टी 20 को टेस्ट मैच की तरह खेलने के चलते कांग्रेस खो रही है एडवान्टेज

0
821

उत्तराखंड में राजनीतिक खेल अपने चरम पर है। सालों पार्टी की सेवा किये और न किये दोनों ही तरह के लोग इस समय अपने को पार्टी के लिये सबसे अमूल्य रत्न साबित करने में जुटे हुये हैं। पार्टी के कर्ता धर्ताओं के आगे भी ये धर्म संकट है कि किन कसौटियों पर टिकट दावेदारों को पर्खें। खैर इस सबके बीच कांग्रसी खेमें में दिन दिहाड़े डाका डालते हुए बीजेपी ने राज्य में कांग्रेस का ड्रैसिंग रूम लगभग खाली कर दिया और अब तक बीजेपी पर धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाने वाले नेताओं को भगवा रंग का चोला पहनाकर चुनावी मैदान में दो दो हाथ करने के लिये उतार दिया। इस दांव के चलते बीजेपी रणनीतिकार और सलाहकारों ने अपने दल को जीत का पूरा भरोसा दिला दिया। लेकिन टिकट घोषणा के बाद से ही बीजेपी में पूरे राज्य से विरोध के सुर बुलंद होने लगे हैं। जिन सिटिंग विधायकों का टिकट कटा उनसे लेकर जिन सीटों पर कांग्रेसी बागियों को लोकल लीडरशिप पर तरजीह मिली उन तक सभी पार्टी के इस फाॅर्मूले से नाराज़ हैं औऱ पब्लिक में अपना रोष भी ज़ाहिर कर रहे हैं। खैर पार्टी का कहना है कि चुनावों में नेताओं का रूठना मनाना लगा रहता है और वोटिंग तक पहुंचते पहुंचते ज्यादातर नेताओं को मना लिया जायेगा।

इस सबके बीच बीजेपी के इस कदम से कांग्रेस में और खासतौर पर मुख्यमंत्री हरीश रावत के खेमें में खुशी की लहर थी। बीजेपी के इस कदम से न केवल एक झटके में हरीश रावत के पार्टी के अंदर अधिक्तर विरोधियों का सफाया हो गया वहीं चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस को बीजेपी पर अवसरवाद की राजनीति करने का आरोप लगाकर भुनाने का मौका भी मिल गया। जानकार ये भी मानते हैं कि इतने बड़ा पैमाने पर दूसरा दल छोड़ कर आये नेताओँ को टिकट देने से पार्टी के कैडर में गलत संदेश जायेगा औऱ वो कंफ्यूशन में पड़ सकता है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में इसके सीधा फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा।

लेकिन ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस इस मैच में मिले पैन्लटी स्ट्रोक पर गोल नही दाग पायेगी। कारण: किस खिलाड़ी से स्ट्रोक लगवाना है ये अभी तय नही हुआ है। यानि वोट डलने में 25 दिनों से भी कम का वक्त रह गया है औऱ पार्टी ने अबी तक अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान नही किया है। लंबे समय से उम्मीदवारों को लेकर देहरादून से लेकर दिल्ली तक मैराथन मीटिंगों के दौर चले, पार्टी आलाकमान के नुमाइंदे कभी देहरादून आये तो कभी मुख्यमंत्री औऱ प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय दिल्ली भागे। लेकिन इन सबका नतीजा अभी तक सिफर ही रहा। जब किसी स्थिति को लेकर असमंजस हो और वो स्थिति राजनीतिक हो तो अफवाहों और सूत्रों से मिली खबरों का बाज़ार गुलज़ार हो जाता है। कुछ ऐसा यहां भी हुआ। पिछले दिनों दिल्ली में कांग्रेस की मुख्य चुनाव समीति की रोजाना बैठक हुई लेकिन इसके बावजूद 20 तारीख तक कांग्रेसी खेमा अपने उम्मीदवारों का चुनाव तो न कर सका लेकिन बार बार पार्टी में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के बीच “आॅल इज वेल” के दावे करता रहा।

राज्य की राजनीतिक बिसात पर हरीश रावत अब तक किसी बाजीगर की तरह सामने आये हैं यानि हर बार वो हार कर जीते हैं। लेकिन इस राजनीतिक मैच का फाइनल जीतने के लिये अभी रावत को कापी चाले चलना बाकी हैं। बहरहाल इस सबके बीच एक आम कांग्रेसी कार्यकर्ता को अपने नेताओं से ये ही उम्मीद होगी की चुनावों के इस मौसम में नेता अपने आपसी मतभेदों को दरकिनार कर एक साथ ज़रूरी फैसले लें जो इस समय उम्मीदवारों के नामों को फाइनल करना है।