का सम्मान है।
जहां पर पतंजलि योगपीठ और आचार्य बालकृष्ण सहित स्वामी रामदेव पहुंचे हैं, वहां तक पहुंचना उनका लक्ष्य नहीं है। बालकृष्ण की मानें तो वो चाहते हैं कि देश में भारतीय संस्कृति का डंका बजे। देश को जो कंपनियां लूटने में लगी हुई हैं, यहां से भागे और देश के सभी लोग खुशहाल रहें। यही उनकी इच्छा है और यह मिशन तब तक जारी रहेगा जब तक भारत में यह सब कुछ संभव नहीं हो जाता। जब उनका मिशन शुरू हुआ था तब से लेकर आज तक वह बड़ी-बड़ी कंपनियों के टारगेट पर भी रहे हैं। लिहाजा यहां तक का सफर बेहद खतरनाक भी रहा है लेकिन इन सब को दरकिनार कर वो अपने काम को अंजाम देते रहे और उसका असर यह हुआ कि आज लोग आयुर्वेद और योग को घर-घर अपना रहे हैं। बालकृष्ण शांति और सौम्यता का रंग सफेद धारण करते हैं। वो सफेद रंग के कुर्ते और धोती में ही नजर आते हैं। लेकिन आचार्य के आसपास बाउंसरों का घेरा रहता है। बालकृष्ण 70 लाख से भी महंगी रेंज रोवर गाड़ी में चलते हैं। कंधे पर थैला और पैरों में साधारण सी चप्पल धारण करने वाले आचार्य बालकृष्ण रामदेव के आयुर्वेद का पूरा कारोबार संभालते हैं।