चैत्र महीने के नवरात्रो का विशेष महत्व माना जाता है। कहते है हिन्दू धर्म में चैत्र नवरात्रो के साथ हिन्दू नव वर्ष की शुरुवात होती है। इन दिनों माता के सिद्धपीठ कुंजापुरी में बड़ी संख्या में श्श्रद्धालु माँ के दर्शन करने आते है और पूजा अर्चना करते है। मान्यता है की माँ सबकी मुरादे पूरी करती है और अपने भक्त को कभी खाली झोली लिए नही भेजती।पौराणिक कथाओं के अनुसार स्कन्दपुराण के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री, सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। त्रेता युग में असुरों के परास्त होने के बाद दक्ष को सभी देवताओं का प्रजापति चुना गया। उन्होंने इसके उपलक्ष में कनखल में यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने, हालांकि,भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया क्योंकि भगवान शिव ने दक्ष के प्रजापति बनने का विरोध किया था। भगवान शिव और सती ने कैलाश पर्वत, जो भगवान शिव का वास-स्थान है, से सभी देवताओं को गुजरते देखा और यह जाना कि उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। जब सती ने अपने पति के इस अपमान के बारे में सुना तो वे यज्ञ-स्थल पर गईं और हवन कुंड में अपनी बलि दे दी। जब तक शिव वहां पहुंचते तब तक वे बलि हो चुकी थीं।
भगवान शिव ने क्रोध में आकर तांडव किया और अपनी जटाओं से गण को छोड़ा तथा उसे दक्ष का सर काट कर लाने तथा सभी देवताओं को मार-पीट कर भगाने का आदेश दिया। पश्चातापी देवताओं ने भगवान शिव से क्षमा याचना की और उनसे दक्ष को यज्ञ पूरा करने देने की विनती की। लेकिन, दक्ष की गर्दन तो पहले ही काट दी गई थी। इसलिए, एक भेड़े का गर्दन काटकर दक्ष के शरीर पर रख दिया गया ताकि वे यज्ञ पूरा कर सकें।
भगवान शिव ने हवन कुंड से सती के शरीर को बाहर निकाला तथा शोकमग्न और क्रोधित होकर वर्षों तक इसे अपने कंधों पर ढोते विचरण करते रहें। इस असामान्य घटना पर विचार-विमर्श करने सभी देवतागण एकत्रित हुए क्योंकि वे जानते थे कि क्रोध में भगवान शिव समूची दुनिया को नष्ट कर सकते हैं। आखिरकार, यह निर्णय लिया गया कि भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का उपयोग करेंगे। भगवान शिव के जाने बगैर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52 टुकड़ों में विभक्त कर दिया। धरती पर जहां कहीं भी सती के शरीर का टुकड़ा गिरा, वे स्थान सिद्ध पीठों या शक्ति पीठों (ज्ञान या शक्ति के केन्द्र) के रूप में जाने गए। उदाहरण के लिए नैना देवी वहां हैं, जहां उनकी आंखें गिरी थीं, ज्वाल्पा देवी वहां हैं, जहां उनकी जिह्वा गिरी थी, सुरकंडा देवी वहां हैं, जहां उनकी गर्दन गिरी थी और चंदबदनी देवी वहां हैं, जहां उनके शरीर का नीचला हिस्सा गिरा था।
उनके शरीर के ऊपरी भाग, यानि कुंजा उस स्थान पर गिरा जो आज कुंजापुरी के नाम से जाना जाता है। इसे शक्ति पीठो में गिना जाता है।टिहरी और नरेंद्र नगर गाँव लोग के नवरात्रो में माता के दर्शन करते है ,वैसे तो नवरात्रो में हर देवी माँ के मंदिर में उनके भक्तो का ताँता लगा रहता है लेकिन उत्तराखण्ड में सुरकंडा ,चन्द्रबदनी और कुंजापुरी सिद्ध पीठ मौजूद है जिससे लोगो में माँ के प्रति भक्ति और आस्था बढ़ जाती है लेकिन माँ कुंजापुरी का नज़ारा इनदिनों कुछ और ही होता है दूर दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते है माँ से मानत मांगते है। और नरेंद्र नगर की कुंजापुरी की पहाड़ियों में जय माता दी के जयकारे से गूंज उठती है