उत्तराखंड के कुछ गांव ऐसे जहां लोग नही मनाते होली

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दूनाकोट, इस तहसील के लगभग 100 गांवों में होली नहीं मनाई जाती। दूनाकोट घाटी, आटाबीसी और बाराबीसी पट्टी के इन गांवों में लोग सिर्फ आठूं का पर्व मनाते हैं। इन गांवों में यह मिथक प्रचलित है कि जिन गांवों में आठूं मनाई जाती है वहां पर होली नहीं मनाई जाती। होली के त्योहार के समय अन्य गांवों में गीत, नृत्य की धूम रहती है, लेकिन इन गांवों में सन्नाटा पसरा रहता है। चीर बंधन, होली गायन से इन गांवों के लोग काफी दूर रहते हैं, रंग और अबीर से खेलने में भी परहेज करते हैं।

दूनाकोट घाटी में लोग होली के संगीत और साहित्य के बारे में कुछ नहीं जानते। जौरासी से लेकर चर्मा तक और उस तरफ लखतीगांव, सौगांव तक के गांवों में होली को लेकर लोगों में कोई उत्साह, उमंग नहीं दिखती। यहां के लोगों का कहना है कि आठूं का पर्व धूमधाम से मनाते हैं। आठूं इन गांवों में एक माह तक भी मनाई जाती है।

होली के बदले मनाते है आंठू का पर्व

हाटथर्प, धौलेत और सिटोली गांव में जितने उल्लास से होली मनाई जाती है उतने ही उल्लास से आठूं का पर्व भी मनाया जाता है। यहां के लोगों का कहना है कि यह सिर्फ मिथक बनाया गया है।

किसी पर्व को मनाने और किसी को न मनाने के पीछे दिए जाने वाले तर्क समझ में नहीं आते। लोगों को हर पर्व और त्योहार का समान रूप से सम्मान करना चाहिए। हाटथर्प गांव में इन दिनों होली की धूम मची है और सितंबर में आठूं की मस्ती में लोग डूब जाएंगे।