भारत के आखिरी गांव ‘माणा’ में आज भी दिखती है संस्कृति

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उत्तराखंड में भारत-तिब्बत चीन सीमा से लगे हिन्दुस्तान का अंतिम गांव माणा ने सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस्कृति को आज भी कायम रखा है। समुद्र तल से 3200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माणा गांव सम्यक प्रयाग कहे जाने वाले अलकनन्दा व सरस्वती नदी के बाईं ओर बसा हुआ है। भोटिया जनजाति के लोगों का गांव है, जिसकी आबादी सोलह सौ के करीब है। यहां भारत-तिब्बत सीमा करीब 24 की मी दूर है। इसके अलावा माणा गांव में व्यास गुफा नाम की एक पौराणिक गुफा है। दंत कथाओ के अनुसार महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना यहीं की थी। मशहूर बद्रीनाथ धाम से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित माणा गांव देश का इस छोर पर आखिरी गांव हैं। इसके चलते ये पर्यटकों के लिये भी एक विकल्प बन जाता है।

इस गावं को आज भी सांस्कृतिक धरोहर व स्थानीय काश्तकारी के लिए जाना जाता है। गांव के लोग जहां अपने पारम्परिक परिधानों में सजे रहते है, वहीं आने वाली पीढ़ियों को भी इससे वाकिफ करवाते हैं, ताकि संस्कृति को जिन्दा रख सकें। गांव के लोगों का बद्रीनाथ धाम से भी गहरा नाता है। छह महीने शीतकाल के दौरान यहां के लोग भी गांव से निचले इलाकों में रहने चले जाते हैं। धाम के कपाट खुलने की तारईखों के साथ ही ये लोग भी गर्मियों के लिये वापस आ जाते हैं। पर्यटकों को लुभाने के लिये गांव की शुरुआत पर ही एक चाय की दुकान भी है जिसे “भारत की आखिरी चाय की दुकान” के तौर पर जाना जाता है। यहां आने वालों के लिये भी ये दुकान एक आकर्षण का केंद्र रहती है।