नैनी झील को ”इको-सेंसिटीव ज़ोन” बनाने की कवायद तेज

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नैनीताल झील के पानी के स्तर की कमी के मद्देनजर, विशेषज्ञों ने राज्य सरकार से नैनीताल को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित करने और जल निकाय के आसपास किसी भी निर्माण कार्य पर रोक लगाने के लिए कहा है।

यह प्रस्ताव राज्य सरकार के अधिकारियों और विशेषज्ञों के बीच एक हालिया बैठक में किए गए थे। झील के पानी का स्तर इस साल सात फुट नीचे चला गया है,जो एक मुख्य चिंता का विषय है।

3 जून को स्थानीय निवासियों के हजारों की संख्या में झील की हालत को देखते हुए मॉल रोड पर गांधी प्रतिमा से पंत मूर्ति पर एक नंगे पांव चल कर इसकी हालत को उजागर किया था।

यूनाईटेड नेशनल डेवलपमेंट प्रोग्राम के नेशनल एडिशनल सेक्रेटरी राकेश कुमार ने कहा कि ”वे विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत सुझावों को देखेंगे”। उन्होंने यह भी बताया कि ”यूएनडीपी अब झील के कायाकल्प में खुद को शामिल करेगा। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि बारिश का पानी बिना किसा रुकावट के झील में जाना चाहिए”।

इतिहासकार अजय रावत ने कहा कि ”नैनीताल झील से संबंधित समस्याओं के बढ़ने का मुख्य कारण है जगह-जगह अवैध निमार्ण” । उन्होंने कहा,  कि “ग्रीन बेल्ट पर अत्यधिक निर्माण किया गया है और अगर ग्रुप हाउसिंग पर अंकुश लगाया,तो 30% तक समस्या का हल हो जाएगा”। “हमने नैनीताल को एक पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के रूप में घोषित करने के लिए वन विभाग को आग्रह किया था, लेकिन इसका ज्यादा फर्क नहीं पड़ा।”

जल निगम के महाप्रबंधक एच.के. पांडे ने कहा कि औसत बर्फबारी और वर्षा का स्तर नीचे आ गया है जो झील की वर्तमान स्थिति के लिए प्राकृतिक कारणों में से एक है।

इस बैठक का संचालन, 9 जून को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नैनीताल दौरे के दौरान झील के संरक्षण के लिए 3 करोड़ रुपये की राशि देने के बाद किया गया था।

अपने प्रशासन के लिए झील की सर्वोच्च प्राथमिकता बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि यह जल निकाय न केवल उत्तराखंड के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण इकाई है, बल्कि विश्व के लिए भी है। उन्होंने लोक निर्माण विभाग से झील की जिम्मेदारी को सिंचाई विभाग को हस्तांतरण करने की भी घोषणा की।