तुर्की का नाम सुनते ही कानों में कुछ घंटी सी नहीं बजीं, जब हमें यह पता लगा कि हमारा अगला पड़ाव इस्तानबुल, तुर्की है और कुछ साल के लिए ये हमारा घरौंदा बनने वाला हैं। साउथ अफ्रीका में रहने के बाद इस्तानबुल थोड़ा फीका लगा, और यहां मैं प्राकृतिक सुंदरता के बारे में बात कर रही हूँ। खैर, इस्तानबुल में आते एक बात तो त़य थी कि दिल्ली की याद इतनी नहीं आएगी क्योंकि यहां का ट्रैफिक दिल्ली के ट्रैफिक के टक्कर का है। सड़कें हमेशा खचां-खचां भरी रहती हैं और ट्रैफिक सेन्स भी कुछ भारतवासियों के जैसा ही है।
दिन बीतते गये और हमें इस्तानबुल भाने लगा। धीरे-धीरे यहां पर रह रहे भारतीयों के बारे में पता लगा। इस्तानबुल में तकरीबन ढ़ाई सौ हिन्दुस्तानी परिवार रहते हैं। ये आकड़े हमें इंडियन एंबेसी से प्राप्त हुए। यहां पर कई भारतीय परिवार बस गए हैं। कुछ 30 साल से तो कुछ 10 साल से यहीं बसे हुए हैं। मिस्टर फ्रांसीस और उनका परिवार पिछले 30 साल से इस्तानबुल में रह रहें हैं। मुंबई में इनका बचपन और जवानी बीती और कुछ काम के सिलसिले में ये भारत से बाहर निकले और कई देशों में घुमने के बाद इस्तानबुल में परिवार समेत बस गए हैं, इसी तरह मिस्टर वेंकेट उनकी पत्नी और उनके दो बच्चे 11 साल से इस्तानबुल में रह रहें हैं। मिस्टर वेंकेट इस्तानबुल के एक इंटरनेशनल स्कूल में कंम्प्यूटर टीचर हैं। उनकी बेटी ग्रेजुएशन खत्म करके अब एक अच्छी कंम्पनी में नौकरी कर रही है । मिस्टर वेंकेट का एक बेटा भी है जो इस्तानबुल में ही इंजनियरिंग पढ़ रहा हैं उनके दोनों बच्चे तुर्कीश भाषा अच्छी तरह से बोलते हैं और इस्तानबुल को ही अपना घर मानते हैं। रजनी को शुरुआत में इस्तानबुल में बिना मिर्च के खानें में थोड़ी परेशानी जरुर हुई लेकिन धीरे-धीरे उन्हें तुर्कीश खाना पसन्द आने लगा।
इसी तरह दिया और अनिरुद्ध भी इस्तानबुल में 8 साल से रह रहे हैं और उनके मुताबिक 8 सालों में इस्तानबुल में काफी कुछ बदल गया है। दिया को इस्तानबुल के बारे में कुछ खास पता नहीं था शुरुआत में उन्हें अपने परिवार की याद आती थी लेकिन समय के साथ उन्हें यहां अच्छा लगने लगा और उनका मानना है कि इस्तानबुल का इंन्फ्रास्ट्रक्चर काफी विकसित हुआ है, मेट्रों बस,माॅल्स अभी कुछ आठ साल में ही बने हैं। लेकिन पुणे की कंचन जो कि ज़ुंबा और योगा टीचर हैं और इस्तानबुल में दो साल से हैं उनका मानना है कि इस शहर को घर बनाया जा सकता है। उन्हें इस्तानबुल भा गया है और उनका मानना है कि यहां के लोग भारतीयों को पसंद करतें हैं। उन्हें ऐसा तब लगा जब उन्हें एक तुर्कीश परिवार से शादी का रिश्ता आया, लेकिन जब तुर्कीश परिवार को पता चला कि कंचन शादी-शुदा है तो उन्हें काफी निराशा हुई। कंचन इस्तानबुल में तुर्कीश लोगों को योगा सिखाती हैं और इस्तानबुल में काफी खुश हैं। कंचन की तरह ही मुंबई की शिवा हाथों में मेंहदीं लगाने में माहिर हैं उनकी इस्तानबुल में मेंहदीं डिजाइन्स की बहुत मांग है। शिवा के पति तुर्कीश हैं।
इस्तानबुल दो भागो में बंटा हुआ है एक है एशियन साईड और एक है यूरोपियन साईड। दोनो तरफ ही भारतीय बसे हुए हैं। हर महींनें भारतीय महिलाएं एक दूसरे से मिलती जरुर हैं। इसी बहाने भारतीय खाने पीने का स्वाद भी मिलता है और भारतीयों को मिलने का मौका भी।
हर साल इस्तानबुल में दिवाली मेला जरुर लगता है। इस मेले में भारतीय खाना और भारतीय कपड़ों के स्टाॅल लगते हैं। स्टेज पर्फामेंस होते हैं जिसमें बालीवुड नंबर पर नाच-गाना होता है। ये तरीका है एक दूसरे भारतियों को जानने और मिलने का। इसी तरह हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त मनाया जाता है। इस्तानबुल में बालीवुड भी पीछे नही है। तुर्कीश जनता बाॅलीवुड गानों की और बाॅलीवुड स्टाईल डांस की बहुत दिवानी हैं। इस डांस की इतनी मांग हैं कि भारत के राजेश रापका और उनकी तुर्कीश बीवी दोनों मिलकर बालीवुड डांस इस्तानबुल में सिखातें हैं, साथ ही मुंबई की कृतिका भी भरतनाट्यम सिखाती हैं। कृतिका पिछले दो साल से इस्तानबुल में हैं और उन्हें इस्तानबुल बहुत पसंद है।
इसी तरह इस्तानबुल में रह रहे भारतीयो का आना जाना लगा रहता है।अपने देश से हजारों किलोमीटर दूर रहने के बाद भी इस्तानबुल में रह रहे भारतीयों को घर जैसा लगने लगा है ये शहर।