विकास और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक बने’

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देहरादून। विकास और पर्यावरण दोनों की दोस्ती जरूरी है। विकास और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक बने यह आज की जरुरत है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मंगलवार को होटल सॉलिटेयर में ‘हिमालय क्षेत्र में आपदा सुरक्षित इंफ्रास्ट्रक्चरः संभावनाएं एवं चुनौतियां’ विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कहा कि एक तरफ विकास की मांग और एक तरफ पर्यावरण संरक्षण की प्रतिबद्धताएं, इनके बीच का अंतर्द्वंद चुनौतीपूर्ण होता है, जो भी विकास कार्य हो वह आपदा प्रबंधन के मानकों के अनुसार हो। लोग सुरक्षित रहें, यह सरकार की चिंता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दो वर्षों में उत्तराखंड में 38 हल्के भूकंप आए हैं। छोटे भूकंपों से एनर्जी रिलीज होती रहती है अतः इनकी चिंता नहीं होती है, परंतु फिर भी पिछले कुछ वर्षों में भूकंप अतिवृष्टि और बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। निश्चित रूप से पर्यावरणीय असंतुलन इन घटनाओं का जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि बचाव उपचार से बेहतर होता है। आपदाओं से बचने के लिए सबसे बेहतर तरीका है कि हम उनकी तैयारी रखें। उन्होंने कहा कि भवन निर्माण शैली, पर्यावरण का ध्यान और लगातार सतर्कता यह तीन बातें हमें सदैव ध्यान में रखनी चाहिए। साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में परंपरागत वास्तु शैली की तारीफ भी की। उत्तरकाशी के भूकंप का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि यमुना घाटी में पुराने निर्माण शैली के भवनों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था।
भारत सरकार के एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड के सदस्य प्रो. हर्ष कुमार गुप्ता ने कहा कि भूकंपों के पूर्वानुमान से कहीं अधिक आवश्यक इनके लिए तैयार होना है। उन्होंने कहा कि भूकंपों का सबसे अधिक नुकसान प्रायः स्कूलों में देखा जाता है अतः यह आवश्यक है कि इन की तैयारी बच्चों से की शुरू की जाए। एनडीएमए के सदस्य कमल किशोर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन भूकंप और अतिवृष्टि की घटनाओं को समग्रता से देखने की जरूरत है। उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के कार्य अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा का विषय है। उन्होंने कहा कि उपलब्ध जानकारी को अपने व्यवहार में ढालना, प्रैक्टिस में लाना एक बड़ी चुनौती है। देश में और साथ-साथ हिमालयी राज्यों में भी बहुत तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर ग्रोथ हो रहा है। जैसे-जैसे आपदा के प्रति हमारी समझ बढ़ रही है वैसे-वैसे भविष्य की अवसंरचना सुविधाओं के प्रति चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। उन्होंने आश्वस्त किया कि एनडीएमए से उत्तराखंड सरकार को जो भी मदद की जरूरत होगी वह प्रदान की जाएगी।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर वीके गौर ने कहा कि हिमालय क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्रों से अलग बिल्डिंग डिजाइंस और मटेरियल का प्रयोग होना चाहिए। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हिमालय की आवश्यकता के अनुरूप अलग स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग और मटेरियल पर विचार नहीं किया जा सकता? उन्होंने कहा कि पर्वतीय पारिस्थितिकी के अनुसार भवनों की डिजाइन होनी चाहिए। हिमालय के राज्य दुनिया की नकल करें, यह जरूरी नहीं है। इससे पूर्व सचिव आपदा प्रबंधन अमित नेगी ने उत्तराखंड सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि राज्य में आपदाओं की दृष्टि से वल्नेरेबिलिटी और रिस्क मैपिंग कर ली गई है। दो दिन चलने वाली इस कार्यशाला में उद्घाटन सत्र और समापन सत्र के अतिरिक्त तीन तकनीकी सत्र भी होंगे, जिनमें देश विदेश से ख्याति प्राप्त विषय विशेषज्ञ, पर्यावरणविद, वास्तु विद अपने विचार रखेंगे। उच्च शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. धन सिंह रावत भी उपस्थित रहे।