भाजपा के अवसरवाद को कैसे काटेगी कांग्रेस!

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उत्तराखंड में भाजपा की अवसरवादी चुनावी रणनीति ने कांग्रेस को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और बुजुर्ग कांग्रेस नेता नारायणदत्त तिवारी के 18 जनवरी को भाजपा में शामिल होने के साथ ही आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए दोबारा चुनकर सत्ता पाने की चुनौती और गहरी हो गई है। हालांकि मुख्यमंत्री हरीश रावत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय भाजपा पर दलबदलुओं और वंशवाद की पालकी ढोने वाली पार्टी होने का आरोप लगा चुके हैं। उन्होंने ये आरोप भाजपा की सूची में बागी कांग्रेस विधायकों, पूर्व मंत्रियों और पूर्व मुख्यमंत्री को खुद अथवा उनके बेटे-बेटियों को कमल छाप टिकट दिए जाने पर लगाए। इसके बावजूद कांग्रेस की अपनी दुष्वारियां घटने का नाम नहीं ले रहीं। भाजपा ने राज्य में ऐसे राजनीतिक हालात पैदा कर दिए हैं कि कल तक राज्य के सबसे मजबूत राज नेता के रूप में उभर रहे मुख्यमंत्री हरीश रावत अब अकेले पड़ जाने का जोखिम झेल रहे हैं। भाजपा ही नहीं कांग्रेस के करीब आधा दर्जन पूर्व मंत्रियों सहित दर्जन भर पूर्व विधायक जब हरीश रावत पर निरंकुश कार्यशैली का आरोप लगाएंगे तो जनता के बीच उनके प्रति क्या संदेश जाएगा? जाहिर है कि हरीष रावत को इसकी काट ढूंढने के लिए संयम के साथ ही साथ गहरी सूझबूझ का परिचय भी देना पड़ेगा।

इसके अलावा बागी कांग्रेसियों के वारिसों को टिकट देने पर भाजपा की आलोचना करके कांग्रेस ने अपने हाथ भी बांध लिए हैं। उसे यह घोशणा करनी पड़ी कि पार्टी एक नेता के परिवार से एक ही उम्मीदवार को पंजा छाप पर चुनाव लड़ने का टिकट देगी। इससे पहले तक ये कयास आम था कि मुख्यमंत्री हरीष रावत और उनके साथी मंत्री इंदिरा हृदयेष और यषपाल आर्य सहित अनेक कद्दावर कांग्रेसी परिवारों के एक से अधिक उम्मीदवार पंजा छाप हथियाने के जुगाड़ में हैं। इसके पीछे सोच यह थी कि पांच साल षासन कर चुकी कांग्रेस को चुनाव में जो अलोकप्रियता झेलनी पड़ेगी उसे इन कांग्रेसी खानदानों के वारिसों कीे मौजूदगी किसी हद तक भोथरा कर देगी। इनकी मदद से कांग्रेस राज्य में दोबारा बहुमत का जुगाड़ कर लेने की फिराक में थी, हालांकि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी पहले से ही एक परिवार-एक टिकट की मर्यादा बांधने के हामी थे। इस बात की तस्दीक खुद किषोर उपाध्याय ने की थी। भाजपा द्वारा अपना कांग्रेसीकरण कर लेने के बाद अब कांग्रेस को अपनी रणनीति फूंक-फूंक कर बनानी पड़ेगी।

कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती अब भाजपा के बागी नेताओं को पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ाने के लोभ से बचने की है। हालांकि बाजपुर से अपने मंत्री यशपाल आर्य को कमल छाप टिकट मिल जाने पर कांग्रेस ने भाजपा उपाध्यक्ष सविता टम्टा बाजवा को 17 जनवरी को हाथोंहाथ पार्टी में शामिल करके इस चक्रव्यूह में फंसने की तैयारी दिखा दी है। इससे तो यही लग रहा है कि कांग्रेस भी भाजपा को मुंहतोड़ जवाब देने के फेर में उसके कुछ कद्दावर बागी नेताओं को उन सीटों पर पंजा छाप से चुनाव लड़वा सकती है जहां से उसके वर्तमान बागी विधायक कमल छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसी सीटों में फिलहाल बाजपुर के अलावा रूड़की और कोट़द्वार सीट सबसे अधिक चर्चा में हैं। इनमें से रूड़की में भाजपा ने बागी कांग्रेसी विधायक प्रदीप बत्रा को कमल छाप पर खड़ा किया है जिससे उसके ही पूर्व विधायक सुरेश चंद जैन ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है। इसी तरह कोटद्वार से भाजपा द्वारा बागी कांग्रेसी हरक सिंह रावत को टिकट दिए जाते ही उसके पूर्व विधायक शैलेंद्र रावत ने कांग्रेस से मोलभाव षुरू कर दिया है। इन सीटों के अलावा पुरोला, पौड़ी, केदारनाथ, नरेंद्र नगर, रूद्रप्रयाग, अल्मोड़ा, बागेष्वर, कपकोट, राजपुर रोड सहित लगभग 22 चुनाव क्षेत्रों में भाजपा नेताओं ने पार्टी उम्मीदवारों की सूची देखते ही आनन-फानन पार्टी से बगावत करके चुनाव लड़ने की घोशणा कर दी है। जाहिर है कि राज्य में अधिकतर विधानसभा सीटें औसतन एक लाख से भी कम वोटों वाली होने के कारण जिताउ उम्मीदवारों के मंसूबों पर बागी उम्मीदवार आसानी से पानी फेर सकते हैं। ऐसे में देखना यही है कि कांग्रेस अपने बचे-खुचे सिपहसालारों को इकट्ठा रखते हुए भाजपा में बगावत का फायदा उठाने का आसान रास्ता अपनाएगी अथवा अपने बेदाग पुराने वफादारों और युवा चेहरों को आगे करके अपनी पांच साला उपलब्धियों के बूते भाजपा के अवसरवाद को बेनकाब करने और जनता का दोबारा समर्थन पाने में कामयाब होगी?