बूढ़े पेड़ो की जंगल छोड़ने की तैयारी

0
753
उत्तराखण्ड के मध्य हिमालय क्षेत्र समेत देश के सभी वनों में सांस न ले पाने वाले बूढ़े और मृत पेड़ो को हटाया जाएगा। पुराने हो चुके सूखे और खोखले पेड़ ऑक्सीजन तो देते नहीं हैं, लेकिन इनके अंदर चल रही बैक्टीरियल क्रिया के कारण सड़न से कार्बन बढ़ रही है। भारतीय वन सर्वेक्षण (एफआरआई) ने देश में पहली बार ऐसे पेड़ो को हटाने के लिए आकलन शुरू कर दिया है। उत्तराखण्ड, यूपी, हरयाणा, पंजाब में आकलन के पहले चरण का कार्य पूरा हो गया है।
विज्ञानिको का कहना हैं की बूढ़े और बीमार पेड़ो में कार्बन स्टार्क तो रहता है, लेकिन इनकी सांस लेने की क्रियाबन्द होने का कारण ये ऑक्सिजन नहीं छोड़ते और न ही वातावरण का कार्बन सोखते हैं। इससे इनकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। जो पेड़ खोखले हो गए है, उनके अंदर बैक्टेरिया रहते हैं। वे जब पेड़ो की टहनियों व जड़ो को खाकर नष्ट करते हैं तो उससे कार्बन उत्सर्जन होता है। कुछ कार्बन वातावरण में आता है और कुछ मिटटी में जाकर मिलती है। खासतौर पर जड़ो के नष्ट होने के बाद यह कार्बन अंदर मिट्टी में रहता है।
कार्बन उत्सर्जन से बढ़ रहे ग्लोबल वार्मिंग के खतरे के मद्देनजर भारतीय वन सर्वेक्षण ने जंगलो में पुराने पेड़ो को हटाने के लिए यह आकलन शुरू किया है। पुराने पेड़ो को हटाने के बाद नई पौध की संख्या हिमालय क्षेत्र में अधिक है। एफआरआई के वैज्ञानिक का कहना है की पेड़ो को काटने के प्रतिबंध होने से भी लोग लकड़ी के लिए पुराने पेड़ो को नहीं काटते। इससे भी पुराने पेड़ो की संख्या बढ़ गई है। देश भर के जंगलों का आकलन होने के बाद एफआरआई अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को देगा।