अमेरिका के भरोसे चल रहा एनिमल बर्थ कंट्रोल

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देहरादून। पशु कल्याण बोर्ड को प्रदेश में अब तक कोई पशुचिकित्सा विशेषज्ञ नहीं मिल पाया है। तभी तो एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) कार्यक्रम अमेरिकी संस्था के भरोसे चल रहा है, लेकिन एबीसी कार्यक्रम से संस्था की हर महीने लाखों की कमाई हो रही है। इस पर बोर्ड का जवाब भी हास्यास्पद है। बोर्ड का कहना है कि हम कर भी क्या सकते हैं, जब हमारे पास कोई एक्सपर्ट ही नहीं है।

दरअसल, हाईकोर्ट के निदेशानुसार पशु कल्याण बोर्ड प्रदेश के शहरों में नगर निकायों की मदद से एबीसी कार्यक्रम चला रहा है। नवंबर 2016 में देहरादून नगर निगम क्षेत्र से कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। बोर्ड ने एबीसी कार्यक्रम के लिए अमेरिकी संस्था से अनुबंध किया है। संस्था को शहर से अवारा कुत्तों को पकड़ने व उनकी नसबंदी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। अनुबंध के अनुसार, प्रत्येक कुत्ते की नसबंदी के लिए 840 रुपये निर्धारित है।
अनुबंध के मुताबिक, हर साल 8400 अवारा कुत्तों की नसबंदी करना अनिवार्य है। इस लिहाज से देखें तो संस्था को सालाना 70 लाख 5600 रुपये की आय हो रही है, जबकि प्रत्येक माह 5 लाख 88 हजार रुपये का भुगतान किया जा रहा है। पशु कल्याण बोर्ड के संयुक्त निदेशक शरद भंडारी का कहना है कि विभाग के पास कोई एक्सपर्ट या स्टाफ नहीं है। उन्हें कुत्तों की नसबंदी का ज्यादा अनुभव नहीं है। इससे कुत्तों की नसबंदी कराने में ज्यादा लागत आ रही है। कार्यदायी संस्था के चिकित्सक वैक्सीनिंग में बहुत छोटा कट लगाते हैं, जबकि विभागीय चिकित्सक अनुभव न होने के कारण 8-10 टांके के लायक बड़ा कट लगाते देते हैं। इससे सिलाई करने में काफी समय लगता है। इतने में कट के भीतर कीटाणु प्रवेश कर जाते हैं। बताया गया है कि संस्था के 100 में दो-तीन केस ही खराब होते हैं, जबकि विभागीय पशु चिकित्सकों से 12-18 केस खराब होते हैं।