भारत के आखिरी गांव माणा के लोगों की आप बीती

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बद्रीनाथ धाम के कपाट आने वाले 6 महीने के लिए बंद हो चुके हैं, साथ ही बंद हो चुके हैं भारत के आखिरी गांव माणा के घर और लोगों की दुकानें।जी हां, बद्रीनाथ धाम से लगभग 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भारत का आखिरी गांव माणा भी बंद हो चुका है।गांव के लोगों ने अपने-अपने घरों में ताले लगाकर निचले घरों का रुख करने लगे है। सुनने में तो यह बात आसान सी लगती है लेकिन असल में इस गांव के लोग छः महीन माणा और छः महीने जोशीमठ,कर्णप्रयाग,देहरादून और अलग-अलग जगहों पर विस्थापित हो जाते हैं।ठीक छः महीने बाद जब बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं, तब 4-5 दिन पहले से यह लोग अपने घरों और बद्री विशाल के प्रहरी घंटाकर्ण की सेवा में लग जाते हैं।

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इसी कड़ी में भारत की आखिरी दुकान के मालिक भूपेंद्र सिंह टकोला से बातचीत में बताया कि, “यह साल उनके और उनके जैसे सभी व्यापारियों के लिए काफी अच्छा रहा। 2013 की आपदा के बाद मानो यात्रा पर विराम लग गया था लेकिन साल 2017 में सालों बाद एक बार फिर रौनक देखने को मिली है।” भूपेंद्र बताते हैं कि, “यह छः महीने माणा के गांव के लोगों के लिए ना केवल अच्छे समय होते हैं बल्कि उनके कमाने का जरिया भी यही छः महीने होते हैं।” माणा गांव के लोग भेड़ों से निकाले गए ऊन की टोपियों,शॉल,र्स्काफ,जैकेट,स्वेटर आदि चीजें अपने हाथों से बनाकर बेचते हैं।भूपेंद्र जिनके परिवार में उनके अवाला उनकी पत्नी और दो बच्चें हैं वह गोपेश्वर के रहने वाले हैं लेकिन छः महीने हिदुस्तान की आखिरी दुकान चलाते हैं।भूपेंद्र बताते हैं कि, “माणा से विदाई लेने के समय पूजा-पाठ और ढ़ोल दमाउं के साथ भगवान बद्री विशाल के प्रहरी घंटाकर्ण की पुजा की जाती है और उनकी देख-रेख का जिम्मा क्षेत्रपाल को सौपा जाता है।”

बद्री विशाल के कपाट खुलने के साथ ही माणा के निवासी घंटाकर्ण की देखरेख में लग जाते हैं।आपको बतादें कि माणा के लोगों के जीवन में उतार-चढ़ाव होने के बाद भी यहां के 90 प्रतिशत लोग ग्रेजुएट है, 80 प्रतिशत लोग नौकरी कर रहे हैं और 20 प्रतिशत लोग छोट-मोटे व्यापार से अपना जीवनयापन कर रहे हैं।

यह लोग अपने जीवन को लेकर सकारात्मक है और अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए पूरे देश में जाने जाते हैं।माणा की निवासी से बातचीत में बताया कि, “यह कोई आसान बात नहीं कि हमें अपना घर छोड़कर जाना पड़ता है लेकिन हम खुशी-खुशी इस रस्म को निभाते हैं और अगले साल की प्रतिक्षा में रहते हैं।”

क्या विडंबना है जीवन की प्रकृति के आगे घुटने टेक कर माणा के लोग छः महीनों के लिए यहां से पलायन कर देते हैं? लेकिन किसी ने क्या खूब कहा है अगर अंत खूबसूरत नहीं तो वह किसी नए शुरुआत का परिचायक है और माणा के लोगो के लिए छः महीने के पलायन करने से बढ़कर आने वाले साल का इंतजार करना होता है।