इमरजेन्सी के आंदोलनकारियों की हो रही उपेक्षा

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इमरजेन्सी काल के आंदोलनकारियों के साथ भेदभाव किये जाने और दोहरे मापदण्ड से आंदोलनकारी आज आहत है, एक ओर इमरजेन्सी में मीसा के तहत जेल में बेद हुए आंदोलनकारियों को पेंशन सुविधा देने की घोषणा की गयी तो दुसरी ओर डीआईआर के तहत उसी दौरान जेल में बंद हुए आंदोलकारियों को पेंशन सुविधा से वंचित किया जा रहा है, सरकार की इस दोहरी नीति से जहां आंदोलनकारी नाखुश है वहीं अब सरकार भी मान रही है कि गलती हुई है और सुधार किया जाएगा।
25 जून 1975 को देश में इमरजेन्सी काल लगाया गया था और देश के कोने में कई आंदोलनकारियों और क्रांतिकारियों को इस दौरान जेल भेजा गया था। इसी दौरान उत्तराखण्ड से भी कई लोगों को अलग अलग जेलों में भेजा गया था,  किसी को नैनीताल जेल तो किसी को बरेली जेल भेजा गया, लेकिन किसी को मीसा के तहत जेल भेजा गया तो किसी को डीआईआर के तहत, सभी को एमरजेन्सी काल में भाजपा या संघ के होने के नाते या फिर सरकार के खिलाफ षडयंत्र रचने या आंदोलन करने के जुर्म में जेल भेजा गया था, जिन्होने जेल मे भी कई यातनाए सही।
लम्बे समय बात उनकी याद तो भाजपा सरकार को आयी और भेजापा शासित राज्यों में उन सभी को सम्मान के तौर पर पेंशन देने की घोषणा भी की गयी, जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तराखण्ड प्रमुख है, लेकिन अन्य राज्यों में मीसा और डीआईआर को एक समान रखा गया है। जबकि उत्तराखण्ड में जारी शासनादेश में सिर्फ मीसा का उल्लेख किया गया है, जिससे डीआईआर के तहत रहे आंदोलनकारी इस पेशन सुविधा से वंचित हो गये।
वहीं सरकार से चूक हुई है और उसे सुधारने के प्रयास किये जा रहे हैं ये बात भी सामने आ रही है, खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का कहना है कि मीसा और डीआईआर एक ही है मगर सरकार से जल्दबाजी में शासनादेश में सिर्फ मीसा का उल्लेख होने से डीआईआर के तहत जेल गये आंदोलनकारियों को निराश होने की जरुरत नहीं है, बल्कि जल्द ही शासनादेश में बदलाव कर दिया जाएगा और सभी को समान रुप से सम्मान दिया जाएगा।

इमरजेन्सी काल के दौरान जिन्होने सरकार की प्रताडना सही और जेल में यातनाए सही उनमें भेद डालकर सरकार ने अपने लिए ही खाई खोद ली है.. अब जहां प्रदेश भर में मीसा के आंदोलनकारी गिने चुने ही रह गये है एसे में डीआईआर के तहत रहे आंदोलनकारियों में इस बात से आक्रोश है कि उनके साथ सरकार द्वारा आखिर ये भेदभाव क्यो किया गया, वहीं सरकार की गलती का खामियाजा अब इन आंदोलनकारियों को बुगतना पड रहा है, देखना होगा कि आखिर कबतक सरकार नया शासनादेश जारी करती है और कब डीआईआर आंदोलनकारियों को समान अधिकार मिल पाता है।