उत्तराखंड के सभी स्कूलों में लागू हो सकती है एनसीआरटी की किताबें

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उत्तराखंड ने स्कूलों में शैक्षिक अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की किताबों को सभी स्कूलों में चाहे वह एफिलियेटेड हो या ना हो हर जगह अनिवार्य करने की योजना बनाई है। इसके जरिए शिक्षा में एकरूपता लाने और निजी स्कूलों और प्रकाशकों की गठजोड़ को खत्म करने में सरकार को काफी मदद मिलेगी।

अगर यह योजना सफल होती है तो अगले शैक्षणिक सत्र से एनसीईआरटी किताबें कक्षा 3 से 12 के लिए शुरु कर दी जाऐंगी। सरकार ने उत्तराखंड में किताबें प्रकाशित करने की योजना के लिए एनसीईआरटी अधिकारियों से बातचीत करना शुरु कर दिया है।

एनसीईआरटी अधिकारियों के साथ बैठक के बाद, स्कूल शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने इन पुस्तकों को राज्य में प्रकाशित करने और उन डीलरों को आपूर्ति करने के लिए मंजूरी दी जो इसके बाद उन्हें स्कूलों में डिस्ट्रीब्यूट करेंगे।

वर्तमान में, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) और उत्तराखंड बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (यूबीएसई) से संबद्ध स्कूल एनसीईआरटी किताबों का पालन करते हैं। लेकिन इस आदर्श का उपवाद निजी स्कूल हैं जिनमें से अधिकांश भारतीय स्कूल प्रमाणपत्र परीक्षा (सीआईएससीई) के लिए आईसीएसई बोर्ड से संबद्ध रखते हैं।

पांडे ने बताया, ’हमने किताबें प्रकाशित करने के लिए एनसीईआरटी अधिकारियों की सहमति ली है।हमारी यह योजना है कि सभी बोर्ड उसी किताबों (एनसीआरटी) को अपनाए। इससे प्राईवेट प्रकाशकों की जांच करने में मदद मिलेगी और साथ ही उनकी भी जो निजी स्कूलों के छात्रों को महंगी किताबें बेच रहे हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार होगा “।

राज्य सरकार हर साल किताबों को प्रकाशित करने में लगभग 8 करोड़ रुपये खर्च करती है। इस फंड में पाठ्यक्रम, शोध और अन्य विवरणों के पुन: मूल्यांकन की लागत शामिल है। यदि सभी स्कूलों द्वारा एनसीईआरटी पुस्तकों को स्वीकार किया जाता है, तो सरकार प्रकाशन के लिए और राज्य स्तर के अनुसंधान और प्रशिक्षण के लिए इस व्यय को खत्म करने में सक्षम हो जाएगी।

प्राइवेट स्कूल अपने महंगे पाठ्यपुस्तकों को निर्धारित करने के बदले निजी प्रकाशकों को हाई कमीशन पर तैयार करते हैं जो एक सच्ची बात है। सूत्रों का दावा है कि कुछ बड़े निजी स्कूलों इस कारोबार से 5 करोड़ रुपये सालाना कमाते हैं।

पांडे ने अपने स्तर पर एनसीईआरटी पुस्तकों को स्कूलों में शुरु करने के लिए कुछ निजी स्कूलों के साथ बातचीत की है। दून के बाला हिसार अकादमी के प्रिंसिपल माधुलिक संधू ने कहा कि एनसीईआरटी की किताबें विज्ञान और गणित के लिए अच्छी हैं लेकिन अंग्रेजी पुस्तकों को अपग्रेड करने की जरूरत है।उन्होंने कहा कि “मैंने व्यक्तिगत रूप से एनसीईआरटी पुस्तकों में गलतियां पाई हैं। एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम प्रतियोगिताओं के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन लैंग्वेज और विशेष रूप से अंग्रेजी को अपग्रेड करने की आवश्यकता है।”

“सीआईएससीई के संयोजक, देहरादून, पीएस कालरा ने कहा कि यह फैसला “सीआईएससीई की केंद्रीय इकाई का है बाकी हम यहां केवल परीक्षा करवाने के लिए बाध्य हैं। साथ ही, सरकार स्कूलों में ‘बुक बैंक’ को बढ़ावा देगी। इसके सफल क्रियान्वयन के लिए, स्कूल के पाठ्यक्रम को बदलने के लिए निर्धारित अंतर कम से कम पांच साल होगा। यह, स्कूल विभाग के सूत्रों का कहना है कि, गरीब और जरूरतमंद छात्रों की मदद के लिए आएंगे जो पुरानी दान वाली किताबों का उपयोग कर सकते हैं।

पांडेय ने कहा कि “एक वर्ष के बाद, किताबें बर्बाद हो जाती हैं।अगर हर बोर्ड के पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी पुस्तकों का इस्तेमाल होने लगेगा तो एक साल के बाद, हम ज़रूरतमंद छात्रों के लिए पुरानी किताबें रख सकते हैं। इसके साथ, हम पेपर के इस्तेमाल में कमी लाऐंगे और एक स्वस्थ ईकोसिस्टम में योगदान कर पाऐगे।”