नई दिल्ली। नीरव मोदी कांड की जांच में मामले की परत दर परत खुलती जा रही है। इस बीच अपने को ह्विसलब्लोअर कहने वाले इलाहाबाद बैंक के पूर्व निदेशक दिनेश दुबे ने मीडिया के सामने आकर कहा है कि यूपीए सरकार चाहती तो इस घोटाले को रोक सकती थी। इस बीच इस मामले की जांच में शामिल एजेंसी की सूत्रों ने बताया कि दिनेश दुबे की ओर से रखे गए तथ्यों की जांच जरूर की जाएगी। दुबे ने यह भी बताया कि गीतांजलि जेम्स को लेकर उन्होंने साल 2013 में केंद्र सरकार और आरबीआई को पत्र लिखकर अगाह किया था कि पहले समूह 1500 करोड़ रुपये का लोन चुकाए लेकिन इसके बाद उनके ऊपर दबाव पड़ने लगा। इस दबाव के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया। फिर मोदी का यह अवैध कारोबार जारी ही रहा।
हालांकि दुबे की इस जानकारी को कई लोग विरोधभासी कह रहे हैं। उनका कहना है कि अगर दुबे पर दबाव डाला गया तो इस्तीफा देकर उन्होंने उसी वक्त इस मामले की जानकारी लोगों को क्यों नहीं दी। दुबे ने कल कुछ निजी समाचार चैनलों पर उनकी ओर से सौंपे गए इस्तीफा के कागजात को भी दिखाया था। साथ ही इस मामले में दुबे की ओर से इंटरनेट पर किए गए पत्राचार की भी चर्चा हो रही है। जानकारी के मुताबिक दुबे ने रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर को भी नीरव मोदी के मामा मेहुल चोक्सी को 50 करोड़ की राशि कर्ज के तौर पर दिया गया जबकि इससे पहले चोक्सी पर 1500 करोड़ रुपए का लोन चढ़ा हुआ था।