रेलवे में प्रतिदिन हज़ारो सफर करने वाले यात्रियों की जान अब महिलाओ के हाथ में होगी, कुमाऊ से दिल्ली जाने वाली शताब्दी ऐसी पहली ट्रैन है जिसमें संचालक के तौर पर बेटियां बतौर लोको पायलट काम कर रही है । रेलवे अधिकारी बेटियो की इस उपलब्धि से गदगद तो है है साथ ही लोको पायलट बनी बेटियां भी खुद को गौरवांन्वित महसूस कर रही है।
देश के इतिहास में पहली बार 1882 में कुमांऊ में ट्रेन गयी थी । तब से लेकर आज तक रेलवे में कई बदलाव आये लेकिन करीब 130 साल बाद जो बदलाव देखने को मिला वो काफी गौरवांन्वित करने वाला है।काठगोदाम से दिल्ली तक चलने वाली शताब्दी ट्रेन में 5 बेटियां बतौर लोको पायलट काम कर रही हैं।उत्तर रेलवे ने पहली बार यह जिम्मेदारी बेटियों के कन्धे पर डाली है,जिसमें रेनू श्रीवास, सुनीता कुमारी, अंजू सिंह, रीना और आकांशा शामिल है। लोको पायलट रेनू श्रीवास बताती हैं की 10 साल की उम्र में उनके पापा का निधन हो गया लेकिन उनका सपना था की रेनू रेलवे में पायलट बनें और उनका सपना पूरा करे। जिसके बाद रेनू ने कड़े संघर्ष के बावजूद यह मुकाम हासिल किया, उनके मुताबिक उनको एक बहुत महत्व्पूर्ण जिम्मा दिया गया है जिसे वे अपने सहयोगियों के माध्यम से पूरा कर रही है, रेनू मानती है की बेटियां हर क्षेत्र में अपनी दमदार उपस्थित दर्ज करा रही है ।
काठगोदाम के स्टेशन प्रबन्धक चयन रॉय के मुताबिक ट्रेन की संचालन का जिम्मा बेटियों को दिया जाना बेहद गौरव की बात है।उनके मुताविक शताब्दी कुमांऊ आने वाली पहली ऐसी वीआईपी ट्रेन है जिसके संचालन का जिम्मा बेटियों के पास है ।पुरुष प्रधान समाज में आज भी महिलाओं को वो सम्मान नहीं दिया जाता रहा है जिस सम्मान की वो हकदार हैं,लेकिन फिर भी इसके बीच बेटियां हर उस क्षेत्र में दमदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं जो सामान्य तौर पर पुरुष प्रधान काम माने जाते थे, इसलिए रेलवे ने भी बेटियों की हिम्मत ओर दक्षता को सलाम किया है।