पूर्व सीएम हरीश रावत ने मनाई ”हरेला पार्टी”

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उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला अब राजनीति की उबड़खाबड़ राह पर अपनी मंजिल की तलाश में है। सत्ता से बाहर हो चुके हरीश रावत ने आज देहरादून में हरेला पर्व मनाया तो सत्ता में बैठी बीजेपी ने अभी इस मसले पर किसी खास कार्यक्रम का ऐलान नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि कहीं हरेला का दम राजनीतिक लड़ाई में ना निकल जाए।

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प्रकृति और इंसान के बीच के संबंधों की हरी भरी दास्तान हरेला को बुजुर्गों ने संभाल कर रखा लेकिन बदलते वक्त के साथ लोग भूलने लगे। हरीश रावत सरकार ने हरेला की बिसरी हुई कहानी को नए सिरे से सुनाया है। इसी का नतीजा रहा कि पूरे राज्य में हरेला को लेकर नए सिरे से जागरुकता आई। अब हरीश रावत सत्ता में नहीं हैं लेकिन अपने घर में हरेला मना रहें हैं। इसके साथ ही हरीश रावत ने राज्य के मुख्यमंत्री को अपने अंदाज में नसीहत भी दे डाली है।

हरेला ना सिर्फ उत्तराखंड की आत्मा से जुड़े पर्वों में से एक है बल्कि प्रकृति के प्रति अपनी आस्था व्यक्त करने का मौका भी है। हरीश रावत ने हरेला और घी संक्राद जैसी परंपराओं को मुख्य धारा में लाकर एक बेहतर संदेश दिया था। अब जिम्मेदारी त्रिवेंद्र सरकार पर है। बेहतर हो कि राजनीतिक वर्जनाओं को तोड़कर ऐसी परंपराओं के लिए सभी साथ आएं।पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हरेला और घी संग्रांद प्रकृति, संस्कृति और उत्पादकता का पर्व है। इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए हमें सामूहिक प्रयास करने होंगे।

कार्यक्रम में लोगों ने विभिन्न लोक व्यंजनों जैसे कि मंडुए का रोटी, झंगोरे की खीर, उड़द की दाल की पकौड़ी, अरसे, आदि का खूब आनंद लिया।