कीड़ा जड़ी पर राष्ट्रीय तस्करों और उन लोगों की दृष्टि है जो राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में प्रश्रय देते हैं। इसका कारण इस कीड़ा जड़ी का बेशकीमती होना तो है ही। इसके नाम नाम पर करोड़ों रुपये मिलते हैं, जो राष्ट्र विरोधी कार्यों में प्रयुक्त हो सकते हैं। पिथौरागढ़ और चमोली जैसे जनपदों में कीड़ा जड़ी पाई जाती है।
अकेले चमोली जनपद के कीड़ा जड़ी के प्रकरणों का जिक्र किया जाए तो लगभग दो दर्जन से अधिक मामले पिछले महीने प्रकाश में आए थे। छोटी मात्रा के साथ-साथ कुछ बड़ी मात्रा भी पकड़ी गई है, जिसमें लाखों की कीड़ा जड़ी तस्करों से प्राप्त की गई।
आंकड़े बताते हैं कि चमोली में नौ जुलाई को थराली पुलिस द्वारा डेढ़ किलो कीड़ा जड़ी के साथ एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया गया। इसकी कीमत अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में 22 लाख रुपये आंकी गई। 13 जुलाई को चमोली के ही जोशीमठ में 13 लाख रुपये के 875 ग्राम कीड़ा जड़ी के साथ दो लोग गिरफ्तार किए गए। 15 जुलाई को चमोली में ही चमोली पुलिस द्वारा 508 ग्राम कीड़ा जड़ी के साथ एक आरोपी को गिरफ्तार किया गया। एक अगस्त को कोतवाली जोशीमठ पुलिस ने 500 ग्राम कीड़ा जड़ी के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग तिराहे पर मान सिंह पुत्र जय सिंह निवासी दारचूला जंगतोली नेपाल के कब्जे से पांच सौ ग्राम अवैध कीड़ा जड़ी बरामद की गई, जिसकी कीमत 7 लाख 30 हजार बताई गई। यह इस तरह की दो दर्जन से अधिक घटनाओं को खुलासा अकेले चमोली पुलिस ने किया।
जानकार बताते हैं कि यार्सागुम्बा यानि कीड़ा जड़ी एक कीड़े नुमा जड़ी होती है जो हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में पाई जाती है। इसे शक्ति का खजाना कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस जड़ी को हिमालयी वियाग्रा कहा जाता है। इसका कारण शक्ति के इस कोष का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होना है, जबकि वियाग्रा हृदय रोगियों के लिए जानलेवा साबित होती है। इसका उपयोग सांस और गुर्दे की बीमारी में होता है, यह बुढ़ापे को भी बढ़ने से रोकता है। साथ ही शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ाता है।
भारत में यह जड़ी बूटी प्रतिबंधित श्रेणी में है इसलिए इसे चोरी छुपे इकट्ठा किया जाता है। नेपाल में भी 2001 तक इस पर प्रतिबंध था पर इसके बाद नेपाल सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया। अब नेपाल सरकार ने इसके उत्पादक क्षेत्रों में यार्सागुम्बा सोसायटी बना दी है जो की लोगो से यार्सागुम्बा को लेकर आगे बेचती है। बीच में नेपाल सरकार प्रति किलोग्राम 20 हजार रुपये रॉयल्टी वसूलती है। उत्तराखंड और नेपाल में मई-जून में यार्सागुम्बा को इकठ्ठा करने की होड़ मच जाती है और गांव के गांव खाली हो जाते हैं। लोग पहाड़ों पर ही टेंट लगाकर रहते है और इसे इकठ्ठा करते हैं।
कीड़ा जड़ी के अवैध व्यापार को लेकर तस्कर माफिया और पुलिस का एक बड़ा नेटवर्क खड़ा हो गया है। लोकल डीलर कीड़ा जड़ी हिमालय के उच्च क्षेत्रों से जुटाकर दिल्ली सप्लाई करते हैं। इंटरनेशनल तस्कर माफि या कीड़ा जड़ी को दुनियाभर में सप्लाई करता है।यह नेटवर्क बेहद संगठित है। अगर नेटवर्क से बाहर का कोई व्यक्ति इस धंधे में घुसता है तो तस्कर पुलिस को खबर कर देते हैं और उसे पकड़वा देते हैं। स्थानीय स्तर पर यार्सागुम्बा की कीमत 9 लाख से 15 लाख रुपये किलो तक पहुंच जाती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत दोगुनी है। बताया जा रहा है कि इस वर्ष कीड़ा जड़ी बहुत कम मिल रही है, इसलिए कीमत भी ज्यादा वसूली जा रही है।
पर्यावरणविद् अनिल जोशी का कहना है कि यह जड़ी-बूटी का अवैध खनन है, जिस तरह हाथी दांत और शेर के पंजों की तस्करी होती है यार्सागुम्बा की तस्करी उसी तरह चल रही है। उन्होंने अरोप लगाया कि कहीं न कहीं इस पूरे अवैध कारोबार में पुलिस-प्रशासन की भी मिलीभगत है।