गंगा की आवाज को लोगों तक पहुंचा रहीं रिटायर्ड प्रोफेसर अंजली कपिला

0
652

पूज्यनीय मां गंगा को निर्मल एवं स्वच्छ बनाए रखने के लिए लेडी इरविन कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) की सेवानिवृत्त प्रोफेसर अंजली कपिला आगे आई हैं। प्रो. कपिला विश्वविद्यालय की छात्राओं के साथ गोमुख से हरिद्वार तक गंगा की आवाज (बहाव के सुरों) को गीतों के माध्यम से समेटने का प्रयास कर रही हैं। गढ़वाली समेत अन्य भाषाओं में रचित गीतों के माध्यम से वह युवा पीढ़ी को गंगा एवं पर्यावरण संरक्षण की मुहिम से जोड़ने में जुटी हैं।

शनिवार को हिमालय सेवा संघ की ओर से विश्वनाथ चौक के पास रेडक्रॉस भवन में आयोजित प्रेस वार्ता में प्रो. अंजली कपिला ने बताया कि गंगा की आवाज को समेटने की मुहिम में हिमालय सेवा संघ, उत्तराखंड जन जागृति संस्थान व हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान के पदाधिकारी उनके साथ जुड़े हैं। इसके अलावा छात्र-छात्राएं, सामाजिक कार्यकर्ता, संस्कृति प्रेमी और स्थानीय लोगों को भी मुहिम से जोड़ा जा रहा है। बताया कि उनका उद्देश्य गोमुख से लेकर गंगा सागर तक गंगा और पर्यावरण को प्रदूषणमुक्त बनाना है।

प्रो. कपिला ने बताया कि उन्होंने लोक भाषाओं में 150 गीत बनाए हैं। इन गीतों को वह गढ़वाली, देवनागरी और अंग्रेजी में लिखती हैं। इन्हें उन्होंने पुस्तिका ‘मेरी आवाज’ में संग्रहीत किया है, जिसका वर्ष 2001 में उत्तराखंड के प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ने विमोचन किया था। बताया कि गंगा और पर्यावरण संरक्षण के लिए उनका अभियान जारी रहेगा। इस मौके पर हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान के सुरेश भाई, मनोज पांडे, अरण्य रंजन, इमला, गरिमा मेंदीरत्ता, हना, ईमली आदि मौजूद थे।

विदेशी बालाओं की चिंता में गंगा

गंगा में बढ़ता प्रदूषण भले ही भारतीयों की चिंता में पूरी तरह शुमार न हो पाया हो, लेकिन विदेशी छात्राओं इससे खासी चिंतित हैं। दिल्ली के लेडी इरविन कॉलेज से स्नातकोत्तर कर रही अमेरिका की दो छात्राएं ईमली और हना भी प्रो. अंजली कपिला के साथ इस मुहिम से जुड़ी हुई हैं। शनिवार को उत्तरकाशी पहुंची इन अमेरिकी छात्राओं ने बताया कि गंगा की आवाज को कैसे समेटा जाता है और उसे प्रदूषणमुक्त बनाने के लिए क्या करना चाहिए, इस पर वह संस्था के साथ मिलकर अध्ययन कर रही हैं।

उन्हें पहाड़ की हसीन वादियां और यहां की संस्कृति अपनी ओर खींच रही हैं। जिले में तीन सप्ताह के प्रवास के दौरान वह आसपास के गांवों में जाकर ग्रामीणों की समस्याएं जानने का प्रयास करेंगी। यह उनका सौभाग्य है कि उन्हें गंगा की आवाज मुहिम से जुड़ने का मौका मिला।