उत्तराखंड में विधान सभा चुनाव के दौरान तैनाती के लिए केंद्रीय बलों की टुकड़ियां केंद्र द्वारा महज दो ही दिनों के लिए उपलब्ध कराई जाएंगी। इसलिए उन्हें संवेदनशील इलाकों में मतदान केंद्रों पर तैनात करना भर ही हो पाएगा। केंद्रीय बलों का प्रयोग अशांति की आशंका वाले क्षेत्रों में फ्लैग मार्च आदि कराने के लिए नहीं हो पाएगा। यह कहना है पहाड़ी राज्य उत्तराखंड की मुख्य चुनाव अधिकारी राधा रतूड़ी का जो पिछले दस साल से उत्तराखंड में चुनाव देख रहीं हैं।जाहिर है कि राधा रतूड़ी आजकल राज्य में मतदान और चुनाव प्रचार के सफल और शांतिपूर्ण आयोजन संबंधित जिम्मेदारियों में बेहद व्यस्त हैं। इसके बावजूद उन्होनें न्यूज पोस्ट से बात करने का समय निकाल कर राज्य में मतदान एवं चुनाव की अन्य चुनौतियों आदि के बारे में पूरी जानकारी दी। पेश है उनसे हुई बातचीत का विवरणः-
सवाल-उत्तराखंड में चुनाव प्रचार की निगरानी और मतदान व्यवस्था की क्या चुनौतियां हैं?
जवाब-उत्तराखंड में इस मौसम में चुनाव प्रचार पर निगाह रखना और मतदान का आयोजन हमेशा ही चुनौतीपूर्ण है। इस दौरान राज्य के उपरी हिस्सों में बर्फ और जबरदस्त ठंड पड़ती है, इसलिए पोलिंग पार्टी को कहीं-कहीं तो दो दिन तक बर्फ में पैदल चलकर मतदान केंद्र तक मतदान के आयोजन का सारा सामान लेकर जाना पड़ता है। यह बात अलग है कि सरकार उनके रहने-खाने और आने-जाने का पूरा इंतजाम करती है। उनके लिए बर्फ में चलने को स्नो बूट्स, खच्चर, कुली, अलाव, गर्म भोजन, स्लीपिंग बैग आदि का इंतजाम सरकार करती है ताकि वे कुछ कम परेशान हों। निकलते तो वोटर भी ठंड में ही हैं मतदान करने मगर हर दो किमी पर मतदान केंद्र होने से उन्हें ज्यादा नहीं चलना पड़ता और फिर वे अपने घर लौट ही जाते हैं।
सवाल-चुनाव व्यवस्था में लगे कर्मचारियों को दुर्गम केंद्रों पर हेलीकाॅप्टर से क्यों नहीं ले जाया जाता?
जवाब-मतदान कर्मचारियों को उपरी केंद्रों पर हेलीकाॅप्टर से उतारना व्यावहारिक नहीं है। हालांकि यह बात कहने-सुनने में बहुत अच्छी लगती है, मगर ऐसी जगहों पर तो हेलीपैड बनाना भी संभव नहीं है। उपर से पोलिंग पार्टी के पास सामान भी होता है। इसलिए उन्हें सामान सहित हेलीकाॅप्टर में समाना भी संभव नहीं है। इसलिए पोलिंग पार्टी को सड़क और पैदल मार्ग से ही भेजा जाता है।
सवाल-मतदान का प्रतिशत बढ़ाने और मतदाताओं को जागरूक करने के उपाय?
जवाब-मतदाताओं को जागरूक करने के लिए चुनाव आयोग का स्वीप कार्यक्रम है। इसका मतलब है सिस्टमेटिक वोटर एजूकेशन एंड इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन यानी मतदाताओं का व्यवस्थित शिक्षण एवं निर्वाचन प्रणाली में भागीदारी। इसके तहत हरेक जिले के स्कूलों में पेटिंग, पोस्टर, रंगोली, मेहंदी प्रतियोगिता कराई जाती है। बच्चों को इनमें वोटर जागरूकता संबंधित विषय पर बेहतर काम के लिए पुरस्कार मिलते हैं। इन्हीं प्रतियोगिताओं में राज्य से दो बच्चे दिल्ली में चुनाव आयोग से पुरस्कार के लिए छांटे गए हैं। इसके अलावा गढ़वाली, कुमांउनी भाषाओं में मतदान को प्रोत्साहित करने वाले लोकगीत भी रिकार्ड किए गए हैं। दूध की थैलियों पर, रसोई गैस सिलेंडरों पर भी ऐसे नारे छापे गए हैं।
सवाल-राज्य में कुल कितने कर्मचारी मतदान प्रक्रिया में व्यस्त हैं? कुल कितने मतदान केंद्र होंगे? राज्य के सुरक्षा बलों और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच कार्य विभाजन किस आधार पर किया जाएगा?
