आध्यात्मिक क्षेत्र के नोबल पुरस्कार माने जाने वाले टेंपल्टन पुरस्कार जांच समिति के प्रथम भारतीय जज होने का गौरव देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या को मिला है। उनके चयन पर अखिल विश्व गायत्री परिवार व देश-विदेश के सामाजिक व आध्यात्मिक संस्थानों ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इसे वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की एक बड़ी उपलब्धि बताया।
हाल में डॉ. चिन्मय को इस आशय का एक पत्र टेंपल्टन फाउण्डेशन के अध्यक्ष हिथर टेंपल्टन डिल की ओर से मिला। उन्होंने पत्र में अनुरोध किया कि वे इस पद को संभालने के साथ इस क्षेत्र में कार्य कर रही संस्थाओं एवं लोगों का मार्गदर्शन करें। पत्र में बताया गया है कि 1972 में स्थापित यह फांउडेशन प्रत्येक वर्ष विभिन्न देशों के चयनित उन व्यक्ति को यह पुरस्कार देता है, जिन्होंने व्यवहारिक कार्यों के माध्यम से, जीवन के आध्यात्मिक आयाम की पुष्टि करने के लिए असाधारण योगदान दिया हो।
उल्लेखनीय है कि भारत के तीन व्यक्तियों को अब तक यह पुरस्कार मिला है, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन, भारतरत्न मदर टेरेसा और प्रख्यात दार्शनिक पांडुरंग शास्त्री आठवले। डॉ. चिन्मय पण्ड्या का कार्यकाल अक्टूबर 2017 से आगामी तीन वर्ष के लिए होगा। वे इस पद पर रहते हुए देश-विदेश में आध्यात्मिक व सामाजिक क्षेत्रों में कार्य कर रहे जांच समिति द्वारा नामित व्यक्तियों में से किसी एक का चयन करेंगे। अपने चयन पर डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि यह सम्मान केवल मेरा ही नहीं है, वरन् उन सभी भारतीयों का है, जो इस क्षेत्र से जुड़े हैं। डॉ. चिन्मय ने अपने चयन को गुरुदेव एवं माताजी की विशेष अनुकंपा मानते हुए कहा कि जज के रूप में नामित होना गायत्री परिवार व देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के लिए ही नहीं, वरन् पूरे देश के लिए गौरव की बात है।