धर्मनगरी में कई जगह धर्मशालाओं, आश्रमों व धार्मिक ट्रस्ट की संपत्तियों को भूमाफियाओं की सांठ-गांठ से खुर्द बुर्द करके कंकरीट की बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। जिसके चलते धार्मिक संपत्तियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। वर्तमान में भूमाफियाओं की गिद्ध दृष्टि कई ऐसी धार्मिक संपत्तियों पर लगी हुई है।
इन दिनों कनखल में एक ट्रस्ट की संपत्ति को ट्रस्ट संचालक व भूमाफिया की मिलीभगत से खुर्द-बुर्द किए जाने को लेकर खासी चर्चा का विषय बनी हुई है। चर्चा है कि मंदिर परिसर की भूमि को मुख्य ट्रस्टी ने स्थानीय व चर्चित भूमाफियाओं के साथ मिलकर तकरीबन आधा दर्जन रजिस्ट्री विगत माह में करा दी है। रजिस्ट्री होते ही भूमाफियाओं ने रातों रात धर्मशाला का सड़क की ओर का हिस्सा जेसीबी की मदद से गिरा दिया हैं और अवैध प्लाटिंग का कार्य शुरू कर दिया हैं। ट्रस्ट की संपत्ति पर भूमाफियाओं द्वारा की जा रही प्लाटिंग पर हरिद्वार विकास प्राधिकारण (हविप्रा) अधिकारीें भी मूक दर्शक बने बैठे हैं।
अनियोजित विकास को रोकने के लिए बनाया गया संबंधित विभाग भ्रष्टाचारियों व दलालों का अड्डा बन कर रह गया हैं। सूत्रों के अनुसार, न्यायालय हरिद्वार से संपत्ति विक्रेता ने इस संपत्ति को बेचे जाने के लिए अनुमति मांगे जाने को लेकर 92 के तहत याचिका दायर कि थी, मगर वाद के दौरान वादी के न्यायालय में उपस्थित नहीं होने के कारण अपर जिला जज द्वारा वाद निरस्त कर दिया गया था।
कानून विशेषज्ञों की मानें तो उनका कहना है कि एक राज्य में संपत्ति बिक्री का वाद निरस्त होने के बाद जिस राज्य में ट्रस्ट पंजीकृत हैं उसे दूसरे राज्य से ट्रस्ट संपत्ति बिक्री की अनुमति लाकर संपत्ति बेचा जाना गैरकानूनी हैं। इस तरह के मामलों वाद एक ही न्यायालय में डाला जाता सकता हैं।