जवाब-मतदान प्रक्रिया में राज्य भर में कुल एक लाख सरकारी कर्मचारी जुटे हुए हैं। यह लोग अन्य जिम्मेदारियों के अलावा राज्य के कुल 10,854 मतदान केंद्रों पर भी तैनात रहेंगे। केंद्रीय सुरक्षा बलों की टुकड़ियां तो उत्तर प्रदेष में 11 फरवरी को पहले चरण का मतदान पूरा होने के बाद ही यहां भेजी जाएंगी। तो वे 13 जनवरी से ही उत्तराखंड को उपलब्ध होंगी। उसके बाद मतदान के दौरान उन्हें संवेदनशील क्षेत्रों में लगा दिया जाएगा। देरी की वजह से संवेदनशील इलाकों में केंद्रीय बलों का फ्लैग मार्च आदि आयोजित नहीं किया जा सकता। इसलिए पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी मुख्यतः उत्तराखंड पुलिस और राज्य के सुरक्षा बलों के कंधों पर ही रहेगी। उत्तराखंड में भी अनेक क्षेत्र संवेदनशील हैं और यदि समय रहते केंद्रीय सुरक्षा बल राज्य को दे दिए जाते तो उनका व्यापक इस्तेमाल हो पाता। यहां 15 फरवरी को मतदान है। उससे पहले मतदाताओं को रिझाने के अवैध तरीकों को रोकने के लिए प्रदेष भर में 210 स्थिर निगरानी दल बनाए गए हैं जो नाकाबंदी करके गाड़ियों की तलाशी लेकर अवैध सामान जैसे शराब, हथियार, चुनाव सामग्री आदि जब्त कर रहे हैं। इसी तरह 210 फ्लाइंग स्क्वाड बनाए गए हैं। यह भी संदेहास्पद ठिकानों पर छापे मार कर व राह चलते गाड़ियां रोक कर अवैध शराब, बेहिसाब नकदी आदि बरामद कर रहे हैं।
सवाल-राज्य में चुनाव के दौरान शराब के अवैध लेनदेन पर शिकंजा कसने को क्या चुनाव आयोग ने सख्ती की है?
जवाब-वोटरों को रिझाने के लिए शराब के बड़े पैमाने पर प्रयोग की शिकायत चुनाव आयोग की टीम से ऐसे दलों ने की थी जिनका विधानसभा में कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं है। दो बड़े दलों सहित राज्य में छह राष्ट्रीय दलों का रजिस्ट्रेशन है। इसी तथ्य के मद्देनजर चुनाव आयुक्त नसीम जैदी और उनके साथियों ने प्रशासन से शराब की अवैध आवाजाही, उत्पादन और बांटने जैसी हरकतों पर सख्ती से रोक लगाने को कहा। इस पर मुख्य सचिव ने संयुक्त कार्य दल बनाया है। उसमें आबकारी, वन विभाग और पुलिस के नुमाइंदे शामिल हैं और षराब के अवैध प्रयोग के खिलाफ छापेमारी चल रही है।
सवाल-चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के सबसे अधिक मामलों की प्रकृति क्या है?
जवाब-उत्तराखंड में चुनाव संबंधी सब काम अधिकतर शांतिपूर्वक ही निपट जाते हैं। आचार संहिता उल्लंधन के इक्का-दुक्का मामले ही नमूदार होते है। जैसे किसी ने अपने घर की दीवार किसी खास पार्टी के लिए बिना निर्वाचन प्राधिकरण की मंजूरी लिए पुतवा दी अथवा बिना इजाजत पोस्टर चिपका दिए। अमूमन यहां जनता और राजनीतिक दल चुनाव संबंधी नियमों का पालन करते ही हैं।
सवाल- राज्य में निष्पक्ष चुनाव होने का कोई चान्स या रिस्क है?जनता का नेताओं को लेकर कोई पक्षपात? जवाब-उत्तराखंड में दो प्रमुख दलों के बीच ही अमूमन सत्ता का आदान प्रदान चलता है। राज्य बनने के बाद से हर पांच साल पर जनता शासक बदलती आ रही है। इसलिए जाहिर है कि यहां चुनाव निष्पक्ष होता है। ऐसे में सरकारी मशीनरी पक्षपात कर ही नहीं सकती। जहां कोई दल लगातार बार-बार चुनाव जीतता है, वहां फिर भी ऐसा असर पड़ सकता है। इसका मुख्य कारण ये है कि राज्य की जनता बेहद जागरूक है। जनता झांसे में नहीं आती। यहां महिला मतदाता खूब बढ़ चढ़ कर वोट डालती हैं। उनके मतों का प्रतिशत अधिक होता है।
सवाल-पेडन्यूज पर अंकुश लगाने की क्या व्यवस्था है?
जवाब-पेड न्यूज तो लोकतंत्र के लिए वाकई बहुत गंभीर चुनौती है। इसपर मीडिया को खुद ही मंथन करके अनुशासन अपनाना चाहिए। क्योंकि कानून चुनाव आयोग के पास कोई ऐसा अधिकार नहीं है कि दोशी पाए जाने पर किसी को सजा दे सके। हां हम नोटिस और चेतावनी दे सकते हैं सो देते रहते हैं। इसकी पड़ताल के लिए मीडिया सर्टिफिकेशन माॅनिटरिंग कमेटी यानी मीडिया प्रमाणन निगरानी समिति बनाई गई है जो खबरों पर पैनी निगाह रखती है और प्रचार का घालमेल पकड़े जाते ही संबद्ध मीडिया हाउस को नोटिस थमा सकती है। मीडिया यदि अच्छे नेताओं को बढ़ावा देगा तो देश में स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र रहेगा।