ईको टूरिज्म में स्थानीय लोगों को नहीं मिल रहा लाभ

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    देहरादून। उत्तराखंड में ईको टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं और इसके अनुरूप यह सेक्टर बड़ी संख्या में रोजगार के मौके पैदा कर रहा है। हालांकि चिंता की बात यह कि इसका लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल पा रहा। ईको टूरिज्म के क्षेत्र में बाहर के बड़े घराने लाभ कमा रहे हैं और यहां के लोगों को वाहन चालक व कुक आदि जैसी नौकरियां ही नसीब हो रही हैं। यह बात ‘हिमालयन हेरिटेज: कम्युनिटी-लेड इकॉनोमिक रीजेनरेशन’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में उत्तराखंड कैंप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी समीर सिन्हा ने कही।

    बुधवार को भारतीय वन्यजीव संस्थान में इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटैक) के सहयोग से आयोजित सम्मेलन में समीर सिन्हा ने इस बात पर भी बल दिया कि हिमालय की विरासत ईको टूरिज्म का लाभ सबसे पहले यहां के लोगों की आर्थिकी बढ़ाने के रूप में दिया जाना चाहिए। इसके लिए स्थानीय समुदाय को स्वरोजगार से जोड़ा जाना चाहिए। वहीं, इंदिरा गांधी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल के निदेशक प्रो. सरित कुमार चौधरी ने बताया कि उनके संग्रहालय में समूचे हिमालयी क्षेत्रों की पारंपरिक वस्तुओं को संकलित किया गया है। इस तरह के प्रयास हर क्षेत्र में किए जाने चाहिए, ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिल सके और लोगों की आर्थिकी में भी सुधार हो सके। इसी कड़ी में साहित्कार डॉ. शेखर पाठक ने ने कहा कि उत्तराखंड में विभिन्न स्थानों में पूर्व में कॉपर के बर्तनों का प्रयोग किया जाता था। यदि इस तरह के पारंपरिक बर्तनों आदि को फिर से बढ़ावा दिया जाए तो स्थानीय समुदाय को इसके कई लाभ प्राप्त हो सकते हैं। हालांकि इस पर प्रसिद्ध लेखक डॉ. पुष्पेश पंत ने असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यह बीती बात हो चुकी है और अब बात मौजूदा संसाधनों पर की जानी चाहिए। जम्मू कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर तक फैले हिमालयी क्षेत्र में ऐसे तमाम प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, जिनके बल पर वहां के जनसमुदाय की आर्थिकी सुधारी जा सकती है। सम्मेलन में प्रोडक्ट डिजाइन, ईकोस्ट्रीम सिक्किम के निदेशक सोनम ताशी ने बताया कि जो उत्पाद स्थानीय स्तर पर तैयार किए जाते हैं, यदि उनकी बेहतर डिजाइनिंग और मार्केटिंग की जाए तो इसके बेहतर परिणाम सामने होंगे। राष्ट्रीय सम्मेलन में डॉ. लोकेश ओहरी, सुधीर सिंह आदि ने विषय पर विचार रखे।