बारिश और बर्फबारी न होने से राज्य के किसान मायूस

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(देहरादून) सर्दी खत्म होनी की कगार पर है ऐसे में बारिश और बर्फबारी न होने से किसानों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। सर्दियों में बर्फ और बारिश फसलों के लिए आवश्यक चिलिंग आवर्स की जरूरत पूरी करती है, लेकिन इस वर्ष दिसंबर और जनवरी के दो सप्ताह तक बारिश का नामोनिशान नहीं है।
बारिश और बर्फबारी न होने के कारण पर्यावरण के जानकारों के माथे पर चिंता की लकीरे हैं। माना जा रहा है कि अगर मौसम का ऐसा ही रूखा बना रहा तो आने वाली गर्मियों में पानी के लिए हिमालयी इलाके और तलहटियां त्राहि माम कर बैठेंगी। मौसम का ये मिजाज आने वाले दिनों में पानी के संकट का संकेत भी दे रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो हिमालय क्षेत्र में पूरे जाड़े के सीजन में बर्फबारी नहीं होने से गर्मियों में पानी का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। बारिश और बर्फबारी नहीं होने से जहां जल स्रोत रिचार्ज नहीं हो पाएंगे वहीं हिमालय में बर्फ कम रहने से नदियों में भी पानी कम हो जाएगा। हाल ये है कि आमतौर पर मई-जून में बर्फ पिघलने पर ओम पर्वत में दिखाई देने वाली ओम की आकृति अभी से उभरने लगी है।
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के निदेशक किरीट कुमार का कहना है कि दिसंबर मासांत से लेकर जनवरी तक बर्फबारी होने पर हिमालय में अच्छी बर्फ जमा हो जाती है लेकिन फरवरी और मार्च में बर्फबारी होने पर हिमालय में बर्फ ज्यादा नहीं टिकती है और तामपान बढ़ने से जल्द पिघलने लगती है। उन्होंने कहा कि बारिश-बर्फबारी नहीं होने से जहां फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है वहीं इससे फलों के उत्पादन पर भी असर पड़ेगा। सेब आदि कुछ फलों को ठंड की अधिक जरूरत होती है।
इस बार अब तक हिमालय क्षेत्र में नाममात्र की ही बर्फ गिरी है। बीते कुछ दिनों से धूप आने के बाद बर्फ पिघलने से हिमालय भी रूखा लगने लगा है। इस सीजन में फिलहाल फरवरी तक बारिश की संभावनाएं बनी रहती हैं। अगर फरवरी तक भी अच्छी बारिश हो जाए तो भी थोड़ा राहत मिल जाएगी। अन्यथा हालत काफी बिगड़ सकते हैं। हिमालय में बर्फ नहीं टिकने की स्थिति में ग्लेशियर ही पिघलने लगेंगे। यह स्थिति हिमालय की सेहत के लिए अच्छी नहीं मानी जा सकती।