(देहरादून) किसी भी जांच का असर तब नजर आता है जब उसके परिणाम तुरंत मिल जाएं। खाद्य सुरक्षा का कामकाज इसके ठीक उलट चलता है। रिकॉर्ड दुरुस्त करने के लिए त्योहारी सीजन में दूध और अन्य खाद्य पदार्थों की सैंपलिंग तो तेज कर ली जाती है, मगर उसके परिणाम को लेकर सरकारी तंत्र सुस्त पड़ जाता है। जिन खाद्य पदार्थों की सैंपलिंग के परिणाम 14 दिन के भीतर आने जाने चाहिए, महीनों तक भी पता नहीं चल पाता कि वे खाने लायक भी थे या नहीं। अब दिवाली के आसपास लिए गए सैंपलों का ही उदाहरण लीजिए। इसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई है।
त्योहारी सीजन में दूध एवं अन्य खाद्य पदार्थों में मिलावट कोई नई बात नहीं है। हैरत देखिए कि जांच के लिए जब अपनी लैब नहीं थी, तब भी रिपोर्ट आने में वक्त लगता था और अब रुद्रपुर में अपनी लैब है, तब भी परिणाम नहीं मिल पाते। दिवाली नजदीक आते ही खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण सैंपलिंग के मोर्चे पर चुस्त नजर आया। विभागीय टीम ने बाजार से धड़ाधड़ खाद्य पदार्थों के सैंपल लिए। विभागीय टीम ने शहर व आसपास छापेमारी कर तकरीबन 70 से अधिक सैंपल लिए। जहां सैंपल लिए गए उनमें छोटे-छोटे व्यापारी ही नहीं, बल्कि कई नामचीन प्रतिष्ठान भी शामिल हैं। बहरहाल सैंपलिंग तो हो गई, लेकिन इन खाद्य पदार्थों की रिपोर्ट कब आएगी, इसका अब तक अता-पता नहीं है। अधिकारी बताते हैं कि सभी सैंपल रुद्रपुर लैब को भेज दिए गए हैं। नियमत: इनकी रिपोर्ट एक पखवाड़े के भीतर आ जानी चाहिए, लेकिन एक माह बाद भी रिपोर्ट का अता पता नहीं है। रिपोर्ट तब आती है जब मिलावट का ‘जहर’ आम आदमी के हलक से नीचे उतर चुका होता है।
इस बारे में डॉ. बृजमोहन शर्मा, सचिव स्पेक्स कहते हैं कि “खाद्य पदार्थों के परीक्षण की प्रक्रिया बहुत जटिल नहीं है। न इसमें ज्यादा वक्त लगता है। रिपोर्ट त्योहार बीत जाने के कई दिन बाद आती है। जिस कारण आम आदमी को इसका फायदा नहीं मिलता।” वहीं जिला अभिहीत अधिकारी जीसी कंडवाल का कहना हा कि “दिवाली पर लिए गए सैंपल परीक्षण के लिए सैंपल लैब को भेजे गए थे। हाल में लैब से पत्र प्राप्त हुआ है। जिसमें काम की अधिकता के कारण और समय मांगा गया है। रिपोर्ट आने पर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।”